Amla Navami 2022: आज है आंवला नवमी, पढ़ें इसका पूजन महत्व और विधि के साथ कथा भी
Amla Navami 2022 इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। माना जाता है कि आंवले के पेड़ में स्वयं भगवान विष्णु वास करते हैं। आंवला नवमी के दिन आवंला के पेड़ की छाया में भोजन करने को भी कल्याणकारक माना जाता है।
आगरा, तनु गुप्ता। कार्तिक मास का महीना धार्मिक दृष्टि से बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है की इस माह में सच्चे मन से किए जाने वाले पुण्य कार्य शुभ फल प्रदान करते है। चूंकि कार्तिक मास का धार्मिक महत्व अधिक है, यही कारण है की इस महीने में बहुत से व्रत- त्यौहार मनाएं जाते है। कार्तिक मास में आने वाली शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन हर साल आंवला नवमी का व्रत रखा जाता है। आंवला नवमी को अक्षय नवमी के नाम से भी जाना जाता है। आंवला नवमी इस वर्ष 2 नंवबर बुधवार को है। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार माना जाता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण गोकुल को छोड़ कर मथुरा चले गए थे। मथुरा पहुंचकर उन्होंने अपने सभी कर्तव्यों का पालन किया था।
आंवला नवमी का महत्व
कहा जाता है की कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से पूर्णिमा तिथि तक भगवान नारायण आंवले के पेड़ पर निवास करते हैं इसलिए इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। आंवला नवमी के दिन आवंला के पेड़ की छाया में भोजन करने को भी कल्याणकारक माना जाता है। ऐसा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और सभी मनोकामनाओं को पूरा करते है। इस दिन स्नान एवं दान का विशेष महत्व बताया जाता है। माना जाता है कि इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है, वहीं दान आदि करने के भी बहुत से शुभ फल प्रदान होते हैं।
आंवला नवमी व्रत कथा
आंवला नवमी की कथा के अनुसार, बहुत समय पहले एक सेठ था। वह हर साल आंवला नवमी के दिन ब्राह्मणों को आंवले के पेड़ के नीचे बैठाकर भोजन कराता था। इसके साथ ही सोना- चांदी आदि भेंट में देता। लेकिन यह सब चीजें सेठ के बेटों को बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती थीं। ऐसे में वह अपने पिता से खूब झगड़ते थे। इन सब चीजों से तंग आकर सेठ ने घर छोड़ दिया और दूसरे गांव में जाकर बस गया। जीवन यापन के लिए एक छोटी सी दुकान कर ली। उस दुकान के आगे एक आंवले का पेड़ लगाया।
भगवान की कृपा इतनी हुई कि दुकान खूब चलने लगी। उसने अपने नियम को न तोड़ते हुए हर साल आंवला नवमी के दिन विधिवत पूजा करने के साथ ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देना यथावत रखा। वहीं दूसरी ओर सेठ के पुत्रों का व्यापार ठप हो गया। ऐसे में सेठ के बेटों को समझ आने लगा कि वो अपने पिता के भाग्य से ही खाते थे। अपनी गलती समझ कर वे अपने पिता के पास गए और अपनी गलती की माफी मांगने लगे। फिर पिता के कहने के बाद उन्होंने भी आंवले के पेड़ की पूजा करनी शुरू की और दान करने लगे। इसके प्रभाव से सेठ के बेटों के घर पहले की तरह खुशहाली आ गई और सुख- समृद्धि के साथ रहने लगी।
धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी