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Rana Sanga: इस पहाड़ी पर आज भी है राणा सांगा की वीरता की छाप, इस मैदान ने बदल दी थी भारतीय इतिहास की धारा

राजस्थान और उप्र की सीमा पर बसा खानवा आज एक ग्राम पंचायत खनुआं है। यहां पहाड़ी पर वही खानवा का मैदान है जिसने भारत के भाग्य को करवट लेते देखा। पहाड़ी पर बना राणा का स्मारक युद्ध में उनके शौर्य का जीवंत दस्तावेज है।

By Prateek GuptaEdited By: Updated: Wed, 25 Nov 2020 09:04 AM (IST)
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खानवा की वह पहाड़ी, जहां राणा सांगा और बाबर के बीच युद्ध हुआ था। फोटो: जागरण

आगरा, योगेश जादौन। खानवा, इस नाम से आज कम लोग ही वाकिफ होंगे। खानवा, हिंदुस्तानी तवारीख का बुलंद मरकज है। वह मैदान जहां राणा के शौर्य को मुगल आक्रमणकारी बाबर की सेना ने देखा। जिसके तीखे हमलों से दुश्मन की सेना एकबारगी थर्रा उठी। वह वीर जो एक आंख, एक हाथ के साथ 56 घाव लिए दुश्मन से लड़ता रहा। खानवा के इस मैदान में राणा के शौर्य की छाप आज भी है। यह युद्ध भारतीय इतिहास में खानवा के युद्ध के नाम से दर्ज है। राणा का दुर्भाग्य रहा कि वह हार गए, लेकिन खानवा के मैदान ने भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया।

राजस्थान और उप्र की सीमा पर बसा खानवा आज एक ग्राम पंचायत खनुआं है। भरतपुर से यह 23 और फतेहपुर सीकरी से इसकी दूरी 16 किलोमीटर है। एनएच-123 से जाता यह वही रास्ता है जो उस मैदान तक ले जाएगा जिसकी प्रसिद्धि हमें यहां तक खींच लाई है। गांव के पश्चिमी छोर पर वही पहाड़ी है जिसने भारत के भाग्य को करवट लेते देखा। इसकी चट्टानों पर गोला बारूद के निशान आज भी उस युद्ध के जख्मों की गवाही देते हैं। पहाड़ी पर बना राणा का स्मारक युद्ध में उनके शौर्य का जीवंत दस्तावेज है। पहाड़ी और गंभीर नदी के बीच दूर-दूर तक फैले यह खेत कभी मैदान थे। इसी मैदान में राणा सांगा और बाबर की सेनाएं टकराईं।

उजबेकिस्तान में एक छोटी सी रियासत का शासक जहीरउद्दीन मोहम्मद बाबर पानीपत युद्ध में इब्राहीम लोदी को हराकर दिल्ली और आगरा का शासक बन बैठा था। मेवाड़ के शासक राणा सांगा पहले ही इब्राहीम को हरा चुके थे। ऐसे में भारत पर आधिपत्य के लिए सांगा और बाबर में संघर्ष जरूरी हो गया था।

खानावा निवासी सेवानिवृत्त शिक्षक नेमीचंद शर्मा बताते हैं कि राणा ने बाबर से मुकाबले को राजपूत राजाओं को इकट्ठा करना शुरू किया। करीब 24 राजपूत राजा उनके नेतृत्व में आने को तैयार हो गए। सेना इकट्ठा कर राणा ने बयाना पर कब्जा कर बाबर को चुनौती दी। बाबर की सेना को यहां हार मिली। राणा की सैन्य शक्ति को देख बाबर ने कूटनीति का सहारा लिया। उसने राणा के सहयोगी मेवात के शासक हसन खां मेवाती को दोस्ती का प्रस्ताव भेजा। इसे उस स्वाभिमानी मेवाती ने ठुकरा दिया। इस पर बाबर ने राणा से संधि का प्रस्ताव रखा। राणा ने इसे अस्वीकार कर दिया। राणा बयाना में कब्जा कर खानवा में आ डटा।

बाबर ने खाई कसम, दिया जिहाद का नारा

राणा से बयाना में मिली हार और उसकी विशाल अनुमानित दो लाख की सैन्य शक्ति से मुगल सेना डरी हुई थी। ऐसे में बाबर ने चतुराई से काम लिया। सैनिकों में जोश भरने के लिए जिहाद का नारा दिया। शराब के बर्तनों को तोड़कर उसे न पीने की कसम खाई। मुसलमानों से वसूले जाने वाला कर तमगा उठा लिया। जोश से भरी बाबर की सेना भी सीकरी से चलकर खानवा के मैदान में आ गई।

