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इनसे मिलिए ये हैं मिठाई के इंजीनियर, आगरा की 150 साल पुरानी दुकान को बीटेक युवक ने दिया नया रूप

आगरा की सेठ गली स्वाद के लिए देशभर में मशहूर है। यहां पारंपरिक हलवाई की जगह चौथी पीढी में बीटेक और विधि विशेषज्ञ संभाल रहे पुश्तैनी काम। दस वर्ष पहले नकदी की जगह शुरू किया डिजीटल लेनदेन तय की मिठाइयों की एक्सपायरी।

By Prateek GuptaEdited By: Updated: Tue, 14 Jun 2022 10:47 AM (IST)
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चौथी पीढ़ी में पुश्तैनी कारोबार संभालने वाले बाएं से सॉफ्टवेयर इंजीनियर निशांत गुप्ता और अधिवक्ता नितिश गुप्ता।
आगरा, अली अब्बास। आगरा में पुराने शहर कोतवाली की संकरी सेठ गली में घुसते ही मिठाईयों की महक से मन सराबोर हो उठता है। पुराने शहर के इस हिस्से को लोग चटपटी चाट गली के नाम से भी जानते हैं। सेठ गली की मिठाईयों का इतिहास लगभग 150 साल पुराना है। समय बदलने के साथ मिठाई स्वाद तो शायद नहीं बदला, लेकिन पारंपरिक हलवाई की जगह चौथी पीढ़ी के मिठाई के इंजीनियरों और विधि विशेषज्ञ ने जरूर ले ली है।

करीब दस साल पहले की बात है। सेठ गली निवासी हलवाई का काम करने वाले प्रमोद गुप्ता उर्फ पंडित जी अपने बाबा गंगाराम रैपुरिया और पिता बसंत लाल के 150 साल पुराने पुश्तैनी काम को संभाल रहे थे। उनका एक बेटा निशांत गुप्ता बीटेक करने के बाद नाेएडा में मल्टी नेशनल कंपनी में साफ्टवेयर इंजीनियर था। दूसरा बेटा नितिश गुप्ता विधि की पढाई करने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपनी प्रैक्टिस जमाने का प्रयास कर रहे थे।

निशांत और नितिश बताते हैं कि पिता की तबीयत बिगड़ गई, उनकी देखभाल के लिए यहां आना पड़ा। दोनों भाइयों को सुबह से शाम की नौकरी में मजा नहीं आ रहा था। उन्होंने पिता के पुश्तैनी कारोबार को आगे बढ़ाने का फैसला किया। दुकान को नए सिरे से तैयार किया। निशांत ने साफ्टवेयर इंजीनियर होने के नाते नकदी के साथ ही डिजीटल लेनदेन को अपनाया। वहीं, नितिश ने कानून का जानकार होने के नाते मिठाईयों की मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपायरी तारीख लिखना शुरू किया। जिससे कि ग्राहकों को गुणवत्ता पूर्ण माल दिया जा सके। दोनों भाइयों की देखादेखी अन्य को भी मिष्ठान विक्रेताओं को भी इसका अनुसरण करना पड़ा। नई सोच के साथ व्यापार शुरू कर उसे आगे बढ़ाने का काम किया।  

प्रसिद्ध है रस मलाई, राजभोग और छेना

सेठ गली की मिठाईयों की बात करें तो यहां की रस मलाई, राजभोग, छेना प्रसिद्ध है। राजभोग और रस मलाई तो इस गली की पहचान है। रबड़ी, गाजर का हलवा, मूंग का हलवा, पिस्ते का हलवा, खुरचन और लड्डू भी मशहूर हैं।

चार आना का देशी घी का भल्ला, दो रुपये किलो हलवा

सेठ गली में अपनी जिंदगी के 75 साल बिताने वाले राजेंद्र प्रसाद गुप्ता से यहां की मिठाईयों की बात करते ही वह पूरी फेहरिस्त बताने लगते हैं। मूंग का हलवा, पिस्ते की बर्फी और जलेबी देशी घी की मिलती थी। तब देशी घी पांच रुपये किलो था। देशी घी हाथरस से आता था। हलवा दो रुपये किलो मिलता था। चार आना का देशी घी का भल्ला मिलता था। हर सोमवार को दिल्ली वाला यहां आकर अपनी ठेल लगाता था। दो आना की गुझिया, छोले डालकर देता था। गली में मिठाई, दूध और चाट की 12 से 15 दुकानें लाइन से थीं।

