Ram Leela: कोरोना काल में केवल ऑनलाइन रामलीला, घर में रहते हुए देख रहे प्रभु की लीला
Ram Leela करीब 135 वर्ष पुरानी है आगरा की रामलीला। फेसबुक व यूट्यूब पर शेयर किए जा रहे लिंक। इतिहास में दूसरी बार हो रहा रामलीला का मंचन नहीं हो सका। इससे पहले 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान नहीं हुआ था आयोजन।
By Prateek GuptaEdited By: Updated: Sun, 11 Oct 2020 11:53 AM (IST)
आगरा, निर्लोष कुमार। कोरोना काल में भगवान भी भक्तों से दूर हैं। जन-जन के आराध्य प्रभु श्रीराम की हर वर्ष निकलने वाली बरात के स्वागत में पलक-पांवड़े बिछाने वाले शहरवासी केवल ऑनलाइन रामलीला देख पा रहे हैं। करीब 135 वर्ष पुरानी रामलीला के फेसबुक व यूट्यूब पर शेयर किए जा रहे लिंक ही श्रद्धालुओं के लिए इस बार प्रसाद के समान हो गए हैं। घर पर ही रामलीला देखकर श्रद्धालु अपने को सौभाग्यशाली समझ रहे हैं।
आगरा की करीब 135 वर्ष पुरानी रामलीला को अपनी भव्यता के लिए पूरे उत्तर भारत में जाना जाता है। प्रभु श्रीराम की भव्य बरात और जनकपुरी के तो कहने ही क्या। वर्ष दर वर्ष इसकी भव्यता बढ़ती ही गई, लेकिन शुरुआत में इसका ऐसा स्वरूप नहीं था। एक शताब्दी से भी अधिक के समय में रामलीला में कई बदलाव हुए हैं। रामलीला का मंचन पहले रावतपाड़ा स्थित लाला चन्नोमल की बारादरी में होता था। वनवास के बाद की लीलाएं आगरा किला के सामने स्थित रामलीला मैदान में होती थीं। करीब आठ दशक पूर्व सभी लीलाओं का मंचन रामलीला मैदान में किया जाने लगा। 80 के दशक में जनकपुरी सजाने की शुरुआत होने से इसे और भव्य रूप मिला। इस बार कोरोना काल में रामलीला का मंचन नहीं हो रहा है। राम बरात व जनकपुरी जैसे आयोजन भी नहीं होंगे। श्रद्धालुओं की भावनाओं को देखते हुए रामलीला कमेटी प्रभु श्रीराम की लीलाओं का प्रसारण ऑनलाइन कर रही है। कमेटी के फेसबुक पेज के साथ यूट्यूब पर प्रतिदिन पिछले वर्ष हुई लीला के लिंक शेयर किए जा रहे हैं। श्रद्धालुओं द्वारा इसे पसंद किया जा रहा है। घर में रहते हुए अपनी सुविधा अनुसार वो लीलाओं को देख रहे हैं।
कमेटी के महामंत्री श्रीभगवान अग्रवाल ने बताया कि कोरोना काल में रामलीला का मंचन संभव नहीं है। इसके चलते फेसबुक, वाट्सएप, यूट्यूब के माध्यम से श्रद्धालुओं को रामलीला दिखाई जा रही है। श्रद्धालु घर बैठे प्रभु श्रीराम की लीलाओं का आनंद ले सकते हैं।
हाथियों पर निकलते थे स्वरूपराम बरात में पूर्व में हाथियों पर भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के स्वरूप 10 वर्ष पूर्व तक हाथियों पर सवार होकर निकलते थे। इस पर रोक लगने के बाद हाथियों की जगह रथों ने ले ली। रामलीला कमेटी ने फाइबर का हाथी भी तैयार कराया था, लेकिन वो प्रयोग सफल नहीं रहा।
चांदी का है रथरामलीला कमेटी ने वर्ष 1978 में चांदी का रथ तैयार कराया था। यह रथ रामबरात में आकर्षण का केंद्र रहता है। इस पर भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी के स्वरूप विराजमान होते हैं।आ चुके हैं व्यवधानरामलीला में इस वर्ष कोरोना की वजह से व्यवधान आया है। इससे पूर्व भारत-पाकिस्तान युद्ध, 1965 के दौरान रामलीला का मंचन नहीं हो सका था। तब रावतपाड़ा स्थित लाला चन्नोमल की बारादरी में रामचरितमानस का मास पारायण पाठ कराया गया था। इस बार भी बारादरी में रामचरितमानस का पाठ किया जा रहा है। इससे पूर्व वर्ष 1913 में रावण की दुहाई में सांप्रदायिक टकराव होने से दिक्कत आई थी। तब कमेटी के पदाधिकारियों ने स्वयं ढोल-ताशे बजाते हुए रावण की दुहाई निकाली थी।
पहली बार 1904 में हुआ था चुनावरामलीला की शुरुआत लाला भगवान जी, लाला गिर्राज किशोर, मुंशी शिवनारायन ने कराई थी। वर्ष 1904 में रामलीला कमेटी का पहली बार चुनाव हुआ था और लाला बांकेलाल मंत्री चुने गए। वर्ष 1911 से 1934 तक लाला कोकामल द्वारा रामलीला को संवारा गया। उनके समय में ही रामलीला मैदान का छावनी से अधिग्रहण कराकर मैदान को संवारा गया और किनारे पर सीढ़ियां बनवाई गईं। लाला कोकामल 1965 तक रामलीला कमेटी के मंत्री रहे।
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