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हिंदी रंगमंच दिवस: कम हो रहा है आकर्षण, आगरा में हिंदी नाटकों की बिकती थीं टिकटें

आगरा में पहला हिंदी नाटक 1942 में हुआ था। लोगों में नाटकों को देखने के लिए एक क्रेज होता था। लोगों को बैठने की जगह भी नहीं मिलती थी और आज ये आलम है कि नाटक देखने वालों की कमी हो गई है।

By Abhishek SaxenaEdited By: Updated: Sun, 03 Apr 2022 06:10 PM (IST)
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नाटक देखने के लिए लोगों में पहले जुनून था।
प्रभजोत कौर, आगरा। आगरा में पहला हिंदी नाटक 1942 में हुआ था।जिसे लिखा और निर्देशित इप्टा के संस्थापक राजेंद्र रघुवंशी ने किया था।उसके 31 साल बाद उनके ही पुत्र शैलेंद्र रघुवंशी द्वारा निर्देशित हैमलेट नाटक की टिकटें बिकी थीं और उसे देखने का जुनून इस कदर था कि टिकटें ब्लैक हुई थीं। पर अब हिंदी रंगमंच के प्रति लोगों का आकर्षण काफी कम हो गया है।कोरोना ने स्थितियों को काफी गंभीर कर दिया है।

पांच हजार दर्जियों ने देखा था नाटक

एक मई 1942 को बेकर पार्क(अब सुभाष पार्क) में राजेंद्र रघुवंशी द्वारा लिखित और निर्देशित आज का सवाल का मंचन हुआ था। यह नाटक फौजी वर्दी सीने वाले दर्जियों पर था। इस नाटक को देखने के लिए पांच हजार दर्जी पार्क मेें एकत्र हुए थे। उस साल बंगाल में अकाल पड़ा था,स्थितियां काफी खराब थीं। बंगाल में लोगों के पास खाने को कुछ नहीं था। उन लोगों की सहायतार्थ इस नाटक का मंचन किया गया था। नाटक देखने आए लोगों ने अपनी इच्छानुसार पैसे दिए थे, जो बंगाल भेजे गए थे।

बिना कुर्सियों के देखा नाटक

आगरा में किसी नाटक में पहली बार टिकट बिकी थी। यह नाटक था शैलेंद्र रघुवंशी द्वारा निर्देशित हैमलेट, जिसका अनुवाद अमृतराय ने किया था।1973 में टिकट तीन श्रेणियों में बिकी थी, तीन, पांच और दस रूपये में। उस समय सूरसदन निर्माणाधीन था। न साउंड था, न कुर्सियां और न ही पर्दे।पर नाटक के प्रति लोगों को जुनून था कि टिकटें ब्लैक में बिकी थीं।1980 के दशक में एेसे कई नाटकों का मंचन हुआ, जिन्हें लोग टिकट खरीदकर देखने आते थे।

हिंदी रंगमंच की कोरोना काल में बहुत ज्यादा क्षति हुई है। दर्शक दूर हो गए हैं।महाराष्ट्र, बंगाल और दक्षिण में उनकी भाषा में नाटक देखने की जो परंपरा हैं,वो हमारे क्षेत्र में नहीं है।इसके पीछे बहुत बड़ी वजह हिंदी के नाटकों का व्यवसायिकरण न होना है।इसी वजह से हिंदी भाषा के नाटक उतने दर्शक नहीं बटोर पाते हैं, जो अन्य भाषाओं के नाटक कर पाते हैं।- दिलीप रघुवंशी, राष्ट्रीय संयुक्त सचिव, इप्टा

हिंदी रंगमंच की स्थिति स्कूल और कालेजों में गतिविधियां होने से अच्छा हुआ है। आज के समय में दर्शक डेढ़ से सवा घंटे का नाटक देखना चाहते हैं।स्कूल-कालेजों में बच्चे नाटक को समझ रहे हैं, लेकिन तपस्या अभी अधूरी है उनकी। नाटक सात विधाओं से मिलकर बनता है।- अनिल जैन, वरिष्ठ रंगकर्मी 

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