गोपाल दास नीरज जयंतीः जानिए क्यों आगरा था गीताकार नीरज की पहली पसंद
गोपालदास नीरज की 97वीं जयंती पर विशेष। जहां प्रेम का चर्चा होगानीरज का नाम लिया जाएगा। खाने के शौकीन नीरज को पसंद थी आगरा की साहित्यिक हवा। नीरज का जन्म चार जनवरी 1925 में इटावा के ब्लाक महेवा के निकट पुरावली गांव में बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना के यहां हुआ था।
By Tanu GuptaEdited By: Updated: Tue, 04 Jan 2022 05:17 PM (IST)
आगरा, जागरण संवाददाता। आंसू जब सम्मानित होंगे, मुझको याद किया जाएगा।जहां प्रेम का चर्चा होगा, मेरा नाम लिया जाएगा...गोपालदास नीरज की यह पंक्तियां उनकी इस बात पर सटीक बैठती है जो वो अक्सर कहा करते थे कि आगरा की साहित्यिक हवा इतनी ताजा है कि यहां किसी की याद जा ही नहीं सकती। गोपालदास नीरज को गए तीन साल हो गए हैं, पर आगरा का साहित्य जगत उन्हें एक पल के भी नहीं भूला है।
चार जनवरी 1925 में इटावा जिले के ब्लाक महेवा के निकट पुरावली गांव में बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना के यहां हुआ था। 2018 जुलाई में एम्स में उन्होंने आखिरी सांस ली। आगरा के बल्केश्वर में रह रहे उनके छोटे बेटे शंशाक प्रभाकर ने बताया कि वे कहते थे कि अगर 96 की उम्र पार कर गया तो सौ तो पकड़ लूंगा। पर एेसा हो नहीं पाया। वे खाने-पीने के काफी शौकीन थे। आगरा की बेढ़ई-कचौड़ी से लेकर लखनऊ में रबड़ी तक खाते थे। एक बार का किस्सा सुनाते हुए शंशाक प्रभाकर ने बताया कि उज्जैन में कवि सम्मेलन में गए थे। वहां एक मेले में झूला लगाने वाला उन्हें अपने टेंट में बुलाने आया कि यह उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी इच्छा है। इस आग्रह को वे टाल नहीं पाए और उसके टेंट में पहुंचे। जहां उन्होंने झूले वाले द्वारा बनाया गया मटन भी खाया। उन्हें सालमन मछली बहुत पसंद थी।
ट्रैफिक से रहते थे परेशान
आगरा और अलीगढ़ के ट्रैफिक से काफी नाराज रहते थे।कई बार गाड़ी के अंदर से ही बंद शीशे में ही चिल्ला कर लोगों को हटाने लगते थे। कहते थे कि यह दोनों शहर नरक हैं, कभी सुधर नहीं सकते।नहीं हुआ साहित्य का सही मूल्यांकन
उन्होंने एक कविता लिखी थी कि मान-पत्र मैं नहीं लिख सका, राजभवन के सम्मानों का।मैं तो आशिक़ रहा जन्म से, सुंदरता के दीवानों का।लेकिन था मालूम नहीं ये, केवल इस ग़लती के कारण।सारी उम्र भटकने वाला, मुझको शाप दिया जाएगा।यह पंक्तियां उनके जीवन के सबसे बड़े दुख को दर्शाती हैं। वे चाहते थे कि उनके साहित्य का सही मूल्यांकन हो।यह काम ज्ञानपीठ ने शुरू भी किया था, लेकिन वो भी अब ठंडे बस्ते में चला गया है।
आगरा की साहित्यिक हवा में नीरज नीरज जी ने भाषा के सुधार में भी बहुत बड़ा काम किया है। उन्होंने हिंदी और उर्दू के अच्छे-अच्छे शब्दों का चयन करके उनका बेहतरीन उपयोग किया। अपनी रचनाओं को उनसे संजोया था। उनकी रचनाओं में विख्यात कवि गोपाल सिंह नेपाली की छवि भी झलकती थी। मेरा उनसे बहुत जुड़ाव था। -कवि सोम ठाकुर
नीरज जी ने अपने जीवन में जो किया, वह अनुकरणीय है। मैंने उनके साथ करीब एक हजार कवि सम्मेलन साथ पढ़े थे। इसलिए मैं यह कह सकता हूं कि- हवा के साथ गुनगुनाता था, कली के साथ मुस्कुराता था।वो उगा था जमीन का सूरज,वो अपनी धूप खुद बनाता था।
- कवि रामेंद्र मोहन त्रिपाठी
कवि नीरज का कृतित्व बहुत ही विशाल और प्रेरक था। उन्होंने श्रंगार से लेकर दर्शन तक का सफर अपने काव्य से किया। जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना...रचना ने जहां मेरे दिल पर छाप छोड़ी, वहीं ए भाई, जरा देख कर चल, गीत में जीवन का दर्शन छिपा था। वे हरिवंशराय बच्चन की परंपरा के कवि थे। उन्हें जो भी पद्म सम्मान मिले, वे उनके लिए बहुत कम थे, क्योंकि वे साहित्य की बहुत शीर्षस्थ थे।
-कवि राज बहादुर राज
कवि नीरज के साथ मुझे कई बार मंच पर काव्य पाठ करने का मौका मिला। उनके काव्य में जो आकर्षण और दर्शन था, उसका मुकाबला नहीं है। मैं उनके बारे में यही कह सकती हूं कि -नीरज ! गीतों को तुम यों गाते थे, गीत तुम्हें ख़ुद गाने लगे जाते थे।शब्द-अर्थ के अद्भुत जादूगर तुम,स्वर का परचम चहुँ दिशि फहराते थे।।- कवयित्री डा. शशि तिवारी
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