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कैप्टन शुभम गुप्ता का बलिदान; साथियों ने बताई मुठभेड़ की कहानी, कैप्टन प्रांजल को बचाने गए थे पैरा कमांडो, आखिरी सांस तक लिया मोर्चा

Agra Latest News In Hindi कैप्टन शुभम गुप्ता को सेना की वर्दी पहनने का बचपन से जुनून रहा। देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा रहा। परिवार के लोग भी उनके इस जुनून को जानते थे। सेना की वर्दी पहनने का सपना पूरा करने में उनका साथ दिया। जिला शासकीय अधिवक्ता (डीजीसी) फौजदारी बसंत गुप्ता के दो सुपुत्राें में 26 वर्षीय शुभम गुप्ता बड़े थे।

By amit dixitEdited By: Abhishek SaxenaUpdated: Sat, 25 Nov 2023 07:41 AM (IST)
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सच हुई बात, दोस्तों और देश के लिए मर मिटा शुभम
जागरण संवाददाता आगरा। वह यारों का यार था। उसे किसी से डर नहीं लगता था। 20 नवंबर की शाम को या फिर 21 नवंबर की दोपहर। शुभम ने एक ही बात कही थी। आज भी यह बात कानों में गूंजती हैं। याद रखना दोस्तों। एक दिन आएगा जब अपने दोस्तों और देश के लिए जान दे दूंगा। कुछ भी हो जाए, कदम पीछे नहीं हटेंगे।

आखिरी सांस तक मेरे रहते तुम लोगों को कोई छू भी नहीं सकेगा। कैप्टन प्रांजल को बचाने के लिए शुभम अपनी जान पर खेल गया। यह शब्द हैं 9 पैरा के शुभम के साथियों के। आखिरी वक्त में भी शुभम का साथ दे रहे थे। दोस्ती और देश के लिए जान देने वाले शुभम पर नाज था।

9 पैरा के एक सदस्य ने बताया 

9 पैरा, विशेष बल एक सदस्य ने बताया कि शुभम गुप्ता अपने दोस्तों के लिए कुछ भी कर सकता था। अगर कोई दोस्त उदास होता तो शुभम उससे बात करता। उदासी का कारण पूछता और फिर जो भी बन पड़ता, उसके लिए वह कार्य कर देता था। शुभम की यही अदा हर किसी को पसंद थी। वह भले ही कैप्टन था लेकिन उसका व्यवहार इतना शालीन था कि हर जवान सुख-दुख की बातें करता था।

ऑपरेशन की बात

शुभम के साथी ने बताया कि बुधवार सुबह नौ बजे से गुलाबगढ़ के जंगल, राजौरी में आपरेशन शुरू हुआ था। कैप्टन प्रांजल एक टीम के साथ घर में घुस गए। उस घर के निचले हिस्से में आतंकी छुपे हुए थे। आतंकियों ने अधाधुंध फायरिंग की। इससे कैप्टन बलिदान हो गए। जैसे ही इसकी जानकारी शुभम को हुई। उनसे रहा नहीं गया। शुभम अपने दोस्त की हर तरीके से मदद करना चाहते थे।

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पैरा कमांडो शुभम एक हवलदार के साथ घर में घुसे और फिर गोलियां की आवाज सुनाई पड़ने लगी। कुछ देर के बाद आवाज थमी तो शुभम बाहर नहीं आ सके।

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एक अन्य साथी ने बताया कि शुभम ने जो किया। वह कार्य आसान नहीं है। इस सप्ताह जिस तरीके से वह बाते कहते थे। उसे सच साबित किया। वह यही कहते थे कि दोस्तों और देश के लिए एक दिन जान दे दूंगा। प्रशिक्षक राजन नोएडा से आगरा आए थे। वह भी आखिरी वक्त में शुभम को विदाई देना चाहते थे। उसकी एक झलक देखना चाहते थे।

राजन ने बताया कि कमांडो शुभम हर परिस्थिति से निपटने में समक्ष थे। आगे बढ़कर आतंकियों का मुकाबला करने वाले थे। उनके लिए दोस्त और देश सर्वोच्च था।

कुआंखेड़ा में बनेगा शुभम का स्मारक 

कुआंखेड़ा स्थित ग्राम समाज की एक बीघा से अधिक भूमि पर कैप्टन शुभम गुप्ता का स्मारक बनेगा। शुक्रवार सुबह सात बजे से सेना और तहसील प्रशासन की टीम ने भूमि को समतल करना शुरू कर दिया। सड़क की भी मरम्मत की गई। निर्धारित स्थल पर रात में अंतिम संस्कार किया गया। कुआंखेड़ा में यह दूसरा स्मारक होगा। वर्ष 2000 में जवान राधेश्याम यादव मणिपुर में बम विस्फोट में बलिदान हो गए थे। राधेश्याम का स्मारक बना हुआ है। इससे कुछ दूरी पर ही शुभम का भी स्मारक जल्द बनेगा।

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