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आगरा का एतिहासिक गेट पर नहीं है इसमें से गुजरने की किसी को इजाजत Agra News

हरीपर्वत चौराहा से मदिया कटरा जाने वाले इस मार्ग पर है दिल्‍ली गेट। हर राहगीर का ध्यान आकर्षित करता है।

By Tanu GuptaEdited By: Updated: Sun, 03 Nov 2019 12:07 PM (IST)
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आगरा का एतिहासिक गेट पर नहीं है इसमें से गुजरने की किसी को इजाजत Agra News
आगरा, आदर्श नंदन गुप्‍त। एतिहासिक शहर आगरा में मुगल बादशाहों ने अनेक इमारतों, स्मारकों का निर्माण कराया। इनमें से अधिकांश स्मारक घनी बस्तियों या अन्य स्थलों की ओट में छिप गए। विशालकाय दिल्ली गेट आज शहर की आन, बान, शान बना हुआ है। जरूरत है इसके सौंदर्यीकरण की।

हरीपर्वत चौराहा से मदिया कटरा जाने वाले इस मार्ग पर यह विशाल गेट हर राहगीर का ध्यान आकर्षित करता है। अब भले ही इसके नीचे हो कर किसी को गुजरने की इजाजत नहीं है, लेकिन कई दशकों पूर्व यह गेट आगरा और दिल्ली को जोड़ता था। इसलिए इसका नाम दिल्ली गेट पड़ गया।

इस विशाल दिल्ली गेट के बायीं ओर राजा मंडी रेलवे स्टेशन व दायीं ओर होटल गोवर्धन है। गेट के आसपास कई बार सौंदर्यीकरण का प्रयास किया गया, लेकिन वह बहुत ज्यादा दिन तक नहीं चल सका। इसमें से गुजरने वाले हिस्से को लोहे के तार व जालियों से बंद किया हुआ है।

गेट के ऊपर चारों कोनों पर चार छतरी बनी हुई हैं। उनके ऊपर एक बरामदा बना है। छत पर बारिश का पानी एकत्र न हो, इसके पानी की निकासी के लिए नालियां बनी हुई हैं। गेट के पीछे एक मस्जिद भी बनी हुई है।

11 वर्ग मील की थी चहारदीवारी

‘पिक्टोरियल आगरा’ शीर्षक पुस्तक में दिल्ली गेट के बारे में लिखा है कि सलीम शाह सूरी ने आगरा को 11 वर्ग मील के क्षेत्र में एक चहारदीवारी से घेर दिया था, यह दीवार यमुना नदी से ताजमहल तक बनवाई गई थी। इसमें 11 दरवाजे थे, जिनमें से एक दिल्ली गेट भी प्रमुख था। पुस्तक के अनुसार इस गेट को कई बार खंडित किया गया, लेकिन उसका बार-बार जीर्णोद्धार भी किया गया। यानी, किसी भी शासन में इसकी शान में कमी नहीं आने दी। ‘मुकद्दस ए अकबराबाद’ नामक पुस्तक में भी इसका उल्लेख है। इसके अनुसार मोहम्मद शाह बादशाह के जमाने में राजा जयसिंह सूबेदार ने इसकी मरम्मत कराई थी। गदर के जमाने में इस चहारदीवारी का भी वजूद मौजूद था।

वहीं दूसरी ओर वरिष्ठ इतिहासविद राज किशोर राजे का कहना है कि मुगलकाल में आगरा के चारों ओर सुरक्षा की दृष्टि से एक मजबूत चहारदीवारी बनाई गई थी, जिसमें 16 दरवाजे नगर में प्रवेश के लिए बने थे। समय के साथ-साथ दीवार नष्ट हो गई। आज उसका कोई निशान बाकी नहीं है। परंतु चहारदीवारी का सबसे प्रमुख द्वार आज भी भव्यता के साथ सीना ताने खड़ा है। आगरा की चहारदीवारी का निर्माण अफगान शासक शेरशाह सूरी के पुत्र सलीम शाह सूरी ने वर्ष 1545 से 1549 के मध्य कराया था। इस गेट से दिल्ली की ओर जाने पर प्रत्येक ढाई मील पर एक मीनार मिलती है, जिसे कोस मीनार कहते हैं। इसके भीतर प्रथम तल पर दो बड़े विशाल कमरे बने हुए है। दिल्ली गेट की उत्तरी दीवार पर ब्रिटिश काल का एक पत्थर जड़ा हुआ है, जिसमें हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू में दिल्ली दरवाजा शब्द अंकित है। 

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