तमाम परिवर्तन का साक्षी रहा है शहीद भगत सिंह पार्क, जानिए इसकी गाथा
आजादी के आंदोलन से लेकर वर्तमान तक तमाम नेता यहां आए। अंग्रेज जिलाधिकारी ने बनाया था पार्क। समय के साथ बदलता गया स्वरूप।
By Prateek GuptaEdited By: Updated: Sat, 13 Apr 2019 06:00 PM (IST)
आगरा, पवन निशांत। शहीद भगत सिंह पार्क आजादी के आंदोलन का भी गवाह रहा है। 216 साल पुराने इस पार्क का नाम तो बदला, लेकिन इसने तमाम रैलियों, सभाओं और आंदोलन के दौरान अपनी प्रासंगिकता बनाए रखी। आज यह सुबह और शाम के समय योग और टहलने वालों का केंद्र बना हुआ है तो तमाम संगठनों का बैठक स्थल भी है।
इस पार्क की तकदीर सन 1996 से धीरे-धीरे बदलने तब शुरू हुई, जब तत्कालीन मथुरा के नगर पालिका अध्यक्ष वीरेंद्र कुमार अग्रवाल ने इसे अपना कैंप कार्यालय ही बना लिया। तीन साल के अंदर यहां जिस हरियाली के बीज डाले गए, वे आज बड़े वृक्ष बन चुके हैं। आजादी के बाद शहीद भगत सिंह पार्क केंद्र में हुए दो बड़े बदलावों का गवाह भी रहा। सन 1977 में इमरजेंसी को लेकर जब पूरे देश में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी के खिलाफ माहौल था, तब हुए लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी के चिह्न पर मणिराम बागड़ी खड़े हुए। उनकी चुनावी सभा में समाजवादी नेता मधु लिमये और जार्ज फंर्नांडीस आए तो न केवल यह पार्क भर गया, बल्कि सभा इतनी बड़ी थी कि पूरा डेंपियर नगर जाम हो गया था।
इसी तरह सन 1989 में जब वीपी सिंह ने तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के खिलाफ बगावत करके चुनाव लड़ा तो यहां से जनता दल की टिकट पर कुंवर मानवेंद्र सिंह खड़े हुए। राजा मांडा उनकी चुनावी सभा में आए तो भीड़ का एक बार फिर वैसा ही आलम बना। संयोग से दोनों बार कांग्रेस के खिलाफ विरोधी प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की।
हालांकि इससे पहले सन 67 में श्रीमती इंदिरा गांधी अपने प्रत्याशी चौ. दिगंबर सिंह की चुनावी सभा में आई, भीड़ भी खूब जुटी, लेकिन दिगंबर सिंह राजा बच्चू सिंह से चुनाव हार गए थे।
श्रीनाथ भार्गव ने बनाया फूलोंं का गुलदस्ता
सन 52 के बाद जब श्रीनाथ भार्गव नगर पालिका चेयरमैन हुए तो उन्होंने इसे गुलाब का गुलदस्ता बना दिया। उन्हें गुलाब के फूलों से इतना लगाव था कि वह हर दिन सुबह गुलाब के फूलों की गिनती करते और गिनती कम होने पर माली पर आर्थिक दंड लगाते।
पहले था नुमाइश मैदानआजादी से पहले डेंपियर पार्क नुमाइश मैदान था। जहां आज राजकीय संग्रहालय है, उसके सामने बड़ा गेट आज भी है, यह नुमाइश मैदान का गेट हुआ करता था। मैदान में दोनों ओर टिन के शेड थे। सन 1952 में जब एक रशियन डेलीगेशन यहां आया तो इसी मैदान पर श्रीनाथ भार्गव के साथ प्रख्यात वैद्य और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नंदकिशोर पाठक, अब्दुल गनी और कुंवर गिरिवर सिंह के दल ने उसका जोरदार स्वागत किया था।
अंग्रेज डीएम ने की स्थापनासन 1903 में अंग्रेज जिलाधिकारी डेंपियर ने इसे अपने नाम से बनाया। इसके एक ओर डेंपियर नगर बसाया। इसमें हरियाली भी की, लेकिन बाद में यह उजाड़ मैदान बन गया।
1996 से हुआ कायाकल्पडेंपियर पार्क का शहीद भगत सिंह पार्क के रूप में नामकरण तो सन 67-69 में पूर्व पालिका चेयरमैन रामेश्वर दयाल ने किया, लेकिन इसका असल कायाकल्प सन 1996 से शुरू हुआ। तब पालिकाध्यक्ष वीरेंद्र अग्रवाल ने यही अपना कैंप कार्यालय बना लिया, जो तीन साल तक यहीं से चला। उस समय यहां दो-तीन कब्र बना दी गयी थी और कब्जे शुरू हो गए थे। उन्होंने कब्र हटवाई और भगत सिंह पार्क के आगे के पार्क को अवंतीबाई पार्क नाम दिया। तीन सबमर्सिबल लगवाए और पीपल, नीम व बरगद समेत सैकड़ों पौधरोपण किया। इसकी दशा सुधारने में उनके साथ क्षेत्रीय सभासद ब्रजेंद्र स्वरूप भटनागर ने कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया। उनके बाद कांग्रेसी अध्यक्ष श्याम सुंदर उपाध्याय और भाजपाई चेयरमैन मनीषा गुप्ता ने इसे ढंग का पार्क बना दिया।
कई आंदोलनों का साक्षीभगत सिंह पार्क आजादी के बाद कई आंदोलनों का साक्षी रहा। यहां अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, शत्रुघ्न सिन्हा, चौ. चरण सिंह, राजनारायण आदि कई बड़े सभा करने आए। स्थानीय आंदोलन की शुरूआत हर बार यहीं से हुई और आज भी किसी भी आंदोलन की शुरूआत से पहले बैठकें यहीं होती हैं। कई सामाजिक संगठन तो नियमित रूप से यहां बैठकें करते हैं।
मथुरा के इतिहास में शहीद भगत सिंह पार्क का अपना महत्व है और हमेशा रहेगा।हुकुम चंद्र तिवारीपूर्व विधायकभगत सिंह पार्क इमरजेंसी के दौरान हुए आंदोलनों का प्रमुख केंद्र रहा। हर दल की सभा पहले यहीं हुआ करती थी।वीरेंद्र अग्रवालपूर्व पालिकाध्यक्षआजादी के आंदोलन में उनके पिता समेत तमाम कांग्रेसी यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंकते थे। बाद के चेयरमैनों ने इसकी दशा सुधारी।बसंत कुमार पाठकशिक्षाविद्शहीद भगत सिंह पार्क को सहेजे रखने की जरूरत है। यहां अभी और हरियाली होनी चाहए और बंदरों के प्रकोप से बचाने का इंतजाम होना चाहिए।बांके बिहारी अग्रवालवरिष्ठ व्यापारी
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