16 मार्च 1527

इस दिन सूरज वह सबेरा लेकर आया जिसने राणा की तकदीर में अंधेरा भर दिया। युद्ध में बाबर ने तुगलामा युद्धनीति का इस्तेमाल किया। यह कला उसने चगताई शासक शैवानी खान से लगातार युद्ध करते हुए सीखी थी। इस नीति में घुड़सवारों की एक टुकड़ी को निर्णायक समय पर दुश्मन की सेना को पीछे से घेरना के लिए रखा जाता है। बाबर के पास 80 हजार की सेना के साथ अली कुली, चिन तिमूर, मेहंदी हसन, हुमायूं जैसे सेनापति मौजूद थे। मुस्तफा रूमी 50 तोपों के तोपखाने के साथ था।

राणा सांगा के साथ मेवात का शासक हसन खां, चंदेरी का शासक मेदिनी राय, महमूद लोधी, आमेर, जोधपुर, हलवद, डूंगरपुर, ईडर, मैनपुरी सहित 24 वीर राजपूत राजाओं के साथ करीब दो लाख की सेना थी। सांगा की सेना दोपहर तक खूब वीरता से लड़ी। एक हाथ और एक आंख के बिना सांगा की शूरता दुश्मन को भी अचंभित कर रही थी। बाबर की हार निश्चित लग रही थी कि मुस्तफा रूमी के तोपखाने ने आग उगलना शुरू कर दिया। तुगलामा की आरक्षित टुकड़ी ने हमला कर दिया। राणा हाथी पर सवार होकर युद्ध कर रहे थे। गहरी चोट लगने से वह बेहोश हो गए। राणा के सहयोगी कछवाहा राजा पृथ्वीराज कछवाहा ने उन्हें युद्ध से हटा लिया। सांगा को न देख राजपूूत सेना में भगदड़ मच गई। युद्ध का पासा पलट गया। राव अज्जा राणा के कपड़े पहनकर लड़े और वीरगति को प्राप्त हुए। शाम ढलने से पहले मेवाड़ की कीर्ति का सूरज अस्त हो चुका था। राणा को मेवाड़ के कल्पी में होश आया। वह फिर बाबर से मोर्चा लेने की तैयारी करने लगा कि उसके ही किसी सरदार ने उन्हें जहर देकर मार दिया। इसके साथ ही हिंद के पटल पर मुगलिया सल्तनत की जड़ें फैलना शुरू हो गईं।

राणा के शौर्य का स्मारक

बाबर की जीत वह सच है जो इतिहास में दर्ज हो चुका है। मगर, खानवा में भूरे पत्थर की यह पहाड़ी राणा के शौर्य को कभी नहीं भूली। नए भारत की युवा पीढ़ी उनकी वीर गाथाओं का पुनर्पाठ कर रही है। जिस पहाड़ी से बाबर के तोपखाने ने गोले बरसाकर जीत लिखी आज उसी पर राणा की कीर्ति का स्मारक खड़ा है।

स्मारक की सुरक्षा में तैनात संदीप बताते हैं कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के समय 2007 में यहां राणा के शौर्य का स्मारक बनाने की आधारशिला रखी गई। 2015 में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने इसका उद्घाटन किया। पहाड़ी की चोटी पर घोड़े पर सवार राणा सांगा की आदमकद मूर्ति है।

इसके एक तरफ मेदिनीराय और दूसरी तरफ हसनखां मेवाती हैं। पहाड़ी के चारों और उन 24 राजपूत राजाओं की संगमरमर की मूर्तियां हैं जिन्होंने राणा का इस युद्ध में साथ दिया। स्मारक के पीछे राणा की छतरी है। पूरी पहाड़ी राणा के शौर्य की कीर्ति गा रही है लेकिन बाबर कहीं नहीं।

खानवा में राणा की कीर्ति का यह स्मारक खड़ा तो कर दिया लेकिन शायद हम अपने हिस्से का काम भूल गए। 2015 में इसकी शुरुआत के बाद इस तरफ ध्यान नहीं दिया गया। नतीजा मूर्तियां बदरंग हो चली हैं। स्मारक के कई पत्थर टूट चुके हैं और हरियाली गायब है। इस स्थान का उस तरह से विकास नहीं किया जा सका है जैसी परिकल्पना की गई थी। अब इसे फतेहपुर सीकरी स्मारक सर्किट से जोड़े जाने की बात चल रही है। फिलहाल तो अनदेखी से यह स्मारक पर्यटकों का ध्यान नहीं खींच पा रहा है।

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