Karwa Chauth: व्रत से जुड़ी ये बातें आपको कर देंगी हैरान, बढ़ जाएगा और श्रद्धा का भाव Agra News
17 अक्टूबर को है इस वर्ष करवा चौथ। इस दिन निभाए जाने वालेे हर विधान को होता है विशेष महत्व।
By Tanu GuptaEdited By: Updated: Wed, 16 Oct 2019 11:23 AM (IST)
आगरा, तनु गुप्ता। चिर सुहाग की कामना का व्रत गुरुवार 17 अक्टूबर को है। तारों की छावों में सरगी ग्रहण करने के साथ निराहार, निर्जल व्रत रख सुहागिनें अपने सुहाग के मंगल जीवन के लिए रखेंगी व्रत। भोर से चंद्र दर्शन तक यह दिन बेहद खास होता है। यूं तो आम दिनों की भांति ही सूर्य निकलता है, दिन गुजरता है और रात आती है लेकिन इस दिन की रात को चंद्रमा अपने विशेष रूप में होता है। वो रूप जिसे देख सुहागिने अपने चांद की लंबी आयु की कामना करती हैं। लेकिन चंद्र का यह दर्शन छलनी की ओट में से किया जाता है। इसी तरह इस दिन निभाए जानेे वाली हर परंपरा, हर विधान अपना विशेष महत्व रखते हैं। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार प्रेम, निष्ठा और समर्पण के इस विशेष दिन की पूजा में मनोवैज्ञानिक भाव अधिक निहित होता है। यही भाव सरगी ग्रहण, व्रत, पूजन, चंद्र दर्शन और व्रत के परायण के समय भी होता है।
क्या है सरगी की परंपरा पंजाब में करवा चौथ का त्यौहार सरगी के साथ आरम्भ होता है। यह करवा चौथ के दिन सूर्योदय से पहले किया जाने वाला भोजन होता है। जो महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं उनकी सास उनके लिए सरगी बनाती हैं। शाम को सभी महिलाएं श्रृंगार करके एकत्रित होती हैं और फेरी की रस्म करती हैं। इस रस्म में महिलाएं एक घेरा बनाकर बैठती हैं और पूजा की थाली एक दूसरे को देकर पूरे घेरे में घुमाती हैं। इस रस्म के दौरान एक बुज़ुर्ग महिला करवा चौथ की कथा गाती हैं। भारत के अन्य प्रदेश जैसे उत्तर प्रदेश और राजस्थान में गौर माता की पूजा की जाती है। गौर माता की पूजा के लिए प्रतिमा गाय के गोबर से बनाई जाती है।
छलनी से ही चंद्र दर्शनकरवाचौथ के चंद्रमा का दर्शन स्त्रियां छलनी में से करती हैं। इसके पीछे मान्यता है कि जितने ज्यादा चंद्र दर्शन उतने लंबी पति की आयु होती है। छलनी में सैंकड़ों छिद्र होते हैं। इसलिये स्त्रियां छलनी में से चंद्र दर्शन कर अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं।
धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशीमनोवैज्ञानिक भावपंडित वैभव जोशी के बताते हैंं कि रामचरितमानस के लंका कांड के अनुसार, जिस समय भगवान श्रीराम समुद्र पार कर लंका में स्थित सुमेर पर्वत पर उतरे और श्रीराम ने पूर्व दिशा की ओर चमकते हुए चंद्रमा को देखा तो अपने साथियों से पूछा कि चंद्रमा में जो कालापन है, वह क्या है? सभी ने अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार जवाब दिया। किसी ने कहा चंद्रमा में पृथ्वी की छाया दिखाई देती है। किसी ने कहा राहु की मार के कारण चंद्रमा में कालापन है तो किसी ने कहा कि आकाश की काली छाया उसमें दिखाई देती है। तब भगवान श्रीराम ने कहा कि विष यानी जहर चंद्रमा का बहुत प्यारा भाई है (क्योंकि चंद्रमा व विष समुद्र मंथन से निकले थे)। इसीलिए उसने विष को अपने हृदय में स्थान दे रखा है, जिसके कारण चंद्रमा में कालापन दिखाई देता है। अपनी विषयुक्त किरणों को फैलाकर वह वियोगी नर-नारियों को जलाता रहता है। पंडित वैभव के अनुसार इस पूरे प्रसंग का मनोवैज्ञानिक पक्ष यह है कि जो पति-पत्नी किसी कारणवश एक-दूसरे से बिछड़ जाते हैं, चंद्रमा की विषयुक्त किरणें उन्हें अधिक कष्ट पहुंचाती हैं। इसलिए करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा कर महिलाएं ये कामना करती हैं कि किसी भी कारण उन्हें अपने प्रियतम का वियोग न सहना पड़े।
समझें करवाचौथ का महत्वकरवाचौथ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, करवा यानी मिट्टी का बरतन और चौथ यानि चतुर्थी। इस त्योहार पर मिट्टी के बरतन यानी करवे का विशेष महत्व माना गया है। करवा पति-पत्नी के बीच प्यार और स्नेह का प्रतीक माना जाता है। यही कारण है कि करवाचौथ पर करवे का विशेष महत्व है। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष में चंद्रदेव के साथ-साथ भगवान शिव, देवी पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। माना जाता है कि अगर इन सभी की पूजा की जाए तो माता पार्वती के आशीर्वाद से जीवन में सभी प्रकार के सुख मिलते हैं।
