Agra Fort: आगरा किला के ताले में कैद है सफेद संगमरमर से बना शाहजहां का ये शाहकार, जानिए क्या है मोती मस्जिद का इतिहास
Agra Fort आगरा किला स्थित मोती मस्जिद में पर्यटकों का प्रवेश है बंद। वर्ष 1647 में शुरू हुआ था निर्माण 1654 में बनकर हुई तैयार। अपनी तरह की मस्जिदों में यह पूरे एशिया में सर्वश्रेष्ठ है। उस समय इसके निर्माण पर तीन लाख रुपये की लागत आई थी।
By Tanu GuptaEdited By: Updated: Tue, 08 Dec 2020 09:10 AM (IST)
आगरा, जागरण संवाददाता। शहंशाह शाहजहां का काल मुगल समय में स्वर्ण युग कहा जाता है। उसके समय स्थापत्य कला अपने चरम पर पहुंच गई थी। शाहजहां द्वारा आगरा में बनवाए गए ताजमहल, मुसम्मन बुर्ज और मोती मस्जिद सफेद संगमरमर से बनी सर्वश्रेष्ठ इमाारतें हैं। ताजमहल और मुसम्मन बुर्ज तो पर्यटक देख लेते हैं, लेकिन आगरा किला में मोती मस्जिद में पर्यटकों का प्रवेश प्रतिबंधित है। दूर से इसके गुंबद ही नजर आते हैं।
शहंशाह शाहजहां के समय बने स्मारकों में मुगलकालीन वैभव और निर्माण कला का उत्कृष्ट रूप नजर आता है। ताजमहल तो दुनिया भर में अपनी पच्चीकारी, साम्यता और अद्भुत सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। आगरा किला का मुसम्मन बुर्ज भी शहंशाह शाहजहां के अंतिम दिनों का साक्षी है। इसमें पर्यटकों का प्रवेश तो वर्जित है, लेकिन इसे वो नजदीक से देख लेते हैं। आगरा किला स्थित मोती मस्जिद भी कुछ कम नहीं है, लेकिन यह पर्यटकों की पहुंच से बाहर है। यह है तो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) द्वारा संरक्षित, लेकिन इसमें पर्यटकों को प्रवेश नहीं मिलता। शहंशाह शाहजहां ने अपने शासनकाल में वर्ष 1647 में इसका निर्माण शुरू कराया था और वर्ष 1654 में यह बनकर तैयार हुई थी। अपनी तरह की मस्जिदों में यह पूरे एशिया में सर्वश्रेष्ठ है। उस समय इसके निर्माण पर तीन लाख रुपये की लागत आई थी।
मोती मस्जिद की बाहरी दीवारें रेड सैंड स्टोन की बनी हैं, जबकि अंदर की तरफ पूरा काम सफेद संगमरमर का है। पूर्व से पश्चिम तक इसकी दीवार 234 फीट और उत्तर से दक्षिणी की तरफ इसकी दीवार 187 फीट लगी है। मस्जिद के आंगन में बना टैंक वर्गाकार है, जिसकी प्रत्येक दिशा में लंबाई 37 फुट है। मुख्य मस्जिद अंदर से मेहराब और खंबों की पंक्तियों के द्वारा तीन भागों में बंटी हुई है। इसके ऊपर तीन गुंबद बने हैं, जो कि दूर से ही चमकते हैं। मस्जिद के सामने महिलाओं के लिए नमाज पढ़ने को चैंबर बना हुआ है। इसमें पर्दे के लिए संगमरमर की जाली लगाई गई है। मस्जिद के सामने वाले आर्च में काले संगमरमर पर फारसी भाषा में लिखा शिलालेख है। इसे छोड़कर पूरी मस्जिद सफेद संगमरमर की बनी हुई है।
धूप घड़ी बनी है मस्जिद के आंगन में धूप घड़ी का स्तंभ बना हुआ है। मुगल काल में सूर्य के घूमने और स्तंभ की परछाईं के आधार पर समय का आकलन किया जाता था।
सीढ़ियां चढ़कर पहुंचते हैं मस्जिद मोती मस्जिद ऊंचाई पर बनी हुई है और मस्जिद तक जाने को काफी सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मस्जिद के नीचे के भाग में कोठरियां बनी हुई हैं।
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