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नाम मुगल से हो गया छत्रपति शिवाजी म्‍यूजियम, काम नहीं हुआ दो साल में एक भी, आगरा को बजट का इंतजार

भाजपा सरकार ने मुगल म्यूजियम का नाम बदलकर किया था छत्रपति शिवाजी म्यूजियम। अब तक 99 करोड़ रुपये प्रोजेक्ट पर हो चुके हैं खर्च प्राेजेक्ट को नहीं दिया गया बजट। म्‍यूजियम बना रही कंपनी ने भी पांच करोड़ रुपये बकाया होने पर काम रोका।

By Prateek GuptaEdited By: Updated: Sat, 19 Feb 2022 09:25 AM (IST)
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आगरा में बन रहा म्‍यूजियम। सीएम योगी आदित्‍यनाथ ने इसका नाम छत्रपति शिवाजी म्‍यूजियम किया था।

आगरा, जागरण संवाददाता। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहले चरण के विधानसभा चुनाव के दौरान आगरा में चुनावी जनसभा करने आए तो आगरावासियों को साधने के लिए उन्होंने कहा था, सरकार ने मुगल म्यूजियम का नाम बदलकर छत्रपति शिवाजी महाराज म्यूजियम किया। हकीकत यह है कि सरकार केवल म्यूजियम का नाम ही बदल सकी है। प्रोजेक्ट पर 99 करोड़ रुपये व्यय होने के बावजूद दो वर्ष से अधिक समय से काम ठप है।

शिल्पग्राम के नजदीक मुगल म्यूजियम का शिलान्यास पांच जनवरी, 2016 को तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने किया था। प्री-कास्ट टेक्नीक की वजह से इस काम में विलंब हुआ। वर्ष 2017 में प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के साथ ही प्रोजेक्ट अधर में लटक गया। सितंबर, 2020 में मुख्यमंत्री योगी अादित्यनाथ ने आगरा मंडल की आनलाइन समीक्षा बैठक में म्यूजियम का नामकरण छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर करने के निर्देश दिए। उप्र पर्यटन ने मुख्यमंत्री के निर्देशों के बाद नाम परिवर्तन का शासनादेश जारी कर दिया। मार्च, 2021 में सरकार ने पांच करोड़ रुपये दिए भी, लेकिन जनवरी, 2020 से ठप म्यूजियम का काम एक कदम आगे नहीं बढ़ सका। इसकी वजह म्यूजियम बना रही कंपनी का पांच करोड़ रुपये से अधिक का बकाया होना था। राजकीय निर्माण निगम ने पिछले जून में बजट जारी करने को पत्र भेजा था, लेकिन उसका संज्ञान ही नहीं लिया गया। राजकीय निर्माण निगम के परियोजना प्रबंधक दिलीप सिंह ने बताया कि प्रोजेक्ट के लिए बजट जारी करने को शासन को पत्र भेजे गए हैं।

यह काम नहीं हो सके हैं

म्यूजियम में मार्बल फ्लोरिंग, वाल क्लेडिंग, साइट डवलपमेंट, विद्युतीकरण, फायर फाइटिंग सिस्टम व लिफ्ट का काम नहीं हुआ है। यहां बेसमेंट, ग्राउंड फ्लोर व फर्स्ट फ्लोर बनकर तैयार हैं।

फैक्‍ट फाइल

-5.9 एकड़ जमीन में बन रहा है म्यूजियम।

-म्यूजियम की लागत 141.89 करोड़ रुपये आंकी गई थी। वर्ष 2018 में जीएसटी लागू होने, निर्माण सामग्री महंगी होने व काम बढ़ने से लागत 172 करोड़ रुपये तक पहुंची। पुनरीक्षित लागत स्वीकृत नहीं हो सकी।

-राजकीय निर्माण निगम ने टाटा प्रोजेक्ट्स को सौंप रखा है प्रोजेक्ट।

-प्री-कास्ट टेक्नीक से बन रहा प्रदेश का पहला सरकारी भवन है। 

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