एटा का दरगाह प्रकरण: पहले 99 करोड़ का गबन, फिर निकली हनुमान और शनिदेव की मूर्ति, अब सुन्नी वफ्फ बोर्ड की नाटकीय एंट्री
प्रशासन ने कठघरे में खड़ा किया बोर्डअभिलेखों में जगह बोर्ड की नहीं ग्राम पंचायत की दर्ज। दरगाह कमेटी द्वारा 99 करोड़ के गबन के मामले का पर्दाफाश हुआ था और दरगाह कमेटी के अध्यक्ष अकबर अली समेत नौ पदाधिकारियों के खिलाफ गबन की जलेसर कोतवाली में एफआइआर दर्ज है।
आगरा, जागरण टीम। उत्तर प्रदेश के एटा जनपद के जलेसर की चर्चित दरगाह प्रकरण में अचानक सुन्नी वफ्फ बोर्ड की नाटकीय एंट्री हो गई। बोर्ड ने जगह अपनी बताई है, मगर प्रशासन ने उसे संदेह के घेरे में खड़ा करते हुए कहा है कि जिस जगह पर दरगाह है वह ग्राम पंचायत की जमीन है, अचानक वक्फ बोर्ड कहां से आ गया, आजादी के बाद से अब तक कहां था। प्रशासन ने बोर्ड का आदेश अवैध बताया है तथा उसकी भूमिका की जांच कराने के लिए शासन को भी सिफारिशी पत्र भेजने की बात कही है।
99 करोड़ का गबन सामने आया
जब से जलेसर स्थित बड़े मियां की दरगाह काे लेकर पूर्व कमेटी द्वारा किए गए 99 करोड़ रुपये के गबन का मामला सामने आया है तभी से कमेटी के पदाधिकारी अपने बचाव का रास्ता ढूंढ रहे हैं। ऐसे में कमेटी ने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के सर्टिफिकेट की एक कापी जो 18 अप्रैल को जारी की गई है, बाेर्ड के द्वारा जिला प्रशासन को भिजवाई है।
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इस प्रमाण पत्र में कहा गया है कि गाटा संख्या 733 और 740 जिस पर दरगाह बनी है वह भूमि उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की है, जिसके मुतब्बली जलेसर कस्बा के मुहल्ला सादात निवासी अकबर अली हैं। बोर्ड ने यह भूमि वक्फ कब्रिस्तान की बताई है। इस सर्टिफिकेट पर बोर्ड के सीईओ सैय्यद शफीक अहमद अशर्फी के हस्ताक्षर हैं। यह कापी जिलाधिकारी को भेजी गई है। दूसरी तरफ कमेटी का कोई भी पदाधिकारी अपना पक्ष रखने के लिए प्रशासन के समक्ष नहीं आया है।
सवालों के घेरे में बोर्ड
प्रशासन इस प्रकरण को लेकर शुरू से ही दावा कर रहा है कि दरगाह स्थल की जगह जलेसर देहात ग्राम पंचायत के अधीन है जोकि अब से नहीं बल्कि वर्षों पूर्व से है। आजादी के बाद से लेकर अब तक कभी भी वक्फ बोर्ड सामने नहीं आया, क्योंकि उसमें यह जगह दर्ज ही नहीं थी। एसडीएम जलेसर अलंकार अग्निहोत्री ने बताया कि ग्राम पंचायत की जगह होने के अभिलेख प्रशासन के पास हैं ऐसे में किस आधार पर वक्फ बोर्ड ने बिना सोचे-समझे भूमि बोर्ड की दर्शायी है।
उन्होंने कहा कि कमेटी के सदस्यों ने अपने बचाव के लिए बोर्ड के जरिए साजिश रची है। प्रमाण पत्र 18 अप्रैल को जारी किया गया है। यानि कि साफ है कि इससे पहले तक वक्फ बोर्ड कहीं नहीं था। जिसको बोर्ड ने मुतब्बली बनाया है उसके व उसकी कमेटी के पदाधिकारियों के खिलाफ 99 करोड़ रुपये के गबन का मुकदमा दर्ज है। अगर यह भूमि बोर्ड की होती तो पुराना सर्टिफिकेट कमेटी के पास होता, लेकिन वह नहीं था।
बोर्ड के खिलाफ शासन को लिखेंगे पत्र
एसडीएम ने बताया कि बोर्ड के जिन लोगों ने यह सर्टिफिकेट जारी कराया है वे संब संदेह के दायरे में हैं और इस मामले की जांच होनी चाहिए। शासन को पत्र लिखा जा रहा है, ताकि जांच हो सके। सर्टिफिकेट पूरी तरह से अवैध है।
प्रशासनिक कार्रवाई पर नहीं पड़ेगा असर
प्रशासन ने दो टूक कहा है कि बोर्ड का आदेश मान्य नहीं है और प्रशासन द्वारा जो कार्रवाई की जा रही है उस पर आदेश का कोई असर नहीं पड़ेगा और कार्रवाई जारी रहेगी। दूसरी तरफ प्रशासन के इस रुख से कमेटी के लोगों को राहत मिलती नहीं दिख रही।