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Sadhvi Rithambara: ‘राममंदिर आंदोलन मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा संघर्ष…', दैनिक जागरण से बातचीत में साध्वी ऋतंभरा ने बेबाकी से दिए जवाब

Sadhvi Rithambara Interview 2024 साध्वी ऋतंभरा वह नाम है जिसने अयोध्या के राममंदिर आंदोलन को अपने भाषणों के जरिए नई धार दी। जिस स्थान पर साध्वी भाषण देती थीं वहां सुनने को हजारों की भीड़ जुटती। साध्वी ऋतंभरा का अब एक और स्वरूप दीदी मां का है। अब वह वात्सल्यमी हैं। राष्ट्रहित में अपना योगदान देंगी। साध्वी ऋतंभरा से दैनिक जागरण के मुख्य संवाददाता विनीत मिश्र ने बात की।

By vineet Kumar Mishra Edited By: riya.pandey Updated: Fri, 05 Jan 2024 04:07 PM (IST)
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दैनिक जागरण से बातचीत में साध्वी ऋतंभरा ने सवालों के खुलकर दिए जवाब
विनीत मिश्र, आगरा। Sadhvi Rithambara Interview 2024: साध्वी ऋतंभरा वह नाम है, जिसने अयोध्या के राममंदिर आंदोलन को अपने भाषणों के जरिए नई धार दी। जिस स्थान पर साध्वी भाषण देती थीं, वहां सुनने को हजारों की भीड़ जुटती। मुख से निकला हर शब्द, रामभक्तों में ऊर्जा का संचार करता। लुधियाना के दौराहा गांव में साधारण परिवार में जन्मी साध्वी ऋतंभरा में घर में नाम मिला था निशा लेकिन अध्यात्म में मन ऐसा लगा कि संन्यासी हो गईं। रामकाज में जुट गईं। राम मंदिर आंदोलन के दौरान यातनाएं भी सहनी पड़ी। 

साध्वी ऋतंभरा का अब एक और स्वरूप दीदी मां का है। अब वह वात्सल्यमी हैं। इसके लिए वृंदावन में वात्सल्य ग्राम समेत कई इलाकों में समाजसेवा के प्रकल्प चलाए जा रहे हैं। पुस्तकें पढ़ने का शौक रखने वाली दीदी मां के वृंदावन स्थित वात्सल्य ग्राम में अब देश का पहला बालिका सैनिक स्कूल भी खुला है।

वह गर्व से कहती हैं कि नारी अब सैनिक शिक्षा भी लेगी और अपने शौर्य का प्रदर्शन भी करेगी। राष्ट्रहित में अपना योगदान देंगी। साध्वी ऋतंभरा से दैनिक जागरण के मुख्य संवाददाता विनीत मिश्र ने बात की।

बेटियों के लिए आप निरंतर सक्रिय रहती हैं। वात्सल्य ग्राम में उनको दीदी मां का प्यार देती हैं। अब देश का पहला बालिका सैनिक विद्यालय आपके वात्सल्य ग्राम में खुला है, इसके पीछे क्या सोच रही?

स्त्री अपने आप में सबला है। कई वर्षों से जिस तरह से देश में हालात रहे, स्त्री अपने स्वस्थ रूप को भूल गई। इसके लिए कई वर्षों से काम करती रही हूं। स्त्री की काया की अपनी एक व्यवस्था और मर्यादा रहती है। जिस तरह की शिक्षा व्यवस्था अब तक चली, उसने भारत की संतानों को देश से नहीं जोड़ा, मन में ये था कि सैनिक स्कूल होगा तो राष्ट्रभक्ति होगी, शारीरिक और मानसिक तैयारी होगी।

बेटियां हर जगह अपनी भूमिका निभा रही हैं। अतीत के भारत में भी हमेशा रही। लक्ष्मीबाई ने घोड़े पर सवार होकर अपने अपनी दत्तक संतान को पीठ से बांध युद्ध किया। रानी लक्ष्मीबाई की तेजस्विता क्या हमारी बेटियों में नहीं आएगी। 

आज देखती हूं कि लड़कियां धुएं के छल्ले उड़ा रही हैं, उसे इंटरनेट मीडिया में डालती हैं, तो बड़ा आश्चर्य होता है। जब तक वह अपने अस्तित्व की रक्षा नहीं करती, तो वह कहीं टिकी नहीं रह सकती। राष्ट्रहित के लिए पुत्र अपना योगदान दे रहे हैं, तो पुत्रियां कैसे पीछे रह सकती हैं। ये मेरे सपनों का प्रोजेक्ट है।

