Agra News: संजय प्लेस में कभी यहां थी अमर सिंह राठौर की कचहरी, जुड़े हैं सेंट्रल जेल से भी तार
वर्ष 1813 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने कचहरी को सेंट्रल जेल में परिवर्तित कर दिया था। वर्ष 1976 में संजय गांधी के निर्देशों पर तोड़ी गई थी जेल रखे गए थे पाकिस्तानी सैनिक। आज है संजय प्लेस शहर का व्यवसायिक स्थल।
By Nirlosh KumarEdited By: Tanu GuptaUpdated: Sun, 02 Oct 2022 02:00 PM (IST)
आगरा, जागरण संवाददाता। संजय प्लेस को आज शहर का हृदय कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, लेकिन मुगल काल में यहां अमर सिंह राठौर की कचहरी हुआ करती थी। ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस स्थल को सेंट्रल जेल में परिवर्तित कर दिया था। संजय गांधी के निर्देशों पर वर्ष 1970-80 के दशक में सेंट्रल जेल को तोड़ दिया गया था। आज यहां बैंकों, कंपनियों के साथ ही सरकारी कार्यालय बने हुए हैं।
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तवारीख ए आगरा में लिखी है पूरी जानकारी
इतिहासकार राजकिशोर राजे ने अपनी पुस्तक 'तवारीख-ए-आगरा' में संजय प्लेस की जानकारी विस्तार से दी है। राजे लिखते हैं कि वर्तमान में जिस जगह पर आज संजय प्लेस है, वहां मुगल काल में अमर सिंह राठौर की कचहरी हुआ करती थी। वर्ष 1644 में अमर सिंह राठौर की मृत्यु के बाद मुगलों ने यहां हाथियों व अन्य सैन्य पशुओं को रखना शुरू कर दिया। वर्ष 1803 मेें आगरा अंग्रेजों के अधिकार में आ गया। ईस्ट इंडिया कंपनी के काल में वर्ष 1813 में इस स्थान को सेंट्रल जेल में तब्दील कर दिया गया। जेल में सात वर्ष से अधिक की सजा पाने वाले कैदियों को रखा जाने लगा। वर्ष 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय बांग्लादेश में पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना के समक्ष समर्पण किया था। युद्ध में समर्पण करने वाले सैनिकों को संजय प्लेस स्थित सेंट्रल जेल में रखा गया था। वर्ष 1976 में संजय गांधी के निर्देशों पर सेंट्रल जेल को तोड़कर कामर्शियल मार्केट की नींव रखी गई थी।राजकिशोर राजे बताते हैं कि वर्ष 1986 में यहां एक पत्थर मिला था। इस पर अरबी व उर्दू में अमर सिंह राठौर की कचहरी लिखा हुआ था।यह भी पढ़ेंः Agra News: जिले के 10 सर्वेश्रेण परिषदीय विद्यालय बनेंगे माडल, पढ़ें क्या- क्या होगी विशेषताएं
शाहजहां के दरबार में किया था सलाबत खां का कत्ल
जोधपुर के राजा गजसिंह के अमर सिंह राठौड़ बड़े बेटे थे। पिता से मतभेद होने पर उन्होंने जोधपुर छोड़ दिया था। वह अच्छे योद्धा थे और शहंशाह शाहजहां के दरबार में बहुत अहमियत रखते थे। सतीशचंद चतुर्वेदी ने 'आगरानामा' में जिक्र किया है कि अमर सिंह राठौर एक बार स्वीकृत अवकाश से अधिक समय तक दरबार से अनुपस्थित रहे। शाहजहां ने मीर बख्शी सलाबत खां के कहने पर अमर सिंह राठाैर पर भारी जुर्माना कर दिया। कहा जाता है कि इस पर उत्तेजित होकर अमर सिंह राठौर ने भरे दरबार में सलाबत खां का कत्ल कर दिया था।
नवाब समसामुद्दौला ने 'मआसिरुल उमरा' में लिखा है कि अमर सिंह राठौर कई दिन की हाजिरी के बाद 25 जुलाई, 1644 को तीसरे पहर यमुना किनारा स्थित दाराशिकोह की हवेली पर पहुंचे। यहां शहंशाह शाहजहां किसी अमीर को पत्र लिखवा रहे थे। सलाबत खां नजदीक खड़े एक व्यक्ति से वार्तालाप कर रहा था। अमर सिंह राठौर ने अपनी कटार सलाबत खां की पसलियों में घुसेड़ दी, जिससे सलाबत खां की वहीं मौत हो गई। शहंशाह शाहजहां ने देखा कि खलीतुल्ला खां, सैयद सालार आदि ने वहीं अमर सिंह राठौर को काट डाला। बाद में शाहजहां का हुकुम पाकर मुंशी मलूकचंद ने उसके आदमियों को बुलाकर लाश सौंप दी।
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