अकबर के समय बंद हुआ सिक्कों पर लक्ष्मी जी का मुद्रण, आज भी दीपावली पर लक्ष्मी-गणेश के सिक्कों की मांग बरकरार
Laxmi Ganesh Coins On Diwali देश में एक दौर ऐसा भी था जब सिक्कों पर लक्ष्मी जी का मुद्रण होता था। इतिहासकारों का मानना है कि अकबर के समय में सिक्कों पर देवी देवताओं का मुद्रण बंद कराया था। इससे पहले गुप्तकाल 12वीं शताब्दी में मिले सिक्कों पर काफी प्रकार के चित्र मुद्रित थे। कुछ पर राम नाम भी अंकित था।
जागरण संवाददाता, आगरा। चांदी में रिकार्ड तेजी के बाद भी दीपावली पर लक्ष्मी-गणेश के चांदी के सिक्कों की मांग बरकरार है। दीपावली पर पूजन और उपहार में देने को लक्ष्मी-गणेश के सिक्के खरीदे जाते हैं। देश में भले ही आज सिक्कों और नोटों पर लक्ष्मी जी का अंकन नहीं होता है, लेकिन एक दौर ऐसा भी था, जब सिक्कों पर लक्ष्मी जी का मुद्रण होता था।
कनिष्क के समय मिली आकृति को माना लक्ष्मीजी का
अकबर के शासनकाल में सिक्कों पर लक्ष्मी जी का मुद्रण बंद कराकर कलमा का मुद्रण शुरू कराया गया था। भारत में सिक्कों पर चेहरे की अंकन की शुरुआत पहली शताब्दी से मानी जाती है। कनिष्क के समय के एक सिक्के पर मिली आकृति को लक्ष्मी जी का माना गया है। यह कुषाण देवी अर्डोक्शो का सिक्का है, जो धन व समृद्धि की देवी थीं। सिक्के पर उनके हाथ में अनाज की फलियां हैं। गुप्त काल में समुद्रगुप्त के समय के सिक्कों पर देवी दुर्गा, चंद्रगुप्त द्वितीय के समय पद्मासन मुद्रा में लक्ष्मी जी, स्कंदगुप्त के समय धनलक्ष्मी का अंकन है। गुप्त काल के सिक्कों पर अंकित देवी के मुद्रण को इतिहासकार लक्ष्मी जी मानने पर एकमत नहीं हैं।
मिलता है सिक्कों पर लक्ष्मीजी का उल्लेख
राजपूत काल में सिक्कों पर देवी का मुद्रण लक्ष्मी जी मानकर किया गया। 12वीं शताब्दी में गोविंदचंद्र गहड़वाल के समय लक्ष्मी जी के मुद्रण वाले काफी सिक्के जारी हुए। कल्याणी के कल्चुरी वंश के शासकों ने भी लक्ष्मी जी के सिक्के जारी किए। लंबे समय तक सिक्कों पर लक्ष्मी जी और दूसरी ओर राजा के नाम का मुद्रण होता रहा। रांगेय राघव की पुस्तक "रांगेय राघव ग्रंथावली भाग-10' में अकबर द्वारा सिक्कों से लक्ष्मी जी और भारत के नक्शे को हटाने का उल्लेख मिलता है।क्या कहते हैं इतिहासकार
इतिहासविद राजकिशोर राजे बताते हैं कि सिक्कों से लक्ष्मी जी को हटवाकर अकबर ने कलमा मुद्रित कराना शुरू किया था। प्राचीन काल में भारत में सिक्कों पर लक्ष्मी जी बनी होती थीं। वर्ष 1192 में तराइन के दूसरे युद्ध में मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को पराजित कर अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक काे हराकर सत्ता सौंपी, तब भी लक्ष्मी जी के सिक्के जारी रहे। खिलजी, तुगलक और लोदी वंश के समय भी सिक्कों में परिवर्तन नहीं किया गया था। श्रीराम पर जारी किया था सिक्का अकबर ने सिक्कों पर लक्ष्मी जी का मुद्रण तो बंद करा दिया था, लेकिन उसने वर्ष 1604 में भगवान श्रीराम और सीताजी पर चांदी का सिक्का जारी किया था।
सिक्के पर थे अंकित
पांच अधेला के सिक्के पर देवनागरी में राम सिया अंकित था। स्वास्तिक और त्रिशूल प्रतीक चिह्न के चार ग्राम वजन के सिक्के भी उसने जारी किए थे। यह फतेहपुर सीकरी स्थित टकसाल में ढाले गए थे। पंचमार्क सिक्के सबसे पुराने भारतीय मुद्रा में सबसे प्राचीन पूर्वी उप्र व बिहार में मिले पंचमार्क सिक्के माने जाते हैं। यह ईसा से 600 से 200 वर्ष ईसा पूर्व के काल में प्रचलन में थे। चांदी, तांबे व कांसे के सिक्कों की निर्धारित शेप नहीं थी। इन पर मछली, मोर, यज्ञ वेदी, शंख, बैल, पेड़, हाथी आदि चित्रित हैं। इन्हें राजाओं के बजाय व्यापारियों द्वारा जारी माना जाता है।ये भी पढ़ेंः Banke Bihari Mandir: दीपावली बाद बांकेबिहारी मंदिर में दर्शन का समय बदलेगा, ठंडाई की जगह केसरयुक्त गर्म दूध का भाेग
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