24 घंटे में सिर्फ दो घंटे के लिए बंद होती थी दुकानें

अस्सी और नब्बे के दशक तक सेठ गली में मिठाई और चाट की दुकानें 24 घंटे में सिर्फ दो घंटे के लिए बंद होती थीं। सुबह चार बजे से रात दो बजे तक तक सभी दुकानें खुली रहती थीं। इसका कारण आसपास की टाकीजों से नाइट शो खत्म होने के बाद वहां से निकलने वाले दर्शकों का इन गलियों में आना था। वह अपने परिवार के साथ चाट और मिठाई खाने रात दो बजे तक दुकानों पर आते थे।

मशहूर थे सेठ गल्ली के भल्ले, अब वह दुकान बंद हो गई है।

सेठ गली के भल्ले पूरे शहर में मशहूर थे। स्वाद के शौकीन लोग यहां पर दूर-दूर से आते थे। लगभग तीन साल पहले भल्लों की दोनों दुकानें बंद हो गईं। हालांकि एक दुकान अब भी खुलती है। स्वाद के शौकीन लोगों की भीड़ अब रोज शाम को इसी दुकान पर जुटती है।

सेठ गली से हुई थी मिठाई के कारोबार की शुरूआत

सेठ गली के मोड़ पर ही राज बहादुर की करीब 50 साल पुरानी मिठाई की दुकान है। दुकान पर बैठने वाले कमल बताते हैं मुगलों की राजधानी रही ताजनगरी में मिठाई के कारोबार की शुरूआत सेठ गली से हुई थी। संकरी सेठ गली से होता हुआ यह कारोबार बाद में पूरे शहर में फैल गया।  

तीन दशक पहले थीं एक दर्जन दुकानें

सेठ गली में नब्बे के दशक तक करीब एक दर्जन दुकानें थीं। जहां सुबह से लेकर रात तक ग्राहकों की भीड़ जुटी रहती थी। अब इस गली में छोटी-बड़ी आधा दर्जन दुकानें ही बची हैं। अधिकांश ने मिठाई की जगह प्रिटिंग का काम अपना लिया है। इसका कारण लोगाें का फास्ट फूड की ओर झुकाव होना है।

पूरे बाजार में तैरती रहती थी महक

सेठ गली के रहने वाले 57 साल के राजीव गुप्ता बताते हैं एक जमाने में यहां बनने वाली मिठाई की महक पूरे बाजार में तैरती रहती थी। बाजार आने वाले लोगों को उसकी महक ही इस गली तक खींच कर ले आती थी। मिठाईयों की कीमतें अब इतनी ज्यादा हो गई हैं कि उन्हें खरीदने में ही दांत खट्ठे हो जाते हैं।

जायका 35 साल से खींच कर ला रहा है

न्यू आगरा के नगला पदी के रहने वाले चंद्रपाल बताते हैं कि उन्हें 35 साल से सेठ गली की मिठाइयों का जायका खींच कर ले आता है। वह एक बार यहां पर आए थे, कुछ मिठाईयां खरीदकर ले गए थे। उन्हें और परिवार के लोगाें को इसका स्वाद इतना भाया कि आज तक यहीं से मिठाईयां खरीदकर ले जाते हैं।

जितने की मिठाई नहीं, उतने को पेट्रोल खर्च करके आते हैं

ऐसा नहीं है कि सेठ गली की मिठाईयों के शौकीन सिर्फ पुराने लोग ही हैं। दयालबाग के रहने वाले 21 साल के आकाश भी यहां की रसमलाई और राजभोग के शौकीन है। आकाश कहते हैं कि यहां की बात ही निराली है, यही कारण है कि जितने की मिठाई नहीं उससे ज्यादा का पेट्रोल खर्च करके वह यहां पर आते हैं। 

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