Agra: माई का टीला से बना था माईथान, सिख धर्म के पहले और नौवें गुरु के पड़े थे चरण, मुगल काल की कहानी भी जुड़ी
माईथान नाम होने के पीछे इतिहासकार बताते हैं दो कहानियां। मुगल काल में यहां पर ईंट के भट्टों के लिए ईंटें जाती थी। आगरा किला में इन्हीं ईटों से निर्माण हुआ। भट्टे बंद हुए तो यहां टीले बन गए इन्हीं पर बस्ती बस गई। टीला माईथान कहते हैं।
आगरा, जागरण संवाददाता। धर्मशाला की जमीन पर बेसमेंट खोदाई के दौरान हुई दुर्घटना के बाद टीला माईथान चर्चाओं में है। ऐसे में लोग इस स्थान के बारे में जानना चाहते हैं। यह स्थान पूर्व में बहुत महत्वपूर्ण रोड पर था और इतिहासकार सिख धर्म का महत्वपूर्ण स्थल भी बताते हैं। क्योंकि यहां सिख धर्म के पहले औन नवें गुरु के चरण पड़े थे। पहले इसका नाम माई का टीला था। गुरु के चरण पड़ने के बाद ही यहां का नाम टीला माईथान पड़ा।
गुरु नानक देव जी आए थे यहां
आगरा पुराना शहर है। यहां पूर्व में यमुना पार करने के लिए स्ट्रैची ब्रिज ही था। दिल्ली से आगरा होकर कानपुर की ओर जाने के लिए लोग हरीपर्वत से स्टेशन रोड होकर ही स्ट्रैची ब्रिज तक पहुंचते थे। यह पुराने शहर का रिंग रोड माना जाता था। इसीलिए इस रोड पर बड़ी संख्या में धर्मशाला थीं। इतिहासकार राजकिशोर राजे के अनुसार, संवत 1566 में सिख धर्म के पहले गुरु नानक देव जी यहां पर आए थे। उस समय में 18 साल की युवती जिन्हें माता जस्सी कहते हैं उन्हें गुरु नानक देव जी ने दर्शन दिए। माता जस्सी ने सिक्खी रूप धारण किया। उन्होंने सिख धर्म का प्रचार प्रसार किया। तब ही गुरुद्वारे की स्थापना हुई। बाद में जब गुरु तेग बहादुर प्रकट हुए।
ऐसे पड़ा नाम माई का थान
सिख संगतों में भावना बनी कि गुरु तेग बहादुर के दर्शन करने हैं। उन्हें कुछ अच्छी वस्तुएं भेंट करनी है। उस समय करीब 165 साल की माता जस्सी ने गुरुजी के लिए अपने हाथ से कपडे़ का थान तैयार किया। मगर, उनकी भावना थी कि गुरु महाराज यहां चलकर आएं। जब गुरु तेग बहादुर यहां पर आए। माता जस्सी ने उन्हें थान भेंट किया। इसके बाद से ही इस गुरुद्वारे का नाम माई का थान गुरुद्वारा पड़ा और पूरे स्थान को नाम भी माई का थान हो गया।
ये है दूसरा मत
दूसरा मत यह है कि गुरु तेग बहादुर का 1665 में आगरा आगमन हुआ था। तब गुरुद्वारे में माता जस्सी रहती थीं। जस्सी माता ने गुरु तेग बहादुर से आशीर्वाद लिया। उन्होंने गुरु महाराज से कहाकि मेरी कोई संतान नहीं है। ऐसे में नाम आगे कैसे चलेगा। इस पर गुरु तेगबहादुर ने कहा कि मां ये स्थान तेरा ही है। इसे तेरे नाम से जाना जाएगा। तभी से इसका नाम माईथान पड़ा।
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ईंट भट्ठों के लिए खोदी जाती थी मिट्टी
स्थानीय लाेगों का कहना है कि मुगल काल में यहां पर ईंट के भट्ठे थे। आगरा किला के निर्माण के लिए इन भट्टों से ईंट जाती थीं। जब किले का निर्माण पूरा हो गया तो ये भट्टे बंद हो गए। जो टीले में परिवर्तित हो गए। इन टीले पर ही बस्ती बस गई। पूरे इलाके को माईथान तो टीले वाली जगह को टीला माईथान के नाम से जाना जाता है।