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Agra University Scam: 5000 पन्नों में विश्वविद्यालय के 5 सालों के प्रमुख घोटालों का कच्चा चिट्ठा, ये है लिस्ट

Agra News डाक्टर भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के घोटालों की जांच कर रही है एसटीएफ। अब तक पांच वर्ष के दौरान हुए कार्यों नियुक्तियों कालेजों की मान्यता आदि से संबंधित प्रपत्र हैं लिए। बीएएमएस की कापियों के बदलने पर मामला पकड़ा गया था।

By Prabhjot KaurEdited By: Abhishek SaxenaUpdated: Sun, 11 Dec 2022 09:32 AM (IST)
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Agra News: आगरा में भीमराव आंबेडकर विवि के घोटालों की जांच एसटीएफ कर रही है।
आगरा, जागरण संवाददाता। विशेष कार्य बल (एसटीएफ) डा. भीमराव आंबेडकर विश्चविद्यालय में हुए घोटालों का कच्चा चिट्ठा जुटा रही है। एसटीएफ ने अब तक पांच वर्ष के दौरान विश्चविद्यालय में हुए कार्यों से संबंधित प्रपत्र जुटाए हैं। यह प्रपत्र करीब पांच हजार पन्नाें में हैं। इन प्रपत्रों में कालेजों को मान्यता देने, विश्वविद्यालय और उससे संबंधित कालेेजों में नियुक्तियां, फर्नीचर खरीद, स्टेशनरी खरीद, विश्वविद्यालय में कराए गए कार्य आदि शामिल हैं।

अगस्त में आया था बीएएमएस की कापियों का प्रकरण

अगस्त के अंतिम सप्ताह में में बीएएमएस की उत्तर पुस्तिका का प्रकरण सामने आया था। जिसके बाद एमबीबीएस की कुछ उत्तर पुस्तिकाओं का हस्तलेखन भी भिन्न पाया गया। शासन ने इसे गंभीरता से लेते हुए एसटीएफ को पूरे मामले की जांच सौंपी थी। एसटीएफ की टीम सितंबर से सक्रिय हुई। एसटीएफ ने गोपालकुंज में कैंप कार्यालय बनाकर विश्वविद्यालय में हुए घोटालों से संबंधित प्रपत्र जुटाने का काम शुरू किया।

पिछले पांच सालों में हुए प्रमुख घोटाले

2017 में डा. अरविंद दीक्षित कुलपति के रूप में कार्यरत थे। वे 2020 तक रहे। उन्होंने अपने कार्यकाल में नियम विरूद्ध कमीशन के लिए इमारतों के निर्माण करवाया। 40 करोड़ रुपये खर्च करके संस्कृति भवन बनाया तो खंदारी परिसर में 20 करोड़ रुपये की लागत से शिवाजी मंडपम का निर्माण करवाया। किसी भी इमारत के लिए किसी भी विभाग से प्रस्ताव नहीं आया था,इसीलिए फर्जी दस्तावेजों और विभाग बनाकर प्रस्ताव तैयार कराए।

उनके कार्यकाल में ही सुल्तान गंज की पुलिया स्थित छात्रावास को गिराया गया, जिसे गिराने का ठेका भी कई लाख में उठा था।

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विश्वविद्यालय में सुरक्षा एजेंसी घोटाला, परीक्षा एजेंसी घोटाला, परीक्षा रिजल्ट में गड़बड़ी घोटाला, पंडाल घोटाला, ट्रांसफर यात्रा पर फर्जी घोटाला, सफाई कर्मचारी भुगतान घोटाला, विश्वविद्यालय फंड इन्वेस्टमेंट घोटाला, फर्नीचर घोटाला, कंप्यूटर खरीद घोटाला चर्चित रहे हैं। इनमें बिना टेंडर एक ही संस्था को काम दिए गए। फर्नीचर घोटाला में तत्कालीन कुलपति डीएन जौहर और तत्कालीन कुलपति मोहम्मद मुजम्मिल, तत्कालीन वित्त अधिकारी रामपटल सिंह और अमरचंद सिंह, तत्कालीन कुलसचिव वीके पांडेय, गृह विज्ञान संस्थान के निदेशक डा. भारती सिंह के खिलाफ थाना हरीपर्वत में तीन सितम्बर, 2018 को मुकदमा पंजीकृत कराया गया था। घोटाला विजिलेंस ने पकड़ा था।

