मजदूर का बेटा-बेटी बने दारोगा, बेटी ने कैप पहनाकर किया सैल्यूट तो पिता बोले आज मेहनत सफल हुई, पढ़िए सफलता की कहानी
Agra News In Hindi मैं खुद पढ़ा लिखा नहीं था इसलिए मैं शिक्षा का महत्व जानता था। मेरा सपना था कि मेरे बच्चों को ऐसा समय न देखना पड़े लिहाजा उनकी पढ़ाई लिखाई में कोई कमी नहीं आने दी। जिस दिन बेटा और बेटी का चयन हुआ और जब उन्होंने ट्रेनिंग पूरी कर पुलिस की वर्दी पहनी मेरा सारे अरमान पूूरे हो गए।
जागरण संवाददाता, आगरा। मैं और पत्नी अधिक पढ़े-लिखे नहीं थे, इसलिए परिवार चलाने के लिए मुझे दिनरात मेहनत करनी पड़ती थी। सभी के लिए महीने में 30 दिन होते हैं, लेकिन मैंने नाइट शिफ्ट लगाकर 45 दिन काम किया, तब जाकर महीने के छह हजार रुपये कमाए, ताकी बच्चों की पढ़ाई का संकट न हो।
मेरा संघर्ष बच्चे भी देखते थे, जिसके कारण उन्होंने सीमित संसाधनों में भी अपना शत-प्रतिशत दिया और एकसाथ दो बच्चों ने उप्र पुलिस में उप निरीक्षक पद प्राप्त कर मेरा सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। यह कहते हुए अर्जुन नगर, बारह खंभा निवासी बलवीर सिंह की आंखें खुशी के आंसुओं से नम हो गई।
हों भी क्यों न मिर्जापुर पुलिस अकादमी में 13 मार्च को हुए पुलिस पासिंग आउट परेड में उनका बेटा शिशांक कमलेश और पुत्री सिमरन कमलेश ने उप्र पुलिस में उप निरीक्षक पद प्राप्त किया है। पुत्र को वर्तमान में लखनऊ के जानकीपुरम थाने में तैनाती मिली है।
टोरेंट पॉवर में लाइन खाेदने व तार जोड़ने का काम करते थे
बलवीर सिंह बताते हैं कि मैं टोरेंट पावर में संविदा पर लाइन खोदने व तार जोड़ने का काम करता हूं। रोजाना 200 रुपये की दिहाड़ी मिलती है। इतने में गुजारा नहीं होता, 15 दिन रात में ओवर टाइम करके थोड़ा अतिरिक्त कमाकर परिवार का भरण पोषण जैसे-तैसे करता था। पढ़ाने के लिए पैसे कम न पड़े, कभी त्योहार पर भी नए कपड़े ही पहने। न रात देखी, न दिन।
बस बच्चों को अफसर बनाने के लिए दिन-रात मेहनत मजदूरी करता रहा। दलित बस्ती में छोटा सा घर है, जिसमें पति-पत्नी, दो पुत्र और पुत्री रहते हैं।
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