DBRAU: एसटीएफ के हवाले जांच, घोटालों से है विश्वविद्यालय का पुराना नाता, चर्चित रहा बीएड का मामला
DBRAU में BAMS की कापियां बदलने की शिकायत कार्यवाहक कुलपति को मिली थी। इसके बाद उन्होंने जांच की। जांच में मामला पकड़ा गया। अब एसटीएफ जांच करेगी। एसटीएफ के सामने कई पुराने घोटाले आएंगे। बीएड से लेकर संस्कृति भवन तक में है भ्रष्टाचार।
By Abhishek SaxenaEdited By: Updated: Wed, 07 Sep 2022 07:01 PM (IST)
आगरा, जागरण संवाददाता। 1927 में स्थापित आगरा विश्वविद्यालय जिसे अब डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है। इस विश्वविद्यालय ने देश को जितने ज्यादा विश्वविद्यालय और नामचीन छात्र दिए हैं,उतने ही घोटालों का साथ भी रहा है।
अंकतालिका, डिग्री और परिणाम की समस्या तो इस विश्वविद्यालय का पर्यावाची बन चुके हैं, पर इसके साथ-साथ बीएड घोटाले से लेकर बिना नक्शे के बने संस्कृति भवन तक के मामले इसके गले की फांस बने हुए हैं।कितने ही कुलपति आए और चले गए, विश्वविद्यालय का ढर्रा नहीं सुधार सके।अब विश्वविद्यालय में एसटीएफ का कैंप कार्यालय बनेगा, जो विश्वविद्यालय की ईंटों में बसे भ्रष्टाचार को कुरेद कर निकालेगा और दूर करेगा।
लंबी है घोटालों की सूची
विश्वविद्यालय में सुरक्षा एजेंसी घोटाला, परीक्षा एजेंसी घोटाला, परीक्षा रिजल्ट में गड़बड़ी घोटाला, पंडाल घोटाला, ट्रांसफर यात्रा पर फर्जी घोटाला, सफाई कर्मचारी भुगतान घोटाला, विश्वविद्यालय फंड इन्वेस्टमेंट घोटाला, फर्नीचर घोटाला, कंप्यूटर खरीद घोटाला चर्चित रहे हैं। इनमें बिना टेंडर एक ही संस्था को काम दिए गए।फर्नीचर घोटाला में तत्कालीन कुलपति डीएन जौहर और तत्कालीन कुलपति मोहम्मद मुजम्मिल, तत्कालीन वित्त अधिकारी रामपटल सिंह और अमरचंद सिंह, तत्कालीन कुलसचिव वीके पांडेय, गृह विज्ञान संस्थान की निदेशक डा. भारती सिंह के खिलाफ थाना हरीपर्वत में तीन सितम्बर, 2018 को मुकदमा पंजीकृत कराया गया था। इस घोटाले को विजिलेंस ने पकड़ा था।
इनके अलावा इतिहास विभाग के रीडर अमित वर्मा, सहायक कुलसचिव परीक्षा अनिल कुमार शुक्ला, भौतिकी विभाग के रीडर बीपी सिंह, उप कुलसचिव परीक्षा प्रभात रंजन, डिप्टी रजिस्ट्रार वित्त महेंद्र कुमार,अनुज अवस्थी, कार्यवाहक वित्त अधिकारी बालजी यादव, गृह विज्ञान प्रवक्ता डा. अनीता चोपड़ा, निदेशक राघव नारायण, माइंड लाजिस्टिक लिमिटेड बेंगलुरु के प्रोजेक्ट मैनेजर शैलेंद्र टंडन, मीनाक्षी मोहन और बालेश त्रिपाठी के खिलाफ भी रिपोर्ट दर्ज हुई थी।
पूर्व छात्र ने मांगी थी इच्छा मृत्यु की अनुमतिपिछले साल दैनिक जागरण ने एक खबर प्रकाशित की थी, जिसमें सत्र 2003 के बीएड के पूर्व छात्र अमित कुमार द्वारा राष्ट्रपति से इच्छामृत्यु की अनुमति मांगने की जानकारी दी थी। दैनिक जागरण में ही 2003 की डिग्री न मिलने पर दिल्ली, इलाहाबाद और आगरा के न्यायालयों में चल रहे मुकदमों की जानकारी भी थी। इसके बाद विश्वविद्यालय द्वारा संबंधित कालेजों को पत्र भेजे गए। कालेजों से रिकार्ड मांगे गए।दिल्ली उच्च न्यायालय में 2003 बीएड सत्र की पूर्व छात्रा सुनीता और आगरा की स्थायी लोक अदालत में छात्र नीरज द्वारा डाले गए मुकदमों के बाद संबंधित कालेजों ने रिकार्ड विश्वविद्यालय में जमा करा दिए थे, पर अभी तक उनका सत्यापन चार्टों से नहीं किया गया है।
बहाली पर मांगे पैसेइतिहास विभाग में तैनात रहे कर्मचारी वीरेश कुमार ने स्पेशल सीजेएम कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया था। इसमें पूर्व कुलपति प्रो. अशोक मित्तल, प्रो. अनिल वर्मा, प्रो. बीडी शुक्ला, प्रो. यूसी शर्मा, प्रो. संजय चौधरी, सहायक कुलसचिव पवन कुमार, अमृतलाल, मोहम्मद रईस, बृजेश श्रीवास्तव पर बहाली के लिए दस लाख रुपये मांगने का आरोप लगाया था।बीएड 2004-05 घोटाला
वर्ष 2005 में अलीगढ़ के विद्यार्थी सुनील को बीएड जो मार्कशीट मिली थी, उसमें उसे प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण दर्शाया गया था। जब उसे डिग्री दी गई तो उसमें तृतीय श्रेणी दिखाई गई। इस पर छात्र सुनील ने न्यायालय की शरण ली। न्यायालय ने इस मामले में जांच कराई, तो पता चला कि बिना प्रवेश के ही सैकड़ों लोगों की मार्कशीट और डिग्री जारी कर दी गई हैं। राज्य सरकार ने विशेष जांच दल (एसआईटी) को जांच सौंपी तो सारा भ्रष्टाचार उजागर हो गया। इसमें विश्वविद्यालय के 20 कर्मचारियों को दोषी पाया गया था।
परीक्षार्थियों की फीस में भी हुआ घोटाला2019 में दैनिक जागरण में ही परीक्षार्थियों की फीस के घोटाले की खबर प्रकाशित की गई थी। इस मामले में 2014 से 2019 तक के परीक्षार्थियों की संख्या के हिसाब से इनसे ली गई फीस की धनराशि में करीब 10 करोड़ की हेराफेरी सामने आई थी।इसकी भी जांच शुरू कराई गई थी।बिना नक्शे के बना दिया संस्कृति भवनविश्वविद्यालय द्वारा सिविल लाइंस में 40 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित संस्कृति भवन का नक्शा ही पास नहीं है। इसकी खबर भी दैनिक जागरण ने प्रकाशित की थी। इसकी शिकायत मुख्यमंत्री, राज्यपाल से लेकर उच्च शिक्षा विभाग तक की गई थी। कार्यवाहक कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक ने इस साल फरवरी में लोकार्पण कर दिया था।
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