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इनके अलावा इतिहास विभाग के रीडर अमित वर्मा, सहायक कुलसचिव परीक्षा अनिल कुमार शुक्ला, भौतिकी विभाग के रीडर बीपी सिंह, उप कुलसचिव परीक्षा प्रभात रंजन, डिप्टी रजिस्ट्रार वित्त महेंद्र कुमार, वेबमास्टर अनुज अवस्थी, कार्यवाहक वित्त अधिकारी बालजी यादव, गृह विज्ञान प्रवक्ता डॉ. अनीता चोपड़ा, निदेशक राघव नारायण, माइंड लाजिस्टिक लिमिटेड बेंगलुरु के प्रोजेक्ट मैनेजर शैलेंद्र टंडन, मीनाक्षी मोहन और बालेश त्रिपाठी के खिलाफ भी रिपोर्ट दर्ज हुई थी।

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  • ट्रांसपोर्ट से करोड़ो का सामान नहीं भेजा गया, लेकिन ई-वे बिल लगाकर उसका भुगतान हो गया।इससे संबंधित दर्जनों बिल मिले हैं, जिनका सत्यापन नहीं हो पा रहा है।
  • संस्कृति भवन, बेसिक साइंस, दाऊदयाल, गणित विभाग के लिए पांच करोड़ रुपये का फर्नीचर खरीदा गया। जिसमें से संस्कृति भवन में बने अंतरराष्ट्रीय गेस्ट हाउस के लिए 90 हजार का बेड, 85 हजार की अलमारी और 10 हजार रुपये का साइड टेबल भी आया।
  • पार्किंग निर्माण और एसी खरीद में भी खेल हुआ।मनमाने बिल लगाए गए और एक करोड़ रुपये का बजट खत्म कर दिया गया।
  • राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (रूसा) से खंदारी परिसर में पार्किंग और सौंदर्यीकरण के लिए 60 लाख रुपये का बजट मिला। इसका निर्माण 29 जुलाई 2021 में शुरू हुआ। पांच दिन में 70 फीसदी कार्य दर्शाते हुए 42 लाख रुपये का भुगतान भी हो गया।अगले कुछ दिन बाद बाकी का 30 फीसदी कार्य और पूरा कर 18 लाख रुपये भी मिल गए।
  • विश्वविद्यालय द्वारा सत्र 2022 – 23 के लिए आवासीय संस्थानों में प्रवेश के लिए विज्ञापन निकाला गया। दो बार में दो करोड़ रुपये से ज्यादा विज्ञापन पर खर्च किए गए।जबकि परीक्षा समिति में कुछ लाख रुपये का बजट पारित हुआ था।
  • 2018 में पीएचडी के आरक्षित 50 छात्रों को पांच हजार रुपये प्रति माह एक वर्ष के लिए स्कालरशिप देनी थी। छात्रों से आवदेन कराए गए एवं प्रक्रिया पूर्ण कर ली गयी और कहा गया कि पैसा छात्रों के बैंक एकाउंट में भेज दिया जाएगा लेकिन किसी छात्र के पास कोई पैसा नहीं आया।
  • विश्वविद्यालय में परीक्षा का कार्य कर रही एजेंसी द्वारा छात्रों का परीक्षा शुल्क 800 रूपये प्रति छात्र की जगह 1300 रूपये प्रति छात्र कर दिया गया। इसमें छात्रों से हज़ारों छात्रों से 500 रुपये अतिरिक्त लिए गए। यह पैसा छात्रों को लौटाया नहीं गया है।
  • प्रो. विनय कुमार पाठक के कार्यकाल में पेपर लीक घटना के बाद नोडल केंद्रों पर आरएफआइडी(रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडिनटिफिकेशन)लाक लगाए गए।इसका ठेका अजय मिश्रा की एजेंसी को दिया गया। 35 नोडल केंद्रों पर लाक लगाए गए। इसका कंट्रोल रूम खंदारी परिसर में बनाया गया।परीक्षा खत्म होने से पहले ही एजेंसी को 25 लाख रुपये किराए के रूप में दे दिए गए।
  • राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (रुसा) के तहत करोड़ों रुपये का भुगतान प्रो. मोहम्मद मुज्जमिल से लेकर 2022 तक के बीच हुआ।करोड़ों रुपये उन भवनों में खर्च दिखा दिए गए, जिनका निर्माण तक नहीं हुआ है।विश्वविद्यालय ने लगभग एक दर्जन इमारतें, लैब, स्मार्ट क्लास आदि बनाए हैं, जो रूसा में प्राप्त भुगतान से बनाए गए हैं। इसमें विवि में इतिहास और संस्कृति विभाग के लिए अकादमिक ब्लाक, पीएचडी कोर्स के लिए रिसोर्स सेंटर, ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट सेल, फैकल्टी और स्टाफ के लिए रिक्रिएशन एंड हेल्थ सेंटर, टायलेट ब्लाक, ललित कला संस्थान के लिए कक्षाएं और प्रयोगशालाएं और आर्ट गैलरी शामिल हैं। इंस्टीट्यूट आफ टूरिज्म एंड मैनेजमेंट के लिए भी नई लैब बननी थी।कैमेस्ट्री, कम्प्यूटर साइंस, फार्मेसी विभाग की लैब और क्लासरूम के रूप में नए निर्माण होने थे। यह निर्माण हुए ही नहीं है और कागजों में पूरे दिखा दिए गए हैं।
  • रूसा के बजट में से 85.31 लाख रुपये लैपटाप और कंप्यूटर की खरीद में दिखाए गए हैं। यह कंप्यूटर और लैपटाप शिक्षकों के लिए खरीदे गए थे। जबकि यह लैपटाप और कंप्यूटर कई शिक्षकों को मिले ही नहीं हैं।
  • रुसा के तहत बिना निर्माण कराए ही करोड़ों के भुगतान कार्यदायी संस्थाओं को कर दिए गए।फार्मेसी, कैमेस्ट्री और कंप्यूटर साइंस के लिए होने वाले निर्माण कार्य जिम्मेदारों ने 2021 में ही 30 प्रतिशत काम पूरा दिखा दिया।निर्माण 70 लाख से अधिक धनराशि के होने थे, जिसमें से लगभग 80 प्रतिशत भुगतान भी कर दिया गया।
  • प्रो. पाठक ने विश्वविद्यालय के क्षेत्राधिकार के लगभग 270 कालेजों की नियम विरूद्ध रूप से विभिन्न पाठ्यक्रमों की मान्यता स्थायी कर दी गई।इन सभी महाविद्यालयों में अंतिम बार वर्ष 2016 में निरीक्षण मंडल द्वारा निरीक्षण किया गया था। छह वर्ष बाद बिना पुनः सत्यापन कराए रिश्वत लेकर सीधे ही इनको स्थायी संबद्धता दे दी गई।
  • प्रो. पाठक ने अलीगढ़ के राजा महेंद्र प्रताप सिंह राज्य विश्वविद्यालय से संबद्ध हुए 225 कालेजों को बिना किसी निरीक्षण मण्डल के गठन किए हुए बीए, बीएससी और बीकाम के लिए दो-दो लाख रूपये तथा बीएड के लिए तीन-तीन लाख रूपये प्रति कालेज के हिसाब से संबद्धता दी।इसमें कुल 10 करोड रूपये की धनराशि अनैतिक रूप से एकत्रित की गई।
  • आंबेडकर विश्वविद्यालय से संबद्ध लगभग 270 कालेजों के विभिन्न पाठ्यक्रमों को भी नियम विरूद्ध मान्यता दी गई। इससे लगभग 15 करोड़ रूपये की धनराशि रिश्वत के रूप में ली गई।
  • संबद्धता विभाग द्वारा प्रो. पाठक के निर्देशों पर एक ही डिस्पेच नम्बर पर कई कालेजों को बैक डेट में पत्र जारी किए गए।
  • विषय विशेषज्ञों की भर्ती के लिए कई बार विज्ञापन जारी किए गए। जो भर्तियां की गई उनमें न तो आरक्षण नियमों का पालन किया गया और न ही सरकार द्वारा निर्धारित चयन प्रक्रिया के नियमों का पालन किया गया।
  • डिजिटलाइजेशन के लिए अपने रिश्तेदार आदर्श पाठक की फर्म को काम दिया गया।इसके लिए 25 लाख रुपये का भुगतान भी किया गया।
  • विभागों के कंप्यूटराइजेशन के लिए कानपुर की फर्म से 35 लाख रुपये में साफ्टवेयर खरीदा गया।इसी फर्म ने कानपुर विश्वविद्यालय में भी साफ्टवेयर दिया है।
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