Kisan Diwas: दो भाइयों ने छोड़ा कॉर्पोरेट का बड़ा पैकेज, स्ट्रॉबेरी की फसल से लाखों में कर रहे हैं कमाई
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती को देश भर में राष्ट्रीय किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज के दिन हम आपके लिए दो किसान भाइयों की ऐसी खबर लाए हैं जो अपने आसपास के हजारों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं।
By Jagran NewsEdited By: Nirmal PareekUpdated: Fri, 23 Dec 2022 01:33 PM (IST)
जागरण संवाददाता, आगरा: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती (23 दिसंबर) को देश भर में 'किसान दिवस' या राष्ट्रीय किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज के दिन हम आपके लिए दो किसान भाइयों की ऐसी खबर लाए हैं जो अपने आसपास के हजारों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं। इन दोनों भाइयों में कुछ अलग करने का जुनून और प्रतिस्पर्धा से जूझने का आत्मविश्वास था। इसलिए आलू, गेंहू, मक्का, बाजरा जैसी परंपरागत खेती को छोड़ स्ट्रॉबेरी की पौध रोप दी। जब इन्होंने यह फसल रोपी तो पहले वर्ष कई परेशानियों का सामना करना पड़ा मगर ये बड़ा सीख दे गई।
दोनों भाइयों ने छोड़ा लाखों का पैकेज
आपको बता दें एक भाई ने महाविद्यालय में शिक्षक की नौकरी छोड़ी तो दूसरे ने ब्रांडेड कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर की। इन दोनों भाइयों को इस नए तरीके से खेती करने में किसान पिता का अनुभव बहुत काम आया और इन्होंने नवाचार के विचार को साकार कर दिखा दिया।
किसान अनिरुद्ध यादव ने बताई संघर्ष की गाथा
एत्मादपुर क्षेत्र के गांव चमरौला निवासी अनिरुद्ध यादव बताते हैं कि पिता ओमवीर सामान्य फसलें उगाते थे। लेकिन बचपन में मेरा शिक्षक बनने का सपना था और भाई अवनीश को कारपोरेट क्षेत्र में जाने का। फिर हम दोनों भाइयों ने आगे की पढ़ाई के लिए कृषि विषय को प्राथमिकता दी। पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं कालेज में पढ़ाने लगा और भाई बड़ी कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर बन गए। इसके बाद जब कोविड काल आया तो हम दोनों के मन में खेती को उन्नत बनाने का विचार आया। फिर बड़े भाई अवनीश ने प्रेरित किया और पिता ओमवीर सिंह का सहयोग मिला। फिर हमने पहले एक बीघा खेत में महाराष्ट्र से मंगाए गए स्ट्रॉबेरी के पौधे रोपे। हमारी फसल तैयार होने के बाद हमको पहली बार में बाजार नहीं मिल सका क्योंकि स्थानीय होटलों को भी उस समय ज्यादा आवश्यकता नहीं थी और दिल्ली बहुत दूर लगती थी।लेकिन पहली बार की फसल तो हमने किसी तरह खपाई लेकिन दूसरे वर्ष हिम्मत जुटाई और दो बीघा में पौधे रोपे। इस दौरान बड़े भाई ने मार्केटिंग की जिम्मेदारी निभाई और उन्होंने स्थानीय होटलों से भी संपर्क साधा। हमारी यह मेहनत रंग लाई। अब हम चार बीघा खेत में स्ट्रॉबेरी, दो बीघा में ब्रोकली, टमाटर, काशीफल की खेती करते हैं।आसपास के किसानों ने ली प्रेरणा, करने लगे स्ट्रॉबेरी के खेती
आगे अनिरुद्ध बताते हैं कि हम स्ट्रॉबेरी की विटंर डान वैरायटी का उत्पादन करते हैं। इसका आकार, स्वाद, रंगत अपेक्षाकृत बेहतर होती है। दूसरी वैरायटी की स्ट्राबेरी की गुणवत्ता सफर के दौरान गिर जाती है, उसका आकार भी छोटा होता है। किसान अनिरुद्ध से प्रेरित होकर पास के गांव कनराऊ के किसान अनिल सिंह ने उनसे 500 पौध लेकर स्ट्राबेरी की खेती की शुरुआत की है। उनका कहना है कि मुनाफा अधिक है और छह महीने की फसल है। जब उत्पादन अधिक होगा तो बाजार मिलने में भी कठिनाई नहीं आएगी। वहीं अब नगला सलेम के प्रशांत सिंह, कुलदीप सिंह सहित कई दूसरे किसान भी प्रेरित होकर स्ट्रॉबेरी की खेती की शुरुआत कर रहे हैं।
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