New Year की वो रात देवदूत बनकर आया था “खाकी धारी”, 20 साल बाद हुई मुलाकात तो काराेबारी बोला साक्षात भगवान
लखनऊ में एक जनवरी 2002 को सड़क दुर्घटना में घायल हो गए थे कारोबारी। गोमती नगर के तत्कालीन सीओ डा. अरविंद चतुर्वेदी के तत्परता और त्वरित निर्णय ने बचाई थी जिंदगी। 13 दिन कोमा 19 दिन आईसीयू छह महीने बेड पर दो साल पैरों पर खड़े सके थे कारोबारी।
By Ali AbbasEdited By: Tanu GuptaUpdated: Mon, 07 Nov 2022 05:59 PM (IST)
आगरा, जागरण संवाददाता। जिस पुलिस अधिकारी ने कारोबारी को जीवन दिया था। वह अपनी पत्नी के साथ उनका धन्यवाद करने के लिए 20 साल से इंतजार कर रहे थे। क्योंकि हादसे के बाद कारोबारी 13 दिन कोमा में, 19 दिन आइसीयू में रहे। छह महीने तक बेड पर रहे। फिजियो थेरेपी से उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने में दाे साल लग गए थे। बीस साल बाद नवंबर 2022 को कारोबारी ने नया जीवन देने वाले तत्कालीन सीओ डा. अरविंद चतुर्वेदी से अपने एक परिचित के साथ बातचीत के दौरान उक्त हादसे का जिक्र किया। कारोबारी और उनकी पत्नी को पता चला कि जीवन देने वाले सीओ सामने हैं,तो उनके आंसू निकल आए। कारोबारी की पत्नी एक प्रतिष्ठित पब्लिक स्कूल में प्रधानाचार्या हैं। जबकि आइपीएस डा. अरविंद चतुर्वेदी वर्तमान में लखनऊ में एसपी विजिलेंस के पद पर तैनात हैं।
सड़क दुर्घटना में घायल को त्वरित उपचार के लिए अस्पताल पहुंचाना सिर्फ घायल को ही नहीं, एक परिवार को जिंदगी को देता है। बीस साल पूर्व लखनऊ के गोमती नगर के तत्कालीन सीओ डा. अरविंद चतुर्वेदी ने सड़क हादसे में घायल एक कारोबारी को अस्पताल पहुंचाने में तत्परता दिखाई। उन्हें पास के अस्पताल में पांच मिनट में भर्ती कराया। इस घटना को वह भूल गए थे। डा. अरविंद चतुर्वेदी ने अपने संस्मरण को साझा किया है। कारोबारी को जीवन देने की कहानी उन्हीं की जुबानी है
कभी-कभी संयोग भी बड़े विचित्र होते हैं और रोमांचित कर देते हैं
पिछले हफ्ते हमारे एक घनिष्ठ मित्र ने फोन किया कि उनके एक पारिवारिक मित्र एक समस्या में हैं और परामर्श और समाधान के लिए मुझसे मिलवाना चाहते हैं। निर्धारित समय पर हमारे मित्र और उनके साथ पारिवारिक मित्र और उनकी पत्नी मेरे कार्यालय आए। दोनों स्पष्ट रूप से बहुत तनाव में दिख रहे थे। कुछ देर उनकी समस्या सुनने और कुछ स्पष्टीकरण पूछने के बाद मुझे ध्यान आया कि उनके केस का संबंध उस जनपद में पुलिस अधीक्षक के रूप में मेरी तैनाती के दौरान एक गंभीर और पुराने जमीनी विवाद से ताल्लुक रखता था। मैंने कुछ पॉइंट्स नोट किए और फिर संबंधित इंस्पेक्टर को फोन किया। इंस्पेक्टर को भी उस केस की पृष्ठभूमि मालूम थी इसलिए आसानी से वह मेरी बात समझ सके। मैंने स्पष्ट रूप से बताया कि मेरे पास बैठे व्यक्ति का उस केस से बहुत सीमित संबंध है जो आपराधिक कृत्य की सीमा तक नहीं जाता है इसलिए इनकी बात धैर्य पूर्वक सुनी जाए और नियमानुसार कार्यवाही की जाए। मेरी और इंस्पेक्टर की बात सुनने के बाद उन पति और पत्नी के चेहरे पर दिख रहा तनाव काफी हद तक दूर हो गया।चाय की चुस्कियों के दौरान इस तरह मिले जीवनदाता
इसी बीच चाय आ गई और चाय की चुस्कियों के साथ हम लोग सामान्य बातचीत करने लगे। हमारे मित्र ने हमसे अपनी घनिष्ठता बताते हुए उन पति - पत्नी से कहा कि अरविन्द जी से मेरा संबंध लगभग 20-22 साल पुराना है जब वो सीओ गोमतीनगर हुआ करते थे। उनके यह कहते ही आए हुए सज्जन की पत्नी ने मुझसे पूछा कि क्या 1 जनवरी 2002 को आप सीओ गोमतीनगर थे? मेरे हां कहने पर अचानक उनकी आंखों से आंसू निकलने लगे, हम सब अवाक रह गए कि अचानक ऐसा क्या हो गया। उन्होंने लगभग सुबकते हुए मुझसे फिर एक प्रश्न किया कि क्या एक जनवरी 2002 की रात में आपने किसी घायल को मेयो अस्पताल पहुंचाया था?
