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Gangaur Puja: कल है गणगौर पूजा, जानिए पूजन विधि और इसके पीछे की मान्यता

Gangaur Puja नवरात्र के तीसरे दिन होती है गणगौर पूजा। मां पार्वती और भगवान शिव की होती है इस दिन पूजा। सुहागिन महिलाएं रखती हैं व्रत और गुना बनाकर लगाती है मां गौरा को भाेग। अविवाहित लड़कियां भी मंगल कामना के साथ रखती हैं व्रत।

By Tanu GuptaEdited By: Updated: Wed, 14 Apr 2021 04:03 PM (IST)
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नवरात्र के तीसरे दिन होती है गणगौर पूजा।

आगरा, जागरण संवाददाता। अखंड सौभाग्य के लिए मनाया जाने वाला गणगौर गुरुवार को मनाया जाएगा।सुहागिन महिलाएं घर-घर में गणगौर यानि शिव-पार्वती का पूजन करेंगी। ज्योतिषाचार्य डॉ शाेनू मेहरोत्रा के अनुसार महिलाओं द्वारा चैत्र नवरात्र में तृतीया के दिन घरों में गणगौर पूजन किया जाता है। शिव-पार्वती की मिट्टी की मूर्ति बनाकर सोलह शृंगार कर सजाया जाता है। महिलाएं कथा सुनती हैं। व्रत रखकर शाम को पूजा करती हैं।

बनाए जाते हैं मीठे व नमकीन गुने

गणगौर के दिन महिलाएं पूजन के लिए घर में गुने बनाती हैं। यह मैदा, बेसन या आटे में हल्दी या पीला रंग मिलाकर अंगूठा या उससे बड़े बनाए जाते हैं। यह मीठे और नमकीन होते हैं। यह मान्यता है कि जितने गहने यानि गुने पार्वती जी को चढ़ाए जाते है, उतना ही धन-वैभव बढ़ता है। उसके बाद ये गुने महिलाएं अपनी सास, जेठानी या ननद को देती हैं। गुनों का आकार एक गहने की तरह होता है। पहले इसे गहना कहा जाता था। अब इसका अपभ्रंश नाम गुना हो गया है।

इसलिए होता है आयोजन

इसके बारे में अलग-अलग किवदंती हैं। कुछ लोगों का कहना है कि इस दिन भगवान शिव का विवाह हुआ था। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि इस दिन पार्वती जी सोलह शृंगार करके सौभाग्यवती महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद देने के लिए निकली थीं। इसलिए इस दिन सुहागिन महिलाओं द्वारा भगवान शिव के साथ पार्वती जी की पूजा की जाती है।  

गणगौर पूजा विधि

गणगौर पूजन के लिए कुंवारी कन्याएं व विवाहित स्त्रियां प्रात:काल सुंदर वस्त्र एवं आभूषण पहन कर सिर पर लोटा लेकर बाग़-बगीचों में जातीं हैं। वहीं से ताज़ा जल लोटों में भरकर उसमें हरी-हरी दूब और फूल सजाकर सिर पर रखकर गणगौर के गीत गाती हुईं घर आती हैं। इसके बाद शुद्ध मिट्टी के शिव स्वरुप ईसर और पार्वती स्वरुप गौर की प्रतिमा बनाकर स्थापित करती हैं। शिव-गौरी को सुंदर वस्त्र पहनाकर सम्पूर्ण सुहाग की वस्तुएं अर्पित करके चन्दन, अक्षत, धूप, दीप, दूब व पुष्प से उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। दीवार पर सोलह-सोलह बिंदियां रोली, मेहंदी व काजल की लगाई जाती हैं।

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