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Hariyali Teej: 20 किलो सोना, एक कुंतल चांदी से पांच साल में बना झूला, साल में एक बार दुर्लभ दर्शन देते हैं बांकेबिहारी

Hariyali Teej साल भर जिस घड़ी का इंतजार बांकेबिहारी के भक्त करते हैं वो आने वाली है। साल में एक बार ठाकुरजी स्वर्ण-रजत झूले में बैठकर भक्तों को दर्शन देते हैं। इस बार 75 वां वर्ष मनाएगा ठा. बांकेबिहारी का स्वर्ण-रजत हिंडोला।

By Abhishek SaxenaEdited By: Updated: Thu, 28 Jul 2022 07:16 PM (IST)
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Hariyali Teej: स्वर्ण रजत झूले में बैठकर भक्तों को दर्शन देंगे ठाकुर बांकेबिहारी
आगरा, जागरण टीम। हरियाली तीज 31 जुलाई को ठा. बांकेबिहारी बेशकीमती स्वर्ण-रजत हिंडोले में विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देंगे। ठाकुरजी को प्रेम की डोर से हिंडोले में झुलाने देश-दुनिया के भक्त पूरे साल इंतजार करते हैं। इस दिन लाखों भक्त आराध्य को जिस स्वर्ण-रजत हिंडोले में दर्शन देंगे, वह अपने निर्माण का 75वां वर्ष मना रहा होगा।

साल में एक ही दिन बांकेबिहारी देते हैं ऐसे दर्शन

ठा. बांकेबिहारीजी साल में एक ही दिन हिंडोले में दर्शन देते हैं। मंदिर के करीब 160 साल के इतिहास में शुरआती दौर में साधारण हिंडोले में ठाकुरजी भक्तों को दर्शन देते थे। लेकिन, बांकेबिहारी के भक्त सेठ हरगुलाल बेरीवाला ने परिवार के सहयोगियों संग ठाकुरजी का दिव्य स्वर्ण-रजत हिंडोला तैयार कराया। इसके लिए वाराणसी के जंगल से लकड़ियों का इंतजाम कराया। इसके ऊपर सोने और चांदी की परत से नक्कासी कराई।

आजादी का अमृत महोत्सव के साथ मनेगा उत्सव

स्वर्ण-रजत इस हिंडोले में पहली बार जब आराध्य बांकेबिहारीजी ने दर्शन दिए, उसी दिन 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ था। जब देश अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, तो ठा. बांकेबिहारी का स्वर्ण-रजत हिंडोला भी अपने 75 वर्ष पूरे कर रहा है।

करीब 75 साल पहले 15 अगस्त के दिन ही वृंदावन के ठा. बांकेबिहारी मंदिर में सावन मास में भगवान को झुलाने के लिए सोने-चांदी का झूला (हिंडोला) मंदिर को समर्पित किया था। यह एक संयोग है कि 15 अगस्त के दिन जब सभी देशवासी पहला स्वतंत्रता दिवस मना रहे थे, बांकेबिहारी भी उस दिन सोने व चांदी से बने बेशकीमती और दिव्य हिंडोले में झूल रहे थे।

हरियाली तीज पर झूले में दर्शन देंगे

कोलकाता निवासी और ठाकुरजी के अनन्य भक्त सेठ हर गुलाल बेरीवाला ने स्वतंत्रता दिवस से कुछ दिन पूर्व ही ये हिंडोला मंदिर प्रशासन को भेंट किया था, जिन्हें हरियाली तीज के अवसर पर ठाकुरजी की सेवा में प्रयोग किया जाना था।

20 किलो सोना, एक कुंतल चांदी से पांच साल में बना

सेठ हर गुलाल के वंशज राधेश्याम बेरीवाला बताते हैं कि उनके पिता ठाकुरजी के परम भक्त थे और उनके दर्शन किए बिना अन्न का दाना भी स्वीकार नहीं करते थे। उन्होंने बताया, उस जमाने में सोने-चांदी का हिंडोला बनवाने में 20 किलो सोना व करीब एक कुंतल चांदी प्रयोग की गई थी। हिंडोला के निर्माण में 25 लाख रुपये खर्च हुए। हिंडोला 1942 में बनना शुरू हुआ और 1947 में तैयार हुआ।

वाराणसी के कारीगरों ने बनाया था हिंडोला

हिंडोले के लिए वाराणसी के प्रसिद्ध कारीगर लल्लन व बाबूलाल को बुलाया गया था। जिन्होंने टनकपुर (पिथौरागढ़) के जंगलों से शीशम की लकड़ी मंगवाई। इस लकड़ी को कटाने के बाद पहले दो साल तक सुखाया गया, फिर हिंडोले के निर्माण का कार्य शुरू किया गया।

बीस कारीगरों ने पांच वर्ष तक कार्य किया। हिंडोले के ढांचे के निर्माण के पश्चात उस पर सोने व चांदी के पत्र चढ़ाए गए। स्वर्ण हिंडोले के अलग-अलग 130 भाग हैं। हिंडोले के साथ में चार मानव कद की सखियां भी मौजूद हैं। स्वर्ण-रजत झूले का मुख्य आकर्षण फूल-पत्तियों के बेल-बूटे, हाथी-मोर आदि हैं। 

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