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आगरा की सेठ गली जहां दूर-दूर से आते हैं स्वाद के शौकीन, खींच लाती है मिठाई की महक, फेमस है रस मलाई और राजभोग

मोहब्बत की नगरी आगरा को ताजमहल की खूबसूरती के लिए ही नहीं बल्कि स्वाद और जायके के लिए भी जानते हैं। आगरा की सेठ गली स्वाद के लिए यूपी ही नहीं पूरे देश में मशहूर है। आज भी जायका खींचता है।

By Abhishek SaxenaEdited By: Updated: Sat, 09 Jul 2022 05:14 PM (IST)
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Agra Sweet Shop: सेठ गली की मिठाई की दुकानों पर उमड़ती थी भीड़
आगरा, जागरण टीम। ताजमहल के शहर आगरा में पेठा ही नहीं बल्कि मिठाइयों का स्वाद भी लोगों को अपनी ओर खींचता है। आगरा में पुराने शहर कोतवाली की संकरी सेठ गली में घुसते ही मिठाईयों की महक से मन मचल उठता है। पुराने शहर के इस हिस्से को लोग चटपटी चाट गली के नाम से भी जानते हैं। सेठ गली की मिठाइयों का इतिहास लगभग 150 साल पुराना है। समय बदला लेकिन मिठाई स्वाद तो शायद नहीं बदला।

सेठ गली की मिठाइयों में प्रसिद्ध है रस मलाई, राजभोग और छेना

सेठ गली की मिठाइयों की बात करें तो यहां की रस मलाई, राजभोग, छेना बहुत प्रसिद्ध है। राजभोग और रस मलाई तो इस गली की पहचान है। रबड़ी, गाजर का हलवा, मूंग का हलवा, पिस्ते का हलवा, खुरचन और लड्डू का स्वाद भी लोगों को भाता है।

कभी मिलता था चार आना का देशी घी का भल्ला, दो रुपये किलो हलवा

सेठ गली में अपनी जिंदगी के 75 साल बिताने वाले राजेंद्र प्रसाद गुप्ता से यहां की मिठाइयों की बात करते ही वह पूरी फेहरिस्त बताने लगते हैं। मूंग का हलवा, पिस्ते की बर्फी और जलेबी देशी घी की मिलती थी। तब देशी घी पांच रुपये किलो था। देशी घी हाथरस से आता था। हलवा दो रुपये किलो मिलता था।

चार आना का देशी घी का भल्ला मिलता था। हर सोमवार को दिल्ली वाला यहां आकर अपनी ठेल लगाता था। दो आना की गुझिया, छोले डालकर देता था। गली में मिठाई, दूध और चाट की 12 से 15 दुकानें लाइन से थीं।

24 घंटे में सिर्फ दो घंटे के लिए बंद होती थी दुकानें

अस्सी और नब्बे के दशक तक सेठ गली में मिठाई और चाट की दुकानें 24 घंटे में सिर्फ दो घंटे के लिए बंद होती थीं। सुबह चार बजे से रात दो बजे तक तक सभी दुकानें खुली रहती थीं। इसका कारण आसपास की टाकीजों से नाइट शो खत्म होने के बाद वहां से निकलने वाले दर्शकों का इन गलियों में आना था। वह अपने परिवार के साथ चाट और मिठाई खाने रात दो बजे तक दुकानों पर आते थे।

मशहूर थे सेठ गल्ली के भल्ले, अब वह दुकान बंद हो गई

सेठ गली के भल्ले पूरे शहर में मशहूर थे। स्वाद के शौकीन लोग यहां पर दूर-दूर से आते थे। लगभग तीन साल पहले भल्लों की दोनों दुकानें बंद हो गईं। हालांकि एक दुकान अब भी खुलती है। स्वाद के शौकीन लोगों की भीड़ अब रोज शाम को इसी दुकान पर जुटती है।

सेठ गली से हुई थी मिठाई के कारोबार की शुरुआत

सेठ गली के मोड़ पर ही राज बहादुर की करीब 50 साल पुरानी मिठाई की दुकान है। दुकान पर बैठने वाले कमल बताते हैं मुगलों की राजधानी रही ताजनगरी में मिठाई के कारोबार की शुरुआत सेठ गली से हुई थी। संकरी सेठ गली से होता हुआ यह कारोबार बाद में पूरे शहर में फैल गया।

तीन दशक पहले थीं एक दर्जन दुकानें

सेठ गली में नब्बे के दशक तक करीब एक दर्जन दुकानें थीं। जहां सुबह से लेकर रात तक ग्राहकों की भीड़ जुटी रहती थी। अब इस गली में छोटी-बड़ी आधा दर्जन दुकानें ही बची हैं। अधिकांश ने मिठाई की जगह प्रिटिंग का काम अपना लिया है। इसका कारण लोगाें का फास्ट फूड की ओर झुकाव होना है।

पूरे बाजार में तैरती रहती थी महक

सेठ गली के रहने वाले 57 साल के राजीव गुप्ता बताते हैं एक जमाने में यहां बनने वाली मिठाई की महक पूरे बाजार में तैरती रहती थी। बाजार आने वाले लोगों को उसकी महक ही इस गली तक खींच कर ले आती थी। मिठाइयों की कीमतें अब इतनी ज्यादा हो गई हैं कि उन्हें खरीदने में ही दांत खट्ठे हो जाते हैं।

जितने की मिठाई नहीं, उतने को पेट्रोल खर्च करके आते हैं

ऐसा नहीं है कि सेठ गली की मिठाइयों के शौकीन सिर्फ पुराने लोग ही हैं। खंदारी के संजीव शर्मा, लायर्स कालोनी के नीरज गुप्ता भी यहां की रसमलाई और राजभोग के शौकीन है। नीरज गुप्ता कहते हैं कि यहां की बात ही निराली है, यही कारण है कि जितने की मिठाई नहीं उससे ज्यादा का पेट्रोल खर्च करके वह यहां पर आते हैं।

तीन दशकों से आ रहे यहां

आगरा के सिकंदरा के आवास विकास कालोनी निवासी लकी जेटवानी बताते हैं कि उन्हें तीस साल से सेठ गली की मिठाइयों का जायका खींच कर ले आता है। वह एक बार यहां पर आए थे, कुछ मिठाईयां खरीदकर ले गए थे। उन्हें और परिवार के लोगाें को इसका स्वाद इतना भाया कि घर के लिए आज भी यहां से मिठाइयां खरीदते हैं। 

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