Agra Dussehra News: रामलीला का इतिहास है एक सदी पुराना, प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी है कड़ी
Agra Dussehra News श्रीराम ने रावण को मारा लीला ने बाधाओं को तोड़ा। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी हैं आगरा में रामलीला की कड़ी वर्ष1901 में किया था कमेटी का गठन। 1885 में रावतपाड़ा के मनकामेश्वर के पास बारहदरी में रामलीला की शुरुआत हुई थी।
By Tanu GuptaEdited By: Updated: Wed, 05 Oct 2022 05:04 PM (IST)
आगरा, योगेश जादौनl आगरा धर्म क्या है? इसका जवाब जितना कठिन है, रीति रिवाज और परंपरा के इतिहास को जानना उतना ही पेचीदा। ताजमहल के शहर में रामलीला और रावण दहन की परंपरा की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। इसका एक सिरा इतिहास के धुंधलके में डूबा है तो दूसरा अंग्रेजी दौर के असंतोष से जुड़ा है। यह कहानी अंग्रेजी अन्याय से पराजित भारतीय मानस की कसक और उससे उबरने का कोलाज है, जिसे सुनना-गुनना जरूरी है, क्योंकि जिस तरह श्रीराम ने संघर्ष के बाद रावण को मारा, उसी तरह से लीला ने आयोजन में आ रही बाधाओं को तोड़ा।
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कैसे दुनिया भर में प्रसिद्ध हुयी आगरा की राम बरात
आगरा की राम बरात और जनकपुरी का आयोजन देश भर में विख्यात है। रावण दहन भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। यह शहर में होने वाली 30 दिवसीय रामलीला का ही हिस्सा है। बात 1857 के बाद की है। अंग्रेजों ने पहले विद्रोह की चिंगारी को दबा दिया था। वरिष्ठ पत्रकार राजीव सक्सेना बताते हैं, भारतीय मन बेहद टूटा हुआ था। असंतोष था, लेकिन स्वर नहीं थे। ऐसे माहौल में आगरा किला में मौजूद काली पलटन के एक मद्रासी ब्राह्मण ने रामलीला की शुरुआत की। यह ब्राह्मण ढोलक और मजीरे से गाकर रामलीला करता था। आज जहां रामलीला मैदान है वह तब पलटन की परेड का मैदान था। यहीं तब आयोजन होते थे। मगर, रामलीला की शुरुआत का यह पन्ना इतिहास के धुंधलके में डूबा हुआ है। इसके आगे के कुछ वर्ष के घटनाक्रम पर इतिहास मौन है।यह भी पढ़ेंः Dussehra 2022: आगरा में लेजर लाइट से होगा रावण के 100 फीट ऊंचे पुतले का दहन, देखें दशहरा पूजा का शुभ मुहूर्त
परेड ग्राउंड बना रामलीला मैदान
1920 आते-आते आगरा की राम बरात खूब प्रसिद्ध हो चुकी थी। रामलीला का स्वरूप बढ़ने के साथ ही बड़े मैदान की जरूरत महसूस हुई। इसके लिए वर्ष 1924-30 के बीच आगरा किला के पास स्थित सेना के परेड ग्राउंड का अधिग्रहण किया गया। रामलीला कमेटी के मंत्री राजीव अग्रवाल बताते हैं, तब से रामलीला और रावण दहन इसी मैदान में किया जा रहा है। सामाजिक एकजुटता का आयोजन: रामलीला से अंग्रेजों के अन्याय के प्रति जनता को एक मजबूती मिली। रामलीला के मुकुटपूजा कार्यक्रम तब से आज तक कुशवाह समाज के लोग करते आ रहे हैं। रामलीला में रावण का किरदार भी इसी समाज के एक परिवार के लोग सात पीढ़ी तक निभाते रहे। रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले बनाने और आतिशबाजी का काम मुसलमान लोग करते रहे। इस तरह इस कार्यक्रम ने सबको एकजुट किया।इस तरह हुई विधिवत शुरुआत
इतिहास का यह मौन 1885 में आकर टूटा। रावतपाड़ा के मनकामेश्वर के पास बारहदरी में रामलीला की शुरुआत हुई। स्थानीय किराना कमेटी के व्यापारियों ने इसकी पहल की। किराना कमेटी ने इसके लिए व्यापारी और बड़े ग्राहकों की एक आना की रसीद काटना शुरू की। इस तरह धन इकट्ठा किया जाता था। तब आयोजन छोटे स्तर पर ही होता था। कुछ वर्ष बाद रामलीला का यह आयोजन रावतपाड़ा में ही बारहटोंटी प्याऊ पर किया जाने लगा। 1901 में विधिवत रामलीला कमेटी का गठन किया गया।
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