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अब वीर गोकुला जाट के नाम से पहचाना जाएगा तेरह मोरी उद्यान

राज्यमंत्री चौधरी उदयभान सिंह चार वर्ष से कर रहे थे प्रयास। उद्यान को पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बनाया जाएगा। हर साल एक जनवरी को वीर गोकुला जाट बलिदान दिवस समारोह होगा। वीर गोकुला जाट की आदमकद की प्रतिमा उद्यान में स्थापित कराई जाएगी।

By Prateek GuptaEdited By: Updated: Sat, 08 Jan 2022 12:27 PM (IST)
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राज्‍यमंत्री चौ. उदयभान सिंह के प्रयास से वीर गोकुल जाट की प्रतिमा लगने जा रही है।

आगरा, जागरण संवाददाता। उद्यान विभाग के अधीन फतेहपुर सीकरी स्थित तेरह माेरी बांध के निकट स्थित राजकीय उद्यान प्रक्षेत्र फतेहपुर तेरहमोरी का नाम बदलकर गोकुला जाट उद्यान कर दिया गया है। उद्यान विभाग के विशेष सचिव संदीप कौर ने इसका आदेश जारी कर दिया है। 76 एकड़ में बने इस उद्यान हिंदू रक्षक कहे जाने वाले वीर गोकुला जाट के नाम पर कराने के लिए राज्यमंत्री चौधरी उदयभान सिंह लंबे समय से प्रयासरत थे।

राज्यमंत्री चौधरी उदयभान सिंह ने बताया कि बलिदानी महापुरुषों की स्मृति को स्थाई रूप देने के लिए लंबे समय प्रयास किया जा रहा है। इसी कड़ी में आगरा-जयपुर मार्ग पर फतेहपुर सीकरी के निकट तेरह माेरी बांध के ठीक सामने गोकुल जाट उद्यान विकसित किया जा रहा है। आने वाली पीढ़ियां वीर की बलिदानी कथा से परिचित हो सकेंगी, जिसे इतिहास ने भुला दिया है। वामपंथी इतिहासकारों ने गोकुला जाट के बलिदान का कहीं भी जिक्र नहीं किया है। वीर गोकुल जाट के नाम पर उद्यान का नाम रखकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जाटों का गौरव बढ़ाया है। मैं मुख्यमंत्री को साधुवाद देता हूं। जल्दी ही आगरा में उनका नागरिक अभिनंदन किया जाएगा।

आदमकद लगाई जाएगी प्रतिमा

राज्यमंत्री ने बताया कि गोकुला जाट की आदमकद की प्रतिमा उद्यान में स्थापित कराई जाएगी। उद्यान को पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बनाया जाएगा। हर साल एक जनवरी को वीर गोकुला जाट बलिदान दिवस समारोह होगा। जाटों के कुल गौरव गोकुल सिंह उर्फ गोकुला जाट की कहानी रोमांचित करने वाली है।

ये है इतिहास

वीर गोकुला जाट तिलपत के जमींदार थे। मुगलों ने जब मथुरा के मंदिरों को तोड़ने और अधिक मालगुजारी वसूलने का आदेश दिया तो कोतवालों ने जुल्म शुरू कर दिए। कोई भी विरोध नहीं कर पा रहा था। ऐसे में वीर गोकुला जाट ने हर वर्ग के किसानों को एकत्रित किया और मालगुजारी न देने का ऐलान किया। मुगल फौज और गोकुला जाट की किसान सेना के बीच संघर्ष शुरू हो गया। 10 मई, 1666 को औरंगजेब की सेना और गोकुला जाट के बीच युद्ध हुआ, जिसे तिलपत की लड़ाई के नाम से जाना जाता है। जाटों की जीत हुई। इसके बाद औरंगजेब ने धर्म को बढ़ावा दिया और लगान बढ़ा दिया। गोकुला जाट ने लगान देने से मना कर दिया। औरंगजेब ने अनेक सेनापति भेजे, जाटों ने सबको हरा दिया। अंततः औरंगजेब को 1669 में दिल्ली से चलकर मथुरा आना पड़ा। दिसंबर 1669 में औरंगजेब और गोकुला जाट के बीच तीन दिन तक भीषण युद्ध हुआ। अंततः गोकुला जाट उनके साथियों और स्वजनों को बंदी बना लिया गया। गोकुला जाट के समक्ष औरंगजेब ने शर्त रखी कि जान की सलामती चाहते हो तो मतांतरण कर लो। गोकुला जाट हिन्दू धर्म के रक्षक थे। इनकार किया तो पुरानी कोतवाली (यह जौहरी बाजार में है, जिसमें अब पोस्ट आफिस है) के सामने गोकुला जाट को अंग-अंग काटकर मार डाला गया। गोकुल सिंह के चाचा उदय सिंह को प्रताड़ना दी गई, लेकिन उन्होंने मतांतरण स्वीकार नहीं किया। 

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