Taj Mahal: ताजमहल में लगी जो जाली करती है आकर्षित, उसकी हकीकत तो है कुछ और
Taj Mahal मुमताज की कब्र के चारों ओर शाहजहां ने लगवाई थी सोने की जाली। वर्तमान में लगी हुई संगमरमर की जाली के निर्माण में लगा था 10 वर्ष का समय। केसी मजूमदार ने अपनी किताब इंपीरियल आगरा आफ द मुगल्स में इसका जिक्र किया है।
By Tanu GuptaEdited By: Updated: Mon, 02 Nov 2020 09:04 AM (IST)
आगरा, निर्लोष कुमार। ताजमहल में मुख्य मकबरे में प्रवेश करते ही सैलानी शाहजहां और मुमताज की कब्रों के चारों ओर बनी अष्टकोणीय संगमरमर की जाली को देखकर विस्मित रह जाते हैं। संगमरमरी जाली पर हो रहे पच्चीकारी के काम को देख पर्यटक उस दौर के कारीगरों की कलाकारी को सलाम करने लगते हैं। जिन्होंने अत्याधुनिक उपकरणों के बगैर अपने हुनर से इस शाहकार को साकार किया। शहंशाह शाहजहां ने यहां संगमरमर की नहीं, सोने की जाली लगवाई थी, जिसे बाद में हटा लिया गया था।
ताजमहल का निर्माण वर्ष 1632 से 1648 के बीच कराया गया था। शहंशाह शाहजहां ने मुमताज की कब्र के चारों ओर सोने की जाली लगवाई थी। केसी मजूमदार ने अपनी किताब 'इंपीरियल आगरा आफ द मुगल्स' में इसका जिक्र किया है। शाहजहां द्वारा मुमताज की कब्र के चारों ओर लगवाई गई सोने की जाली कब हटवाई गई, इसका जिक्र किताब में नहीं है। माना जाता है कि वर्ष 1666 में शाहजहां की मौत के बाद जब उसे मुमताज की कब्र के बराबर में दफन किया गया, तभी यहां से सोने की जाली हटवाई गई होगी। वर्तमान में यहां लगी हुई खूबसूरत संगमरमर की जाली औरंगजेब के समय लगी थी। इसके बनने में 10 वर्ष का समय लगा था। अष्टकोणीय जाली में पच्चीकारी का शानदार काम देखने वाला है। इसमें एमराल्ड, नीलम, गोमेद, कार्नेलियन, जैस्पर जैसे कीमती पत्थर लगे हुए हैं। शाहजहां ने ताजमहल के गुंबद पर लगा कलश 466 किलो सोने से बनवाया था। वर्ष 1810 में अंग्रेज अधिकारी जोसेफ टेलर ने इसे उतरवाकर सोने की पालिश किया हुआ तांबे का कलश लगवा दिया था। वर्ष 1876 और फिर 1940 में कलश बदला गया।
एप्रूव्ड टूरिस्ट गाइड एसोसिएशन के अध्यक्ष शमसुद्दीन बताते हैं कि ताजमहल में मुमताज की कब्र के चारों ओर शाहजहां द्वारा सोने की जाली लगवाई गई थी। वर्तमान संगमरमर की जाली औरंगजेब के समय लगाई गई थी।
चांदी के दरवाजे, मोतियों की चादर शाहजहां ने ताजमहल में मुख्य मकबरे पर चांदी का बना दरवाजा लगाया था। यही नहीं, उसके समय में मुमताज की कब्र पर मोतियों की बनी चादर चढ़ाई जाती थी। इस चादर में चार हजार मोती लगे हुए थे। इन्हें बाद में लूट लिया गया था। इतिहासविद राजकिशोर राजे बताते हैं कि वर्ष 1719 में सैयद बंधुओं ने आगरा पर हमला किया था। उन्होंने शाही कोष पर कब्जा कर लिया था, इसमें मुमताज की कब्र पर चढ़ाई जाने वाली चादर भी थी। इसका मूल्य उस समय करीब चार हजार रुपये था।
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