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Famous Temples In Agra: एक ऐसा मंदिर जहां स्थापित हैं कैलाश से आए दो शिवलिंग, रोचक है इतिहास

Famous Temples In Agra एक ओर जहां विश्व प्रसिद्ध ताजमहल है तो वहीं दूसरी ओर प्राचीन मंदिर भी हैं। भगवान भोलेनाथ शहर को अपना आशीर्वाद देते हैं। प्राचीन शिवालयों का अपना एक इतिहास भी है जो स्थानीय ही नहीं दूर-दराज से आए लोगों को भी अपनी ओर आकर्षित करता है।

By Abhishek SaxenaEdited By: Updated: Fri, 17 Jun 2022 05:01 PM (IST)
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शहर में कैलाश पर्वत से आए दो शिवलिंग आगरा-मथुरा के रोड कैलाश मंदिर में लोगों की आस्था का केंद्र हैं।
आगरा, जागरण टीम। महादेव की असीम कृपा आगरा पर बरसती है। कभी मुगलों की राजधानी रही आगरा में दुनिया के सबसे खूबसूरत स्मारक को देखने लोग आते हैं तो यहां के शिव मंदिर पर भी देश के कोने-कोने से आस्था उमड़ती है। भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर आगरा में स्थापित है जहां शिव की विशेष कृपा उनके भक्तों को मिलती है। आगरा मथुरा हाइवे स्थित प्राचीन कैलाश मंदिर है।

भगवान शिव के दो शिवलिंग

यमुना किनारे के स्थापित इस मंदिर में भगवान के दो शिवलिंग हैं। इन दो शिवलिंगों को म​हर्षि परशुराम और उनके पिता जमदग्नि कैलाश पर्वत से साथ लेकर आए थे। मान्यता है कि त्रेतायुग में म​हर्षि परशुराम और उनके पिता जमदग्नि ने भगवान शिव को तपस्या से प्रसन्न किया तो शिव ने उनसे वरदान मांगने को कहा। तब परशुराम ने उनसे साथ चलने का आग्रह किया।

कैलाश के कण-कण में विराजमान शिव

शिव ने कहा कि मैं कैलाश पर्वत के कणकण में विराजमान हूं, ये कहते हुए भगवान भोले ने पिता-​पुत्र को कैलाश की रज के कण से बने एक-एक शिवलिंग दोनों के हाथों में थमाए। दोनों शिवलिंग लेकर भगवान परशुराम और उनके पिता रुनकता स्थित रेणुका माता के आश्रम जाने लगे। अंधकार होने के कारण उन्होंने रुनकता से करीब चार किलोमीटर की दूर यमुना किनारे विश्राम किया था। यहां ये दोनों ​शिवलिंग रखे।

मान्यता के अनुसार सुबह जब दोनों उठे तो शिवलिंग वापस उठाने का प्रयास किया, लेकिन वे उसे हिला भी नहीं सके। थोड़ी देर में आकाशवाणी हुई कि मैं अचलेश्वर हूं। एक बार जहां स्थापित हो गया, फिर वहीं विराजमान हो जाता हूं। आज से यहां मेरी पूजा करें। इस स्थान को कैलाशधाम नाम से जाना जाएगा। तब से इस मंदिर को कैलाशधाम के नाम से जाना जाने लगा।

मिट्टी की परत जमने लगी

समय के साथ-साथ शिवलिंग पर मिट्टी की परत जमने लगी और ये काफी नीचे चले गए। समय समय पर इस स्थान पर मिट्टी से दूध निकलता था। लोगों को ये देखकर काफी हैरानी हुई। एक दिन उन्होंने उस स्थान की खुदाई करा डाली तो नीचे से दो शिवलिंग निकले। साथ ही एक ताम्रपत्र मिला जिस पर म​हर्षि परशुराम शिवलिंग का इतिहास लिखा था। उसके बाद यहां मंदिर का निर्माण कराया गया।

कहा जाता है कि इस मंदिर में भक्त सच्चे दिल से जो भी मांगते हैं वह उन्हें जरूर प्राप्त होता है। इसी मान्यता के साथ यहां हर सोमवार को दूर दूर से भक्त दर्शन के लिए आते हैं। वहीं शिवरात्रि पर देश विदेश से भी भक्तगण आकर शिव की विशेष पूजा अर्चना करते हैं।

दो सौ वर्ष से चल रही मेले की परंपरा

कैलाश मंदिर पर हर वर्ष सावन के सोमवार में मेले का आयोजन होता है। इस मेले की मान्यता है कि यह दो सौ वर्ष से लग रहा है। इसकी एक दिलचस्प कहानी भी है।

बताते हैं कि खेतरी महाराज की रानी जंगल मे शिकार खेलने आई थीं और वह सभी से बिछड़ गईं। जिसके बाद खेतरी महाराज के कैलाश मंदिर में आराधना करने के बाद ही उनकी रानी उन्हें वापस मिली थी। इससे प्रसन्न होकर उन्होंने मंदिर के विकास और यहां मेले की शुरुआत कराई थी।

अंग्रेज कलेक्टर ने घोषित किया था अवकाश

सावन के तीसरे सोमवार को कैलाश महादेव मंदिर पर मेले के दिन स्थानीय अवकाश रहता है। कथन है कि एक बार एक नि:संतान अंग्रेज कलेक्टर मंदिर पहुंचे थे। मंदिर में महंत के कहने पर उन्होंने यहां मन्नत मांगी थी। कैलाश महादेव के आशीर्वाद से उनके घर संतान हुई, जिसके बाद उन्होंने कैलाश मेले पर स्थानीय अवकाश घोषित कर दिया।

ऐसे पहुंचे यहां

कैलाश मंदिर आगरा मथुरा हाइवे स्थित यमुना किनारे पर है। हाईवे पर सिकंदरा से ये मंदिर करीब दो से तीन किलोमीटर की दूरी पर है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए सिकंदरा तिराहे से आटो, ई-रिक्शा की सुविधा है। 

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