सैनिक स्कूल में अनुशासन होता है, प्रात: से लेकर रात्रि तक की व्यवस्था होती है। भले ही यहां से पढ़ीं बच्ची राष्ट्र का हित नहीं कर पाएं, लेकिन राष्ट्र का नुकसान कतई नहीं होगा। हम गुलामी के काल में रहे, हमारे पास बहुत सी ऐसी मान्यताएं आ गई हैं, जो हमारी नहीं थीं। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान वह क्षेत्र रहे जो मुगलों के आक्रमण से प्रताड़ित रहे, उनसे जूझे। इसके पीछे स्त्री को खामियाजा भुगतान पड़ा। ऐसी दुश्वारियों के बीच भी बेटियां अपने लिए जगह बनाती हैं।

आपकी संस्था परमशक्ति पीठ बेटियों के लिए और क्या-क्या कर रही है। आगे और क्या योजना है?

हमारा प्रमुख प्रकल्प ये है कि हम अनाथ, महिला आश्रम और वृद्धाश्रम के बारे में सोचते रहें कि इससे समाधान मिलेगा। लेकिन सत्य ये है कि इससे समाधान नहीं मिल सकता। आप भेड़-बकरियों की तरह बच्चों को अनाथालय में एकत्रित कर दो, उन्हें दया के रूप में पालो, इससे कुछ नहीं होगा।

परम शक्ति पीठ का प्रमुख प्रकल्प है, रिश्तों का प्रकल्प। भाव के संबंधों का प्रकल्प, जिसमें मां है, मौसी है, नानी हैं, पुत्रियां और पुत्र हैं। वह किसी की दया के पात्र नहीं। यशोदा मां उन्हें पालती हैं। अनाथाश्रम, महिला आश्रम में अपनों का ये प्रेम नहीं मिलता। बच्चों की पढ़ाई से लेकर उनके करियर और विवाह की जिम्मेदारी हमारी है। इसी परिकल्पना के तहत देश का पहला बालिका सैनिक स्कूल भी खोला गया है।

सैनिक विद्यालय का संचालन कैसे होगा। क्या कोई गरीब बेटी है, जिसका चयन होता है, लेकिन स्वजन फीस नहीं दे पाते तो क्या उनकी फीस का भी प्रबंध होगा?

बालिका सैनिक स्कूल में एक वर्ष में 120 सीटें प्रवेश को होंगी। 40-40 सीटों के तीन सेक्शन हैं। राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी परीक्षा के लिए नोटिफिकेशन जारी करेगी। आवेदन के लिए 20 दिसंबर अंतिम तिथि थी।

21 जनवरी को इसके लिए परीक्षा होगी। सैनिक स्कूल सोसाइटी हमें बच्चों की मेरिट लिस्ट भेजेगी। उसी के आधार पर हम मेरिट लिस्ट वाली बच्चियों से संपर्क करेंगे। हर काउंसिलिंग की सूचना सोसाइटी को दी जाएगी। जब तक पूरी सीटें नहीं भरेंगी, तब तक सोसाइटी के जरिए मेरिट लिस्ट मिलती रहेगी। अप्रैल में सत्र शुरू होगा। 

सीबीएसई पाठ्यक्रम से पढ़ाई होगी, लेकिन सैनिक स्कूल सोसाइटी ने अपना अलग से पाठ्यक्रम भी दिया है। सुबह पांच बजे से लेकर रात साढ़े दस बजे तक दिनचर्या रहेगी। सुबह ड्रिल अभ्यास होगा। इसके बाद कक्षाएं लगेंगी। सोसाइटी के पाठ्यक्रम को अलग से पढ़ाना है। हमें खेल में भी बच्चियों को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाना है।

इसके लिए हमारे पास बास्केटबाल, वालीबाल,स्केटिंग, लान टेनिस के सिंथेटिक ग्राउंड हैं। हाकी और रायफल शूटिंग का प्रशिक्षण भी मिलेगा, इसके लिए बाधा प्रशिक्षण भी होगा। यहां प्रशिक्षण एनसीसी या सेना के सेवानिवृत्ति अधिकारी देंगे। 

सोसाइटी द्वारा दिए गए पाठ्यक्रम में प्रमुख रूप से एनडीए, सीडीएस और एसएसबी की तैयारी कराई जाएगी। इसके लिए थ्योरी की प्रतिदिन अलग से एक घंटे की कक्षा लगेगी। इसके पीछे उद्देश्य है कि हम शुरू से बच्चों को शारीरिक रूप से तैयार करते हैं। तभी उन्हें आगे सफलता मिल पाती है। जिनका चयन होता है, यदि वह अभावग्रस्त हैं, तो उनके लिए समाज है और हम हैं। किसी भी बेटी की पढ़ाई धन के अभाव के कारण वंचित नहीं रहेगी।

वृंदावन में ही वात्सल्य ग्राम बनाने की योजना कैसे और क्यों बनी। आपने जो परिकल्पना की थी क्या ठीक वैसे ही चल रहा है?

