Kheer Mohan देखकर आ जाएगा मुंह में पानी, मथुरा की मिठाई का स्वाद बना देता है दीवाना
Kheer Mohan मथुरा का खीर मोहन बेहद पसंद किया जाता है। खीर मोहन वैसे तो पूरे जिले में बिकता है लेकिन सबसे ज्यादा दुकानें गोकुल और महावन क्षेत्र में हैं। यहां कई कुंतल खीर मोहन एक-एक दुकान से बिकता है।
आगरा, जागरण टीम। कान्हा की नगरी मथुरा में खानपान का भी अलग रंग है। हर इलाके का अलग स्वाद और अलग खानपान में अलग पहचान है। आप गोकुल महावन जाएंगे तो वहां का खीर मोहन देखकर मुंह में पानी आ जाएगा। या यूं कहें कि महावन के खीर मोहन का जवाब नहीं है।
1960 के आसपास हुई खीर मोहन की शुरुआत
महावन में खीर मोहन बनाने की शुरुआत वर्ष 1960 के आसपास बताई जाती है। इसे सबसे पहले यहां रहने वाले मोती पांडेय ने बनाना शुरू किया। उसके बाद मदन और धौदर पांडेय ने 1965 में खीर मोहन की दुकान खोला।
खीर मोहन के है दीवाने
खीर मोहन के दीवाने बढ़े तो भइया जी के नाम से ब्रजमोहन सैनी ने 1996 में खीर मोहन का शुरू किया, दो साल बाद 1998 में मदन का लाला ने ये काम देखा। आज अकेले गोकुल महावन में आधा सैकड़ा से अधिक खीर-मोहन की दुकान हैं, लेकिन भइया जी और मदन का लाला की दुकान पर भीड़ जुटती है।
मुंबई से खीर मोहन बनाना सीखकर आए मथुरा
गुड्डू भइया जी कहते हैं कि मोती पांडेय मुंबई से खीर मोहन बनाने का काम सीखकर आए थे। फिर उन्होंने यहां दुकान खोल ली। धीरे-धीरे दुकानें बढ़ती गईं। वह कहते हैं कि पहले ब्रज में दूध अधिक होता था, दूध जब फट जाता था, वह बिना चावल के खीर जैसी दिखाई देता था, फिर इससे मिठाई बनाई गई और उसे ठाकुर जी को भोग लगाया। इसी से इसका नाम खीर मोहन हो गया। वह कहते हैं कि पहले हर दुकान में दिन में पहली बार खीर मोहन बनाते ही ठाकुर जी को भोग लगाया जाता था।
ऐसा होता है खीर मोहन
खीर मोहन एक तरह से छेने की तरह होता है। इसे चीनी की चासनी में डुबोया जाता है। पहले ये दूध से बनता था, अब पाउडर का इस्तेमाल होता है। दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालु इसे अपने साथ खरीदकर ले जाते हैं। खीर मोहन की कीमत भी महज 120 रुपये किलो है।
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