Dev Uthan Ekadashi 2022: आज जागेंगे देव, देवउठनी एकादशी पर जानिए क्या है पूजन विधि और व्रत कथा
Dev Uthan Ekadashi 2022 मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार माह शयन के बाद जागते हैं। भगवान विष्णु के शयनकाल के चार मास में विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं होते। आज से शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे।
By Prateek GuptaEdited By: Updated: Fri, 04 Nov 2022 08:06 AM (IST)
आगरा, जागरण संवाददाता। आज यानि शुक्रवार को देवाेत्थान एकादशी है। कुछ जगहाें पर इसे देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि आज के दिन भगवान विष्णु चार माह शयन के बाद जागेंगे। उनके शयन काल के दौरान सभी मांगलिक कार्य बंद रहते हैं और आज के बाद विवाह आदि मांगलिक कार्य आरंभ होंगे। इसी के चलते आज से शादियाें का सीजन भी शुरू होने जा रहा है। आगरा में अधिकांशतः मैरिज होम आज बुक हैं।
ज्योतिषशास्त्री पंकज प्रभु के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं, इसीलिए इसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार माह शयन के बाद जागते हैं। भगवान विष्णु के शयनकाल के चार मास में विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं, इसीलिए देवोत्थान एकादशी पर भगवान हरि के जागने के बाद शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है। आगरा के प्राचीन मनकामेश्वर मंदिर में आज तुलसी और सालिग्राम का विवाह संपन्न कराया जाएगा।
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देवोत्थान एकादशी व्रत और पूजा विधि
1- इस दिन प्रातः काल उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए।
2- घर की सफाई के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाना चाहिए।
3- एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल, मिठाई, बेर, सिंघाड़े, ऋतुफल और गन्ना उस स्थान पर रखकर उसे डलिया से ढांक देना चाहिए।4- इस दिन रात्रि में घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाना चाहिए।5- रात्रि के समय परिवार के सभी सदस्य को भगवान विष्णु समेत सभी देवी- देवताओं का पूजन करना चाहिए।
6- इसके बाद भगवान को शंख, घंटा, घड़ियाल आदि बजाकर उठाना चाहिए और ये वाक्य दोहराना चाहिए उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाये कार्तिक मास।
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देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है। तुलसी के वृक्ष और शालिग्राम की यह शादी सामान्य विवाह की तरह पूरे धूमधाम से की जाती है। चूंकि तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं इसलिए देवता जब जागते हैं तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का आह्वान करना। शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपत्तियों के कन्या नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें।