Agra Famous Jain Temple: जैन अनुयायियों का आस्था का केंद्र है शौरीपुर, श्रीकृष्ण से जुड़ा है इसका ऐतिहासिक इतिहास
Agra Famous Jain Temple श्री कृष्ण के चचेरे भाई तीर्थकर भगवान नेमिनाथ की जन्मस्थली है शौरीपुर। बड़ी संख्या में पहुंचते हैं जैन धर्म के अनुयायी। आगरा से करीब 80 किलोमीटर और इटावा से 20 किलोमीटर की दूरी पर ये मंदिर स्थित हैं।
आगरा, जागरण टीम। आगरा में यमुना के तट पर बीहड़ में स्थित शौरीपुर का नेमिनाथ दिगंबर जैन मंदिर है। शौरीपुर की नींव भगवान कृष्ण के पितामह राजा सूरसेन ने रखी थी। वह चंद्रवंश के राजा यदु के वंशज थे। 22वें तीर्थकर भगवान नेमिनाथ की जलस्थली के साथ ही जैन धर्म का पवित्र तीर्थ स्थल भी है। बड़ी संख्या में यहां श्रद्धालु आते है।
दिगंबर और श्वेतांबर के है यहां मंदिर
बटेश्वर से दो किमी दूर शौरीपुर जैन समाज का पावन तीर्थ है। बटेश्वर में यमुना किनारे स्थित भगवान शिव के 101 मंदिरों की दीवारों से मुड़ती हुई यमुना इस पावन तीर्थ को छूती हुई बहती है।
शौरीपुर एक विशाल नगरी थी
माना जाता है कि सहस्त्रों वर्ष पूर्व से समर्थ यमुना तट पर शौरीपुर एक विशाल नगरी थी। इस नगरी को महाराज सूरसेन सेन ने बसाया था। उन्हीं की पीढ़ी में महाराज समुद्र विजय हुए थे। ये दस भाई थे, उसमें छोटे वसुदेव थे, जिनके पुत्र भगवान श्रीकृष्ण थे। कुंती और माद्री महाराज विजय की बहनें थीं, जो कुरुवंशी पाण्डु को ब्याही थीं।
शौरीपुरा में जैन समाज के 22वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ का मंदिर है। भगवान नेमिनाथ भगवान श्री कृष्ण के चचेरे भाई थे और शौरीपुर नेमिनाथ का जन्मस्थान है।
मंदिर जंगलों में लेकिन देश के कोने-कोने से आते हैं लोग
पूरे देश से जैन समाज के बड़ी संख्या में लोग यहां प्रतिवर्ष आते हैं। मंदिर जंगल में अंदर की ओर जाकर है। शौरीपुर मंदिर को दिगंबर सिद्ध क्षेत्र भी कहा जाता है। यहां पर जैन समाज के दो अलग-अलग मंदिर हैं। दिगंबर और श्वेतांबर दोनों अनुयायियों के लिए ही शौरपुर विशेष महत्व रखता है। दिगंबर जैन मंदिर पहले से ही था। लेकिन, अब श्वेतांबर जैन मंदिर का भी नव निर्माण यहां हुआ है।
शौरीपुर का ये है इतिहास
चन्द्रवंशी राज यदु के वंश में शूरसेन नामक एक प्रतापी राजा हुए, जिन्होंने इस शौरीपुर नगर को बसाया था। उसका वंश यदुवंश कहलाया। शूर के अंधक वृष्णि पुत्र हुए। अंधक वृष्णि के समुद्र विजय, वासुदेव आदि दस पुत्र और कुंती माद्री पुत्रियां हुईं। समुद्र विजय की रानी शिवा के गर्भ से श्रावण शुक्ल पंचमी को शौरीपुर में भगवान नेमिनाथ जिनेन्द्र 22वें तीर्थंकर का जन्म हुआ था। बताया गया है कि उस समय इन्द्र ने रत्नों की वृष्टि की थी। भगवान नेमिनाथ बचपन से ही संसार में विरक्त प्रकृति के थे।
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भगवान नेमिनाथ ने तपस्या के बाद प्राप्त किया ज्ञान
जूनागढ़ के राजा उग्रसेन की पुत्री से उनका विवाह निश्चित हुआ था। विवाह के लिए जाते समय अनेक मूक पशुओं के करुण रुद्रन से दुखी होकर नेमिनाथ जी ने कंकण आदि बंधन तोड़ फेंके और वहीं गिरनाथ पर्वत पर जल दीक्षा ग्रहण कर दिगंबर साधु हो गए।
तत्पश्चात घोर तपस्या कर भगवान नेमिनाथ ने ज्ञान प्राप्त किया साथ ही अनेक देशों में विहार कर अहिंसा धर्म का उपदेश दिया। अंत में गिरनार पर्वत पर ही निर्वाण प्राप्त किया। इस प्रकार यह पुण्य भूमि भगवान नेमिनाथ के निर्वाण की गर्भ जन्मभूमि है। यहां देश के हर कोने से बड़ी संख्या में जैन श्रद्धालु आते है।
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भगवान नेमिनाथ ने अहिंसा परमोधर्म का संदेश पूरे विश्व को दिया। उसी से मानव का कल्याण संभव है। दसलक्षण आत्मा शुद्धि का पर्व भी होता है। प्रमोद जैन, दिगंबर जैन मंदिर शौरीपुर।