याददाश्त पर थोड़ा सा जोर डालने पर 20 साल पुरानी घटना मेरी आंखों के सामने फिल्म की तरह चलने लगी। मेरे रोएं खड़े हो गए। मैंने उन्हें बताया कि नए साल की पार्टी के जश्न के बाद ताज होटल लखनऊ से बहुत सारे लोग निकल रहे थे और मैं उस रात घने कोहरे में अपनी टीम के साथ पेट्रोलिंग कर रहा था। ताज होटल के पास बने फ्लाईओवर के नीचे जहां उस जमाने में बहुत अंधेरा और सुनसान रहता था, एक राउंड लगाने की नीयत से मैंने अंबेडकर चौराहे से ड्राइवर केपी सिंह को यू टर्न लेने के लिए कहा। हम लोग 300- 400 मीटर ही चले होंगे कि मेरी जिप्सी की बाईं साइड फ्लैशलाइट एक व्यक्ति पर पड़ी जो वहां घायल पड़ा हुआ था। गाड़ी रुकवा कर मैं उसके पास भागा और देखा कि वह व्यक्ति खून से लथपथ पड़ा हुआ था। ताजा एक्सीडेंट हुआ था। अपने हमराहियों की मदद से उस व्यक्ति को जिप्सी में किसी तरह बैठाया, हम सबकी वर्दी बहते हुए खून से भींग गई थी। मेरा ड्राइवर तेजी से सिविल अस्पताल, हजरतगंज की ओर बढ़ने लगा। याद दिला दूं कि उस समय लोहिया अस्पताल/संस्थान, गोमती नगर नहीं बने थे। लेकिन अगले ही क्षण मुझे लगा कि यह व्यक्ति ज्यादा गंभीर है और इसे गहन चिकित्सा की आवश्यकता है जो शायद एक जनवरी की मध्यरात्रि के समय सिविल अस्पताल में तत्काल उपलब्ध न हो सके इसलिए मैंने ड्राइवर से गाड़ी वापस गोमती नगर के मेयो अस्पताल की ओर मोड़ने को कहा। इसी बीच मैंने अस्पताल में फोन कर अलर्ट किया और संयोग था कि न्यूरो सर्जन डॉ अग्रवाल नाइट ड्यूटी के कारण अस्पताल में उपलब्ध थे। आनन फानन में उस व्यक्ति का इलाज शुरू हुआ और उनकी जेब से मिले कागज पर लिखे मोबाइल नंबर के आधार पर उनके परिवार को सूचना देकर मैं पुनः राउंड पर निकल गया।
इस तरह मृत्यु के मुंह से खींच लाया एक निर्णय
महिला ने आगे की कहानी बताई कि सूचना मिलने के बाद मैं अपने पारिवारिक सदस्यों के साथ मेयो पहुंचीं थीं। जहां मेरे पति का ICU में ऑपरेशन हो रहा था। मेरे पति 19 दिन तक ICU में जीवन के लिए संघर्ष करते रहे। उस एक्सीडेंट के कारण उनका बायां हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया। 6-8 महीने के इलाज और फिजियोथेरेपी के बाद धीरे-धीरे वो ठीक होने लगे। पूरी तरह से ठीक होने में कई साल लग गए और आज आपके सामने बैठे हैं।
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