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Famous Temples In Mathura: बलदेव में भगवान श्रीकृष्ण के भ्राता दाऊजी का मंदिर, विश्व प्रसिद्ध है हुरंगा और कोड़ेमार होली

Famous Temples In Mathura भगवान श्रीकृष्ण के भ्राता दाऊजी हैं जिन्हें बलदाऊ के नाम से जानते हैं। होली की शुरुआत श्रीकृष्ण के जन्मस्थली से हाेती है तो होली का अंत यानि हुरंगा दाऊजी पर केंद्रित होता है। बलदेव में दाऊजी का मंदिर बना है।

By Abhishek SaxenaEdited By: Updated: Mon, 04 Jul 2022 03:38 PM (IST)
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बलदेव में दाऊजी का मंदिर बना है।

आगरा, जागरण टीम। भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करने के बाद दाऊजी के दर्शन न किए तो ब्रज भ्रमण पूरा नहीं माना जाता है। ब्रज के कण-कण में जहां श्रीकृष्ण का वास है वहीं दाऊजी की भी विशेष कृपा भक्तों पर बरसती है। दाऊजी का ऐतिहासिक प्राचीन मंदिर बलदेव में बना है। मथुरा में यह 'वल्लभ सम्प्रदाय' का सबसे प्राचीन मंदिर है।

यमुना नदी के तट पर स्थित इस मंदिर में दाऊजी, मदन मोहन और अष्टभुज गोपाल के श्री विग्रह विराजमान हैं। दाऊजी या बलराम का मुख्य 'बलदेव मंदिर' मथुरा के ही बलदेव में है। मंदिर के चारों ओर सर्प की कुंडली की तरह परिक्रमा मार्ग में एक पूर्ण पल्लवित बाजार है। मंदिर के पीछे एक विशाल कुंड भी है, जो 'बलभद्र कुंड' के नाम से जाना जाता है। इसे 'क्षीरसागर' के नाम से पुकारा जाता है।

मथुरा से करीब 21 किलोमीटर दूर बलदेव में स्थापित मंदिर के मार्ग के बीच में गोकुल और महावन हैं। इसी विद्रुमवन में बलराम की अत्यन्त मनोहारी विशाल प्रतिमा और उनकी सहधर्मिणी राजा ककु की पुत्री ज्योतिष्मती रेवती का विग्रह है। यह एक विशालकाय मंदिर है। मंदिर के चार मुख्य दरवाजे हैं। जो क्रमश: 'सिंहचौर', 'जनानी ड्योढी', 'गोशाला द्वार' या 'बड़वाले दरवाजे' के नाम से जाने जाते हैं।

हिंदुओं का तीर्थस्थल

बलदेव एक ऐसा तीर्थ है, जिसकी मान्यताएं हिंदू धर्मावलम्बी करते आए हैं। धर्माचार्यों में वल्लभाचार्य जी के वंश की तो बात ही पृथक है। निम्बार्क, माध्व, गौड़ीय, रामानुज, शंकर कार्ष्णि, उदासीन आदि समस्त धर्माचार्यों में बलदेव जी की मान्यताएं हैं। सभी नियमित रूप से बलदेवजी के दशनार्थ पधारते रहे हैं और यह क्रम आज भी जारी है।

हुरंगा की परंपरा

बलदाऊ की नगरी बलदेव में हुरंगा की परंपरा पांच सौ वर्ष पुरानी है। माना जाता है कि श्री बलदाऊ के विग्रह की यहां प्रतिष्ठा 1582 में हुई थी। बताया जाता है कि मंदिर में विग्रह की स्थापत्य काल में बलदाऊ में हुरंगा खेलने की परंपरा पड़ी।

ब्रज की होली श्रीकृष्ण पर केंद्रित लेकिन हुरंगा भ्राता पर केंद्रित

ब्रज की होली भगवान श्रीकृष्ण पर केंद्रित है तो दाऊजी का हुरंगा उनके बड़े भ्राता श्री बलदेवजी पर केंद्रित है। कोड़ामार हाेली में हुरियारिनें यह नहीं देखती हैं कि पिटने वाले जेठ है या फिर ससुर। हुरंगा में गोपियां गोपों के नंगे बदन पर प्रेम स्वरूप कोड़े बरसाती हैं। ऐसा दृश्य को देखकर श्रद्धालु आनंदित होते हैं। बलदेव के दाऊजी मंदिर में होली के बाद हुरंगा होता है।

हुरंगा खेलने के लिए हुरियारिनें परंपरागत लहंगा-फरिया और आभूषण पहनकर झुंड के साथ मंदिरों में होली गीत गाते हुए आती हैं। गोस्वामी श्री कल्याण देवजी के वंशज सेवायत पांडे समाज ही हुरंगा खेलते हैं। हुरियारिनें भी कोड़े बरसाने के दौरान यह नहीं देखती हैं कि सामने वाला जेठ है या ससुर।

कोड़ामार होली में होता है अद्भुत नजारा

कोड़ामार होली में बलदेव का नजारा अद्भुत हो जाता है। ब्रज की होली का आनंद यहां सिमट जाता है। कोड़ामार होली देखने को देश-दुनिया के श्रद्धालु आते हैं। सौभाग्य की बात है कि कोड़ामार होली खेलने का मौका मिलता है।

भांग पीवे तो यहीं आजा

मान्यता है कि जब सभी देव ब्रज को छोड़ कर चले, तब बलदेव ब्रज के संरक्षक और रक्षक बनकर यहीं रहे। इसलिए दाऊजी को ब्रज का राजा माना जाता है। मान्यता यह भी है कि ब्रजराज प्यार और श्रद्धा से पुकारे जाने पर अदृश्य रूप में उपस्थित हो जाते हैं। तभी तो आज भी असंख्य श्रद्धालु अपनी बगीची में भांग घोंटते के बाद भांग का भोग लगाते समय दाऊजी महाराज को भांग पीने का आमंत्रण इस प्रकार देते हैं ‘दाऊजी महाराज ब्रज के राजा, भांग पीवे तो यहां आजा’।

ऐसे पहुंचे मंदिर

बलदेव का दाऊजी मंदिर मथुरा से 21 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां कई रास्तों से पहुंचा जा सकता है। आगरा से इसकी दूरी करीब 24 किलोमीटर है, हाथरस से भी यहां पहुंचा जा सकता है। वहीं एटा जनपद से भी यहां के लिए रास्ता है। 

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