जब देवताओं की पत्नियों ने किया व्रतपंडित वैभव जोशी बताते हैं कि बहुत-सी प्राचीन कथाओं के अनुसार करवाचौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है। माना जाता है कि एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी। ऐसे में देवता ब्रह्मदेव के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। ब्रह्मदेव ने यह वचन दिया कि ऐसा करने पर निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की जीत होगी। ब्रहदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने खुशी-खुशी स्वीकार किया। ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों यानी देवताओं की विजय के लिए प्रार्थना की। उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई। इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था। माना जाता है कि इसी दिन से करवाचौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई।
सोलह श्रृंगार का महत्वकरवाचौथ के दिन विवाहित स्त्रियां सुंदर कपड़े, गहने पहन कर सोलह श्रृंगार करती हैं और चंद्रमा की पूजा करती हैं। यह सत्य है कि स्त्रियों को सुंदर कपड़ों और गहनों से विशेष लगाव होता है। हिन्दू परंपराओं के अनुसार श्रृंगार की बहुत-सी चीजें केवल स्त्री के रूप को नहीं निखारती बल्कि उसपर सकारात्मक प्रभाव भी डालती हैं। श्रृंगार की कुछ वस्तुएं जैसे नथनी, सिंदूर, बिंदी, चूडिय़ां आदि उसके विवाहित होने का संकेत देती हैं।
निराहार ही क्यों पंडित वैभव बताते हैं कि भोजन पचाने में प्राणऊर्जा यदि खर्च होती है। ऐसे में आध्यात्मिक ऊर्जा के संग्रह में बाधा उतपन्न होती है। अन्न को पचाने में 90 फीसद प्राण ऊर्जा खर्च हो जाती है। अत: क्योंकि इस दिन सर्वाधिक तपशक्ति अर्जन करने की आवश्यकता होती है, इसलिए अन्न का त्याग किया जाता है।जल पिलाने और मीठा खिलाने का क्या है अर्थ
स्त्री के प्रति प्रेम और अपने उत्तरदायित्य हो वहन करने का संकल्प है, कि आजीवन हम तुम्हें जल जैसा शीतल प्रेम देंगे और मिठाई जैसा तुम्हारा जीवन मधुर रखेंगे। तुम्हारा ख्याल रखेंगे।करवाचौथ की कथाकरवाचौथ की कथा वीरावती नाम की एक लड़की से जुड़ी है। वीरावती, वेद शर्मा नाम के ब्राह्मण की इकलौती पुत्री थी। वीरावती सात भाइयों की अकेली बहन थी और सबकी लाडली भी बहुत थी। जल्द ही उसका विवाह सुदर्शन नाम के एक ब्राह्मण लड़के से हो गया। शादी के बाद करवाचौथ के दिन वीरावती और उसकी ननद दोनों ने करवाचौथ का व्रत रखा। वीरावती को व्रत बहुत कठिन लग रहा था। उसे बहुत भूख लगी थी और वह चांद निकलने का इंतजार भी नहीं कर पा रही थी। अपनी बहन को भूख से तड़पता देख वीरावती के भाइयों ने जाकर जंगल में आग लगा दी। एक कपड़े की मदद से उन्होंने आसमान में चांद निकलने का नकली दृश्य बनाया। एक भाई ने आकर वीरावती को कहा कि चांद निकल आया है इसलिए अब वह पूजा करके अपना व्रत खोल सकती है।
वीरावती ने ऐसा ही किया लेकिन उसे इसका दंड भी भोगना पड़ा। कुछ समय बाद ही उसका पति सुदर्शन भयंकर तरीके से बीमार पड़ गया। किसी भी प्रकार के इलाज से कोई फायदा नहीं हुआ। एक बार इंद्र देव की पत्नी इंद्राणी करवाचौथ के दिन धरती पर आईं। वीरावती उनके पास गई और अपने पति की रक्षा के लिए प्रार्थना की। देवी इंद्राणी ने वीरावती को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से करवाचौथ का व्रत करने के लिए कहा। इस बार वीरावती पूरी श्रद्धा से करवाचौथ का व्रत रखा। उसकी श्रद्धा और भक्ति देख कर भगवान प्रसन्न हो गए और उन्होंनें वीरावती को आशीर्वाद दिया। धीरे-धीरे वीरावती के पति की सेहत में सुधार होने लगा और दोनों खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगे। कहा जाता है कि इसके बाद भारतीय स्त्रियों के लिए करवाचौथ के व्रत की महत्ता और भी बढ़ गई।
व्रत की कथा का सन्देशतपबल रचइ प्रपंचु बिधाता।तपबल बिष्नु सकल जग त्राता॥तपबल संभु करहिं संघारा।तपबल सेषु धरइ महिभारा॥पंडित वैभव जोशी इसका भावार्थ बताते हैं कि तप के बल से ही ब्रह्मा संसार को रचते हैं और तप के बल से ही विष्णु सारे जगत का पालन करते हैं। तपबल से शिव शंकर संघार करते हैं। तपबल से ही शेषनाग धरती का भार अपने ऊपर रखे हुए है।।तप की शक्ति से किसी भी प्रारब्ध का शमन किया जा सकता है। तपबल से जीवन मे नए प्राण का संचार किया जा सकता है। तपबल से असम्भव भी संभव हो जाता है।
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