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कालबेलिया से सब को थिरका देने वालीं पद्मश्री गुलाबो सपेरा ने खोला बड़ा राज, जन्‍म लेते ही कर दी गई थीं जिंदा दफन

पद्मश्री गुलाबो सपेरा के कालबेलिया पर आगरा में जमकर थिरके दर्शक। ताज महोत्‍सव में 20 कलाकारों की टीम के साथ प्रस्तुत किए चरी घूमर व बंजारा नृत्य। जन्म के बाद जिंदा दफन कर दिया गया था उठाई परेशानी।

By Prateek GuptaEdited By: Updated: Sat, 26 Mar 2022 09:33 AM (IST)
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ताज महोत्‍सव में कालबेलिया नृत्‍य करतीं पद्मश्री गुलाबो सपेरा।
आगरा, जागरण संवाददाता। ताज महोत्सव में शिल्पग्राम उस कलाकार के नृत्य कौशल का साक्षी बना, जिनका जीवन संघर्ष किसी साधना से कम नहीं है। जिनके जन्म के बाद उन्हें जिंदा दफन कर दिया गया था। मां की ममता ने उनके जीवन की डोर थामे रखी तो सांपों का झूठा दूध पीकर वह बड़ी हुईं। अपने कौशल को दुनिया के सामने लाने को उन्हें पहचान तक छुपानी पड़ी। आज सारी दुनिया कालबेलिया नृत्य के लिए उन्हें जानती है। जी हां, हम बात कर रहे हैं पद्मश्री गुलाबो सपेरा की, जिन्होंने 20 साथी कलाकारों के साथ न भूलने वाली प्रस्तुतियां देकर महोत्सव में रंग जमाया तो शिल्पग्राम थिरक उठा।

गुलाबो सपेरा ने शुरुआत गणेश वंदना घर में पधारो गजानन म्हारे... से की। इसके बाद स्वागत गान केसरिया बालम पधारो म्हारे देश... पर उन्होंने साथी कलाकारों के साथ प्रस्तुति दी। चरी नृत्य, घूमर नृत्य और बंजारा नृत्य की प्रस्तुतियां हुईं तो दर्शक झूमने लगे। अंत में उन्होंने कालबेलिया नृत्य की प्रस्तुति दी तो डांस के स्टेप्स देखकर दर्शक चकित नजर आए। निरंतर तालियां गूंजती रहीं। कार्यक्रम समन्वयक दिनेश श्रीवास्तव रहे और संचालन श्रुति सिन्हा ने किया।

सांस्‍कृतिक प्रस्‍तुतियों के लिए आगरा किला में रात को ऐसा नजारा रहा। 

लोक कलाओं को बचाने के लिए संस्कृति को जीवंत रखना होगा

गुलाबो सपेरा ने कहा कि आजकल बच्चे टीवी शो और रियलिटी शो देखकर स्वयं को ढालते हैं। आजकल के शो में डांस के लिए जिमनास्ट में निपुण होने पर विशेष जोर दिया जाता है। विलुप्त हो रही लोक कलाओं को बचाने के लिए संस्कृति को जीवंत रखना होगा। केंद्र सरकार को चाहिए कि वह हर राज्य की विशेषता व सांस्कृतिक विधाओं के उत्सवों को बढ़ावा दे, जिससे कि लोक कलाएं बच सकें।

पद्मश्री गुलाबो सपेरा ने शिल्पग्राम स्थित ग्रीन रूम में वार्ता करते हुए यह बात कही। उन्होंने अपने संघर्ष को बयां करते हुए कहा कि उनका जन्म अजमेर में हुआ था। जब वह पैदा हुईं तो उन्हें जिंदा दफना दिया गया था। पांच घंटे तक वह जमीन में दबी रहीं, बाद में उनकी मां ने उन्हें निकाला। उनके समाज में लोग लड़कियों को पैदा करना अपराध समझा करते थे। उन्होंने 1981 में पहली प्रस्तुति पुष्कर में दी और 1985 में पहली बार अमेरिका गईं। कन्याओं के संरक्षण व समाज में व्याप्त कन्या हत्या की कुरीति को दूर करने के लिए उन्होंने मुहिम चलाई। आज कन्या हत्या बंद हो गई है और समाज की कन्याएं उच्च शिक्षा प्राप्त करने लगी हैं। ताज महोत्सव में प्रस्तुति के सवाल पर उन्होंने कहा कि वह सुबह भीलवाड़ा में थीं। जब आगरा में प्रस्तुति की जानकारी उन्हें मिली तो वह उमंग और उत्साह से भर उठीं। कोरोना काल में दो वर्ष में हम लोग घबराकर घर में बंद हो गए थे। आगरा में आकर लगा कि जैसे आजाद हो गई हूं। आगरा के लोगों को प्यार यहां खींच लाया।

पाई डंडा नृत्य की हुई प्रस्तुति

रमेश पाल प्रसाद ने 12 कलाकारों के साथ दीवारी नृत्य पाई डंडा की प्रस्तुति दी। यह नृत्य भगवान श्रीकृष्ण के समय से द्वापर युग से चला आ रहा है। लाठी-डंडों से दीवारी नृत्य खेला। जिमनास्टिक का प्रदर्शन किया। निराधारी, गुजरात, उल्टी, बैसड़ी, सौपली और सरई का प्रदर्शन किया तो दर्शक तालियां बजा उठे। राधा प्रजापति ने बुंदेली राई नृत्य, शृंगार गीत की प्रस्तुति दी।

कथक के साथ गूंजे तराने

प्राच्य संगीत कला केंद्र की नृत्यांगनाओं ने होली को समर्पित कथक नृत्य की प्रस्तुति दी। पूरिया धानश्री की बंदिश पायलिया झंकार मोरी..., झनक झनक झनन झनन बाजे झंकार और होली खेलें राजदुलारे... पर नृत्य प्रस्तुति हुई। शंपा गांगुली ने गायन की प्रस्तुति दी। उन्होंने रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ..., तुम न जाने किस जहां में खो गए... आजा रे परदेसी मैं तो कब से खड़ी तेरे द्वार... उन्होंने सुनाए तो तालियां गूंज उठीं। ओजस्विनी यादव ने कथक में तराना प्रस्तुत किया। तनिष्क व आराध्य ने हैलो कौन..., आराध्य ने ऐ भाई जरा देख के चलो..., शलभ कुलश्रेष्ठ ने ये मेरा दीवानापन है..., गोविंद सिंह बिष्ट ने तुम अगर साथ देने का वादा करो... गीत सुनाए। ग्वालियर से आए हितेंद्र श्रीवास्तव ने तबला वादन में तीन ताल-उठान, गत, फर्द की प्रस्तुति दी। उनके साथ हारमोनियम पर रवींद्र तलेगांवकर ने संगत की। भंवर सिंह खींची ने सितार वादन किया।

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