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Radha Ashtami 2022: बरसाना के इस वन में आज भी सुनाई देती है राधारानी की पायल की झंकार, खुद बसाया था बृषभान दुलारी ने

Radha Ashtami 2022 गहवरवन में भी राधारानी अपनी सहचरियों के साथ विचरण करती हैं। गहवरवन में साधना करने वाले तमाम संतो रात के अंधेरों में छोटी सी बच्ची की आवाज भी सुनी लेकिन आजतक उन्हें कोई दिखाई नहीं दिया।

By Tanu GuptaEdited By: Updated: Sat, 27 Aug 2022 12:57 PM (IST)
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बरसाना में बसा गहवरवन जिसकी स्थापना स्वयं राधा रानी ने की थी।

आगरा, किशन चौहान। गहवरवन के वास कौ आस करे शिव शेष, ताकि महिमा कौ कहे जहां कृष्ण धरे सखी भेष। राधारानी का सबसे प्रिये बरसाना का गहवर वन जिसे खुद उन्होंने अपने हाथों से सजाया संवारा था। लता पताओ से घिरे गहवरवन के कुंजन वन में आज भी बृषभान दुलारी के पायलों की झंकार सुनाई देती है। गहवरवन में वास करने वाले तमाम संतो ने रात के अंधेरों में पायलों की झंकार सुनी है।

वैसे तो पूरा ब्रज राधारानी की लीलाओं को संजोए हुए है, लेकिन बरसाना में उनकी तमाम बाल लीलाओं के निशान आज भी मौजूद है। ब्रह्मांचल पर्वत के मध्य स्थित गहवरवन जो लताओं व पताओ से घिरा है। जिसे राधारानी ने स्वयं अपने हाथों से लगाया था। इसी वन में राधारानी अपनी सहचरियों के साथ नित्य विहार करती थी। यहां तक कि भगवान श्रीकृष्ण ने भी कई बार गहवरवन की लताओं पताओ के बीच राधारानी व उनकी सखियों के साथ रास रचाया था। गहवरवन के आसपास तमाम लीला स्थल है। दानगढ़, मोरकुटी, मानगढ़ जहां भगवान श्रीकृष्ण व राधारानी ने अपनी तमाम बाल लीलाएं की थी। आज भी यह बाल लीलाएं बूढ़ी लीला महोत्सव के दौरान जीवंत हो उठती है। मान मंदिर के सचिव सुनील सिंह बताते है कि कई बार संत रमेश बाबा ने रात के अंधेरों में पायलों की झंकार सुनी, लेकिन जब कुटिया से बाहर निकलकर देखा तो कोई भी नजर नहीं आता।

गहवरवन में विचरण करती है बृषभान दुलारी

वृंदावन के निधिवन जहां आज भी राधाकृष्ण महारास करते है। ऐसे ही मान्यता है कि गहवरवन में भी राधारानी अपनी सहचरियों के साथ विचरण करती हैं। गहवरवन में साधना करने वाले तमाम संतो रात के अंधेरों में छोटी सी बच्ची की आवाज भी सुनी, लेकिन आजतक उन्हें कोई दिखाई नहीं दिया।

डकैतों का अड्डा हुआ करता था गहवरवन

आज से 67 साल पहले जब ब्रज के विरक्त संत रमेश बाबा गहवरवन में आये थे तो यह एक निर्जन वन था। जहां डकैतों का अड्डा हुआ करता था। ब्रज के विरक्त संत रमेश बाबा ने बताया कि गहवरवन कभी जहान डकैत व उसके साथियों का अड्डा था। उन्होंने भी कई बार गहवरवन में पायलों की झंकार सुनी थी। जिसके बाद वो संत बन गये और राधारानी की कृपा से सांसारिक मोह का परित्याग कर दिया। गहवरवन एक पौराणिक स्थल है। जहां राधारानी अपनी सखियों के साथ विचरण करती है। आज भी बृषभान नन्दनी गहवरवन की लताओं पताओ में विचरण करती है। जिनकी पायलों की झंकार हमने कई बार सुनी है। यहां तक कि रात के अंधेरों में एक छोटी से बच्ची की आवाज भी सुनी, लेकिन बाहर निकल के देखा तो कोई भी नहीं दिखा।

गहवरवन की परिक्रमा लगाकर धन्य होते है श्रद्धालु

गोवर्धन पर्वत की तरह बरसाना के गहवरवन की भी परिक्रमा लगाई जाती है। यह परिक्रमा लगभग चार किलोमीटर की होती है। उक्त परिक्रमा में ब्रह्मांचल पर्वत के चारों शिखरों दानगढ़, मानगढ़, भानगढ़, विलासगढ़ के दर्शन होते है। कहावत है कि गोवर्धन की सात परिक्रमा व गहवरवन की एक परिक्रमा का बराबर महत्व माना जाता है। मान्यता है कि ब्रह्मांचल पर्वत ब्रह्मा जी का ही स्वरुप है। पर्वत के चारों गढ़ ब्रह्माजी के मुख व गहवरवन वक्ष स्थल है। 

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