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Transgender Mahamandaleshwar: विश्‍व की प्रथम किन्‍नर महामंडलेश्‍वर हिमांगी सखी, आइए जानें उनके जीवन की कहानी उनकी ही जुबानी

आगरा पहुंचीं महामंडलेश्वर हिमांगी सखी ने कहा कि गरिमा को बनाए रखें। गुरु के कहने पर ही धर्म प्रचार के रास्ते पर बढ़ाए कदम। मुंबई में माता-पिता के निधन और बहन की शादी के बाद वो वृंदावन आ गई थीं। अतिथि वन में रविवार को होंगे किन्नर भागवताचार्य के प्रवचन।

By Prateek GuptaEdited By: Updated: Sun, 25 Jul 2021 08:47 AM (IST)
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विश्‍व की प्रथम किन्‍नर महामंडलेश्‍वर भागवताचार्य हिमांगी सखी।
आगरा, जागरण संवाददाता। गुरु पूर्णिमा पर विश्व की प्रथम किन्नर भागवताचार्य महामंडलेश्वर हिमांगी सखी मां ने अपने गुरु को याद करते हुए कहा कि उनकी आज्ञा पर ही धर्म के प्रचार के रास्ते पर कदम बढ़ाए क्योंकि यह शायद कृष्ण की आज्ञा थी। उन्‍होंने अपील की है कि हम अपने बच्चों को स्कूल भेजने के साथ सनातन धर्म का ज्ञान अवश्य दें। जब धर्म का ज्ञान होगा तो उनको जीवन जीने की कला अपने आप पता चल जाएगी, क्योंकि धर्म व शास्त्र जीवन जीने की कला सिखाते हैं।

आगरा आईं विश्व की प्रथम किन्नर भागवताचार्य महामंडलेश्वर हिमांगी सखी ने वाटरवर्क्स स्थित अतिथि वन में मीडिया से यह बात कही। उन्होंने कहा कि हमें आने वाली पीढ़ी को शास्त्रों के माध्यम से संदेश देना है कि अपनी गरिमा को बनाए रखें। मानव जन्म अनमोल है। मनुष्य जन्म मिला है तो इस जन्म को सार्थक करना है। यह जन्म आने वाली पीढ़ी और हमारे बच्चों के लिए समर्पित करना है। अपने लिए तो हर कोई जीता है, जीना उसका नाम है, जो दूसरों के लिए जिए। अतिथि वन में रविवार दोपहर 11:30 बजे से उनके प्रवचन होंगे। जागरण.कॉम ने उनके जीवन और अतीत पर बातचीत की। पेश हैं उसके कुछ अंश...

कुछ पाना है तो त्याग करना पड़ेगा

महामंडलेश्वर हिमांगी सखी ने कहा कि मुंबई में माता-पिता के निधन और बहन की शादी के बाद वो वृंदावन आ गई थीं। गुरु की शरण में रहकर शास्त्रों का अध्ययन किया। कुछ पाना है तो कुछ त्याग तो करना ही पड़ेगा। गुरु की आज्ञा पर शास्त्रों के आधार पर उन्होंने धर्म का प्रचार किया। वृंदावन छोड़कर मुंबई चली गईं और वहां धर्म का प्रचार किया।

पशुपतिनाथ पीठ से मिली महामंडलेश्वर की उपाधि

हिमांगी सखी को महामंडलेश्वर की उपाधि पशुपतिनाथ पीठ अखाड़े से मिली है। यह अखाड़ा नेपाल में है। वर्ष 2019 में प्रयागराज में हुए कुंभ में नेपाल के गोदावरी धाम स्थित आदिशंकर कैलाश पीठ के आचार्य महामंडलेश्वर गौरीशंकर महाराज ने उन्हें पशुपतिनाथ पीठ की महामंडलेश्वर की उपाधि दी। अब तक महामंडलेश्वर हिमांगी सखी बैंकाक, सिंगापुर, मारीशस, मुंबई, पटना आदि जगहों पर 50 से अधिक भागवत कथाएं कर चुकी हैं। महामंडलेश्वर बनने से पूर्व उन्होंने फिल्मों में अभिनय भी किया है।

ग्लैमर वर्ल्ड से नाता रखने वाला एक धार्मिक व्यक्ति कैसे हो सकता है।

महामंडलेश्वर हिमांगी: शास्त्रों का अध्ययन और भगवान के प्रति रुचि तो हमें बचपन से ही थी। हमारे पास पेट पालने के लिए उस वक़्त कुछ भी नहीं था। यह जो कला हमारे अंदर थी, उसका हमने उपयोग किया। हमने फिल्म इंडस्ट्री में काम किया और साथ-साथ शास्त्रों का अध्ययन भी किया। जब शास्त्रों का अध्ययन पूर्ण हुआ तो उसके बाद हमने फिल्म इंडस्ट्री का काम छोड़ दिया। सिर्फ श्री हरि के नाम का सिमरन और उनके नामों का प्रचार कर अपने जीवन को समर्पित किया।

ऐसा क्या रहा कि आप नेपाल से ही महामंडलेश्वर बनी?

महामंडलेश्वर हिमांगी: किन्नर अखाड़ा जब बना तो है तो जाकर पूरे विश्व में किन्नरों को सम्मान मिला। किन्नर अखाड़ा बनने के बाद इतना प्रेम किया है कि समाज में किन्नरों को अपने गले लगाया। उनको स्थान दिया है और आज वह पूजनीय है विश्व में। किन्नर अखाड़ा से अगर हमने महामंडलेश्वर लिया तो एक आम बात होती है, क्योंकि किन्नर अखाड़े में किन्नरों को तो महा मंडलेश्वर, उनके आचार्य जी तो देंगे ही। इसके अलावा कोई और अखाड़ा अगर किन्नर को मान्यता देता है अपनाता है, उन्हें महामंडलेश्वर बनाता है तो यह एक बहुत पॉजिटिव मैसेज समाज को जाता है। अब तो और भी अखाड़े हैं, जो किन्नरों को अपनाने लगे हैं।

पद गरिमा का ध्यान रखते हुए आपका अगला कदम क्या होगा?

महामंडलेश्वर हिमांगी: पद की गरिमा सर्वप्रथम है। हमें आने वाली पीढ़ी को शास्त्रों के माध्यम से संदेश देना है कि अपनी गरिमा को बनाए रखना है। मानव जन्म मिला है, वह अनमोल है। हमें मानव का जन्म मिला है तो मैं तो यही जानती हूं मुझे यह मनुष्य जन्म मिला है मनुष्य का जन्म सार्थक करना है। अगर यह जन्म मिला है तो हमारी आने वाली पीढ़ी और हमारे बच्चों के लिए समर्पित करते अपने लिए तो हर कोई जीता है जीना उसका नाम है जो औरों के लिए जिएं।

सामान्य वर्ग के लोग भी आपकी कथा में जुड़ते हैं?

महामंडलेश्वर हिमांगी: सामान्य वर्ग ने अपना माना है। तभी तो हम यहां तक पहुंचे हैं। 

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