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UP News: आगरा के इस घर से शुरू हुआ था सिपाही से 'भोले बाबा' बनने का सफर, आज भी अनुयायी यहां टेकते हैं माथा

जिनके सत्संग में मची भगदड़ में अब तक करीब 121 लोग अपनी जान खाे चुके हैं। उनका एक घर आगरा में है। जिस पर आज भी अनुयायी माथा टेकते हैं। मंगलवार को हादसे के बाद यहां बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। पुलिस में नौकरी के दौरान केदार नगर में एसपी सिंह एक घर में रहते थे। यहीं से उनका भाेले बाबा बनने का सफर शुरू हुआ था।

By Jagran News Edited By: Abhishek Saxena Updated: Wed, 03 Jul 2024 09:51 AM (IST)
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आगरा में (भोले बाबा) के मकान पर ताले रहते हैं लेकिन, अनुयायी फिर भी माथा टेकने आते हैं। अमित शिवहरे।
विद्याराम नरवार, जागरण आगरा। साकार विश्व हरि भोले बाबा के प्रति अनुयाइयों की आस्था कहें या अंधविश्वास, मंगलवार को सिकंदराराऊ में सत्संग के बाद हुए भयावह हादसे की चीत्कार चहुंओर हो रही थी, तब केदार नगर स्थित बाबा की कुटिया पर माथा टेकने के लिए अनुयाइयों का तांता लगा हुआ था।

ये वही कुटिया थी जिसमें बाबा आज से करीब 29 साल पहले गोद ली हुई बेटी के शव को दो दिन तक रखे रहे थे। जिंदा करने के जतन करने की अफवाह पर पहुंची पुलिस से बाबा ने कहा था कि ये मैं नहीं, मेरे अनुयायी कह रहे हैं। हालांकि, बेटी जिंदा नहीं हुई थी।

केदार नगर में रहते थे

पुलिस में नौकरी के दौरान भोले बाबा केदार नगर के ईडब्ल्यूएस के मकान में पत्नी के साथ रहते थे। स्थानीय लोगों ने बताया कि बाबा ने अपने साले की बेटी को गोद लिया था। लगभग 29-30 साल पहले बेटी की विष बेल (गर्दन पर दिखने वाली गांठ) के कारण मृत्यु हो गई। दो दिन तक शव को घर में यह कहते हुए रखा रहा कि उसे जिंदा किया जा रहा है। इस पर उत्सुकतावश भीड़ जमा हो गई।

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पुलिस से भोले बाबा ने कहा था कि बेटी को जिंदा कर दूंगा, मेरा ऐसा कहना नहीं है, ये तो लोग मान रहे हैं। यहीं से भोले बाबा चर्चा में आ गए थे। हालांकि, पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर मल्ल का चबूतरा श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार करा दिया था।

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हैंडपंप का पानी नहीं दवा है ये...

हैंडपंप का पानी नहीं, कहते हैं एक दवा ये भी एक अंधविश्वास है। बाबा की कुटिया के बाहर लगे हैंडपंप से अनुयायी पानी पीते हैं। उन्हें विश्वास होता है कि ये पानी निरोग कर देता है। केदारनगर का ये मकान तब बाबा की कुटिया कही जाती थी। उनके अनुयायी आज भी इस आलीशान कुटिया पर माथा टेकने आते हैं।

मंगलवार को भी कई अनुयायी आए थे। माह के पहले मंगलवार को तो सुबह तीन बजे से ही अनुयाइयों का आना शुरू हो जाता है। दो मंजिला कुटिया पर दो ताले लगे रहते हैं। आसपास के लोगों का कहना है कि घर के अंदर न कोई मूर्ति है और न ही ऐसा कुछ है कि पूजा की जाए।

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