National Endangered Species Day: लुप्तप्राय जीवों के लिए आज सुरक्षित अासरा है चंबल नदी और उसकी घाटी
अाज है राष्ट्रीय लुप्तप्राय प्रजाति दिवस। मानवीय गतिविधियों व प्रकृति के दोहन से जीव-जंतुओं के अस्तित्व काे संकट। चंबल सेंक्चुरी में हो रहा है घड़ियाल कछुअों और गांगेय डाल्फिन का संरक्षण। बाह में वर्ष 1979 में राष्ट्रीय चंबल सेंक्चुरी प्रोजेक्ट से लुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण शुरू किया गया था।
By Prateek GuptaEdited By: Updated: Fri, 21 May 2021 08:25 AM (IST)
आगरा, निर्लोष कुमार। मानवीय और औद्योगिक गतिविधियों, प्रकृति के अत्यधिक दोहन से जीव-जंतुअों और वनस्पतियों के अस्तित्व के समक्ष संकट मंडरा रहा है। नदियों में बढ़ते प्रदूषण के चलते जहां जलीय जीवों के लिए खतरा बढ़ा है, वहीं चंबल का साफ पानी उनके लिए सुरक्षित आसरा बना हुआ है। यहां लुप्तप्राय गांगेय डाल्फिन व कछुओं और गंभीर संकटग्रस्त घड़ियाल का संरक्षण किया जा रहा है।
चंबल नदी राजस्थान, मध्य प्रदेश व उप्र में होकर बहती है। बाह में वर्ष 1979 में राष्ट्रीय चंबल सेंक्चुरी प्रोजेक्ट की शुरुआत कर लुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण शुरू किया गया था। यहां राजस्थान के रेहा बार्डर से इटावा बार्डर के उदयपुर खुर्द तक घड़ियालों का संरक्षण किया जा रहा है। मादा घड़ियाल मार्च-अप्रैल में नदी के किनारे बालू में नेस्टिंग करती है और मई-जून में हैचिंग करती है। यहां कछुओं की लुप्तप्राय आधा दर्जन से अधिक प्रजातियां भी मिलती हैं। इनमें साल, मोरपंखी, कटहेवा, पचेवा, सुंदरी, तिलकधारी, इंडियन स्टार, धमोक, चौड़ आदि प्रमुख हैं। कछुओं द्वारा मार्च में नेस्टिंग और जून-जुलाई में हैचिंग की जाती है। गंगा नदी में पाई जाने वाली गांगेय डाल्फिन भी यहां है।
पक्षी विशेषज्ञ डा. केपी सिंह बताते हैं कि चंबल सेंक्चुरी में लुप्तप्राय गांगेय डाल्फिन, कछुओं और गंभीर संकटग्रस्त घड़ियालों का संरक्षण किया जा रहा है। लुप्तप्राय प्रजातियों की जानकारी, उनके आवासों की सुरक्षा व उनके प्राकृतिक महत्व के बारे में जागरुकता कार्यक्रम चलाकर लुप्तप्राय प्रजाति दिवस के उद्देश्य को सफल बनाया जा सकता है।
सिकंदरा में हैं कृष्ण मृग
कृष्ण मृग (ब्लैक बक) भी लुप्तप्राय प्रजाति के जीवों में शामिल है। आगरा में अकबर के मकबरे सिकंदरा में हिरणों के साथ कृष्ण मृगों को देखा जा सकता है। ब्रिटिश काल में उनका एक जोड़ा यहां लाया गया था। स्मारक में लकड़बग्घों से उनके अस्तित्व को संकट है।राष्ट्रीय लुप्तप्राय प्रजाति दिवसराष्ट्रीय लुप्तप्राय प्रजाति दिवस मई के तीसरे शुक्रवार को मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य संसार में व्याप्त वन्य जीवों और लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करना है।
635 वर्ग किमी क्षेत्रफल में है चंबल सेंक्चुरी प्रोजेक्टराष्ट्रीय चंबल सेंक्चुरी प्रोजेक्ट करीब 635 वर्ग किमी क्षेत्रफल में है। वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत घड़ियाल शेड्यूल वन में शामिल है। कछुए की सभी प्रजातियां संरक्षित श्रेणी में हैं। वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत कछुअों की तस्करी में दो से सात वर्ष तक की सजा का प्रावधान है।आगरा में दिखते हैं संकटग्रस्त सूची में शामिल यह पक्षी
इंटरनेशनल यूनियन फार कंजर्वेशन आफ नेचर (अाइयूसीएन) की गंभीर संकटग्रस्त सूची में शामिल पक्षी इजिप्सियन वल्चर, रिवर टर्न, ब्लैक-बिल्ड टर्न, ब्लैक हैडेड आइबिश, सारस क्रेन, ग्रेटर स्पोटिड ईगल, इंडियन स्कीमर, रिवर लेपविंग, ओरिएंटल डार्टर, डालमेशन पेलिकन, ब्लैक नेक्ड स्टार्क दिखाई देते हैं।कम हो रहे सारस क्रेन और इजिप्सियन वल्चरभारत में राज्य पक्षी सारस क्रेन की आबादी उप्र में सर्वाधिक है, लेकिन आगरा में उनकी स्थिति बहुत निराशाजनक है। वर्ष 2017 में सूर सरोवर पक्षी विहार (कीठम) और बाह में दो जोड़े सारस क्रेन के रिकार्ड किए गए थे। इसके बाद उनकी गणना नहीं हो सकी। यहां इजिप्सियन वल्चर की संख्या भी निरंतर कम हो रही है। वर्ष 2017 में करीब 50 इजिप्सियन वल्चर थे। वर्ष 2018 में यह 16 और वर्ष 2018 में 12 ही रह गए।
यह हैं संकट के कारण-मानवीय व औद्योगिक गतिविधियां और प्रकृति का अंधाधुंध दोहन।-वेटलैंड्स का सिकुड़ना और सूखना।-पक्षियों के हेविटाट का नष्ट होना।-पर्यावरण में विदेशी प्रजातियों की घुसपैठ-अंधाधुंध शिकार।-पर्यावरणीय प्रदूषण।-जलवायु परिवर्तन।-बीमारी व आनुवंशिक कारण।-वनों की कटाई।जलीय जीवों की स्थिति
घड़ियालवर्ष, संख्या2013, 9052014, 9482015, 10882016, 11622017, 12552018, 16212019, 17052020, 1812मगरमच्छवर्ष, संख्या2013, 3562014, 3902015, 4022016, 4642017, 5622018, 6112019, 6652020, 702गांगेय डाल्फिन
वर्ष, संख्या2013, 592014, 662015, 712016, 782017, 752018, 74
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