Baldev Chhath 2020: शेषावतार ने लिया अवतार, गूंजे जयकारे पर न बन सके भक्त साक्षी
Baldev Chhath 2020 बलदाऊ जी का दूध दही शक्कर घी और केसर के पंचामृत से बलदाऊ का अभिषेक हुआ।
By Tanu GuptaEdited By: Updated: Mon, 24 Aug 2020 02:03 PM (IST)
आगरा, जेएनएन। कान्हा की धरा पर सोमवार को उनके बड़े भाई बलदाऊ के जन्मोत्सव की धूम रही। गोवर्धन, वृंदावन के साथ ही बलदेव में जन्मोत्सव (छठ) पूजन धूमधाम से किया गया। हालांकि ये पहली बार हुआ कि कोरोना वायरस के चलते श्रद्धालु बलदाऊ के जन्मोत्सव के साक्षी नहीं बन सके।
सोमवार सुबह चार बजे बलदेव के दाऊ जी मंदिर में जन्मोत्सव के कार्यक्रम शुरू हो गए। बलदाऊ जी का दूध, दही, शक्कर, घी और केसर के पंचामृत से बलदाऊ का अभिषेक हुआ। इस दौरान शहनाई वादन और नगाड़ा वादन हुआ। वेदपाठी ब्राह्मणों ने श्रीबलभद्र सहस्त्रनाम पाठ किया। दोपहर 12 बजे से मंदिर परिसर में ही श्रीबलभद्र महायज्ञ शुरू हुआ। इसके बाद हीरा, पन्ना, माणिक, पुखराव और दिव्य जवाहरात पहनकर ब्रजराज दाऊ जी ने दर्शन दिए। ये वह दिव्य जवाहरात हैं, जिनको दाऊ जी वर्ष में चार बार धारण करते हैं। हल्दी, दही, घी और केसर से दधिकंधा लीला हुई, तो मंदिर परिसर दाऊ जी के जयकारों से गूंज उठा। मंदिर के रिसीवर आरके पांडेय ने बताया कि कोरोना काल में दाऊ जी जन्मोत्सव प्रतीकात्मक रूप में मनाया गया। इस बार हर साल की तरह निकलने वाली शोभायात्रा भी रद रही और मंदिर परिसर में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी नहीं हुए। उधर, गोवर्धन और वृंदावन में भी बलदाऊ छठ धूमधाम से मनी।
रोहिणी के गर्भ से लिया दाऊ ने जन्म
दाऊ के अनेकों नाम से पुकारा जाता है। उनका एक नाम संकर्षण भी है। मंदिर के रिसीवर आरके पांडेय ने बताया कि देवकी गर्भ से सातवें पुत्र को योगमाया ने आकर्षित करके रोहिणी के गर्भ के में स्थापित कर दिया था। रोहिणी नंदबाबा के यहां रहती थी और वासदुवे की दूसरी पत्नी थी। श्रीमद्भागवत में इस स्थल को विद्रुम वन के नाम से जाना जाता है। यहा नंदबाबा की गोशाला थी। यही बलराम की जन्मस्थली है। करीब पांच हजार साल पहले बलराम श्रीकृष्ण के पौत्र बज्रनाभ ने यहां मंदिर की स्थापना कराई थी। मुगल काल में सभी प्रतिमाएं भूमिगत हो गई थी। करीब पांच सौ साल पहले ब्रह्मऋषि सौभरि के वंशज श्रीमद् गोस्वामी कल्याण देवाचार्य जी महाराज ने पुन: यहां प्रतिमाओं को स्थापित किया। मुगलशासक औरंगजेब ने मंदिर को तोड़ने के प्रयास किए, लेकिन वह सफल नहीं हो सका। तब साढ़े सात गांव की मालगुजारी मुगल शासक ने मंदिर को दी थी। ये गांव खड़ेरा, छिबरऊ, अवरैनी, रीढ़ा नरहौली आदि हैं, आज भी सरकार इन गांवों की मालगुजारी मंदिर को दे रही है।
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