मेरे पास बहुत से विकल्प थे, पहले हरिद्वार में जगह दिखाई गई। गंगा के किनारे वह स्थान था, लेकिन मेरा मन नहीं माना। हस्तिनापुर में भूमि थी। हस्तिनापुर का नाम आते ही महाभारत का दृश्य आता है। मुझे यशोदा भाव के साथ एक गांव बसाना था। वृंदावन से अच्छा स्थान भला कहां मिलता। जब वृंदावन से अक्रूर जी भगवान धनुष यज्ञ में भगवान श्रीकृष्ण को ले जा रहे थे, तो उनके मन में अपराध बोध था। जब यमुना में उन्होंने डुबकी लगाई, तो चतुर्भुज रूप में भगवान ने उन्हें दर्शन दिए।

भगवान चतुर्भुज रूप में मथुरा गए, उनका बालपन यहीं छूटा। अक्रूर जी के घाट के ठीक सामने वात्सल्य ग्राम बसा। ये हमारी योजना नहीं नियति की है। जो सोचा था, उसी डगर पर धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं।

ब्रज की तस्वीर बदलने और यहां की धरोहर संरक्षित रखने के लिए क्या प्रयास होने चाहिए?

वैभव में दिव्यता खो जाए, ये उचित नहीं है। सबसे पहला संस्कार चाहिए भक्तों को। हमने किसी से सुना कि देश के प्रधानमंत्री ने कहा कि अपने तीर्थों को स्वच्छ रखो। इसकी भी जिम्मेदारी हम सरकारों को दें तो ये ठीक नहीं। धरोहरों में प्राचीनता बनी रहे, वह स्वस्थ हों। इसकी जिम्मेदारी हमारी है। यहां की वृक्षावली और यमुना का निर्मल जल ब्रज की असली पहचान है। इसी का आनंद लेने बड़े-बड़े महानगरों से लोग आते हैं।

ऐसा वृंदावन क्या हम नहीं बना सकते। हम सब कर सकते हैं, लेकिन ये सब विकल्प रहित संकल्प से होता है। हमको अपने सिख समाज से सीखना होगा कि वह कैसे अपने गुरुद्वारों को साफ रखते हैं। वह कई बार वह अपने बालों को झाड़ू बनाकर सफाई करते हैं। ये उनके संस्कार हैं।

राम मंदिर आंदोलन में आपकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही। किस तरह से आप इसे आंदोलन में सहभागिता करती थीं। किन-किन झंझावतों से आपको जूझना पड़ा?

राममंदिर आंदोलन हमारी जिंदगी का सबसे बड़ा संघर्ष था।  इसके लिए काफी कीमत चुकाई, अपमान झेले। जो प्रताड़ना दी गईं, वह कभी भुलाई नहीं जा सकती। आंदोलन के दौरान भाषण देने इंदौर गई थी, तब मुझे एक घर से दिग्विजय सिंह की सरकार के इशारे पर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।

पुलिस ने ऐसा तांडव मचाया कि डर के कारण उस घर की महिला का गर्भपात हो गया। इंदौर में सेंट्रल जेल थी, लेकिन पुलिस मुझे वहां नहीं ले गई। जंगल-जंगल सारा दिन घुमाते हुए मुझे ग्वालियर जेल ले गए। उस वक्त भाषण बहुत देने होते थे। मुझे अस्थमा था।

अस्थमा रोगी को इनहेलर तुरंत चाहिए होता है, लेकिन उन लोगों ने न तो इनहेलर लेने दिया और न ही दवाएं। ग्वालियर की जेल में जिस बैरक में रखा, उसमें 70-72 लोग थे। बहुत झींगुर थे। शौचालय में घुटनों तक मलमूत्र भरा था। दुर्गंध के बीच सांस लेना भी मुश्किल हो रहा था। बड़ा सा बल्ब मेरे सिर के ऊपर लगा दिया। जिससे उसकी तेज रोशनी में सो न पाऊं। ये मेरे खिलाफ षड्यंत्र था दिग्विजय सिंह की सरकार का।

चार दिन मुझे अवैध रूप से बैरक में रखा। जबकि बड़े से बड़े अपराधी को 24 घंटे में कोर्ट के सामने ले जाया जाता है। मेरे साथ ऐसा व्यवहार कर रहे थे, जैसे मैं पाकिस्तान से आई आतंकवादी हूं। इसी तरह नागपुर में भाषण के बाद ही गिरफ्तार करने की योजना बनी।

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मेरे कार्यकर्ताओं ने ये बताया तो मैं स्टेज से कूद गई। मेरे साथ गुरु बहन साध्वी साक्षी थीं। हम पीछे दौड़ते गलियों में गए। एक लकड़ी के कारखाने में बुरादे के बोरे में छिपकर खुद को बचाया। भेष बदलकर इतनी बार भागना पड़ा कि उसकी गिनती नहीं। ललितपुर में सभा के दौरान जिस घर में, मैं रुकी थी, पुलिस ने वह घेर लिया।

मेरे लंबे बाल थे, सारे बाल काटकर छोटे करने पड़े। ललितपुर में मैंने साड़ी पहनी और एक बच्चा गोद में लिया, तब पुलिस से बचकर निकली। इंदौर में एक आधुनिक लड़की बनकर साइकिल चलाते पुलिस के सामने से निकलना पड़ा, ताकि वह पहचान न सके।

राम मंदिर आंदोलन से आप कैसे जुड़ गईं, इसका श्रेय किसे देती हैं?

रामविलास वेदांती को मुझे रामंदिर आंदोलन में ले जाने का श्रेय जाता है। वह उत्तर प्रदेश के जालौन में एक गांव में जनसभा में मुझे मिले। उन्होंने हमें रामजन्मभूमि आंदोलन में आने को कहा। तब हम अयोध्या गए थे, वहां सरयू का जल हाथ में लेकर रामकाज करने की शपथ ली और अपना जीवन रामजन्मभूमि आंदोलन को समर्पित कर दिया।

राम मंदिर आंदोलन को सफल बनाने में आप किस-किस की भूमिका मानती हैं। क्या आप उसके तीन प्रमुख चेहरों में नहीं हैं?

विहिप का ये आंदोलन था, मार्गदर्शक मंडल के संतों ने सब तय किया था। अशोक सिंघल जी, आचार्य गिरिराज किशोर, दिगंबर अखाड़े के रामचंद्र परमहंस समेत बड़े-बड़े संत थे। हमारी तो भूमिका एक गिलहरी के जैसी थी।

हां, इतना जरूर था कि जिस जनसभा में ऋतंभरा को बोलना होता था, उस मंच पर किसी और का भाषण सुनने को जनता तैयार नहीं होती थी। मैं प्रमुख चेहरों में खुद को नहीं मानती। मुझे जहां भेज दिया जाता था, वहां चली जाती। कभी आंदोलन के दौरान पालथी मारकर आराम से भोजन नहीं किया। एक दिन में 22-22 सभाएं कीं। भाषण देते-देते गले में खून का थक्का जम गया था। तब डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि आपको गले का कैंसर हो जाएगा। लेकिन, मैंने कहा मैं रामकाज में हूं, मुझे कुछ नहीं होगा।

काफी समय से राम मंदिर की प्रतीक्षा थी, आज रामलला अपने जन्मस्थान पर विराजमान होने वाले हैं, ऐसे में कैसा महसूस कर रही हैं?

बहुत आनंद है, बहुत प्रसन्नता है। हम सबकी और हमारे पुरखों की 500 वर्ष का संघर्ष सार्थक हुआ। ये बात निश्चित हो गई कि सत्य की जीत हमेशा होती है लेकिन ये बात मैं जनता को कहना चाहती हूं कि सत्यमेव जयते भर सच नहीं है। सत्य को अपने आपको स्थापित करने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। उसके बिना तो लोग आपको कुचलकर निकल जाएंगे।

राम मंदिर के साथ ही अब मथुरा और काशी के भी मुक्त होने की आवाज उठ रही है। आपके मुताबिक श्रीकृष्ण जन्मस्थान और काशी विश्वनाथ विवाद का निपटारा कैसे हो सकता है?

न्यायालय की व्यवस्था चल रही है, यहां संघर्ष की जरूरत नहीं हैं। मेरे षष्ठिपूर्ति महोत्सव में भी सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि संघर्ष से नहीं संवाद से सारी समस्या हल होंगी। जब न्याय करने में विलंब होता है तो ये भी एक तरह से अन्याय होता है। इसलिए न्याय शीघ्रता से हो। रामजन्मभूमि के आंदोलन में शौर्य की जरूरत थी, अब हमें धैर्य की जरूरत है।

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