Nesting of Birds: पक्षियों के आशियाने पर आई आफत, विलायती बबूल बना मुसीबत
शाखाओं के बीच कोण 100 डिग्री से कम वाले पेड़ों पर पक्षी करते बसेरा। विलायती बबूल की शाखा के बीच होता है 160 से 190 डिग्री कोण। बबूल के कांटे भी डाल रहे मुश्किल में।
By Prateek GuptaEdited By: Updated: Fri, 17 Jul 2020 08:39 AM (IST)
आगरा, अम्बुज उपाध्याय। सूर सरोवर पक्षी अभ्यारण, कीठम के 60 फीसद क्षेत्र में विलायती बबूल प्रोसोपिस जूली फ्लोरा पनप रहा है। इसकी कांटेदार शाखाओं, कम पत्ती और नेस्टिंग के लिए अनुकूल नहीं होने के कारण पंक्षियों के अधिकतर प्रजातियां पलायन कर रही हैं। इसकी शाखाओं के बीच 160 से 190 डिग्री कोण बनता है, जबकि शाखाओं के बीच 100 डिग्री से कम कोण वाले, घने, फूलदार पेड़ों पर पंक्षी अपना डेरा डालते हैं।
डाॅ. बीआर आंबेडकर विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट ऑफ लाइफ साइंस की ओर से कीठम में पक्षियों के जीवन पर शोध किया तो पता चला कि यहां की प्रवासी प्रजातियां पलायन कर रही हैं। पांच से 10 मीटर ऊंचाई के वृक्ष की दूसरी प्रजातियों में शरण ले रही है। कीठम के 7.83 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र से 4.03 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र पानी से घिरा है। पानी के आस पास का क्षेत्र बाहर से आने वाली बर्ड की प्रजातियों के लिए रहता है। शोधार्थियों को लीड कर रहे प्रो. पीके वाष्र्णेय और डीन लाइफ साइंस पीके सिंह ने बताया कि विलायती बबूल बर्ड के लिए अनुकूल नहीं है। इसके कांटे, टहनियों की शेप उन्हें नेस्टिंग में मुश्किल करती है। इस कारण कुछ घरेलू प्रजातियां पलायन कर रही हैं, जबकि बाहर से आने वाली की संख्या में कमी आई है। कुछ घरेलू प्रजातियां तो 60 से 90 फीसद पलायन कर गई हैं। पलायन रोकने के लिए हमें घने पेड़ लगाने होंगे, जो फलदार, फूलदार हों और उनके पत्ते चौड़े होने चाहिएं।
ये हैं प्रवासी प्रजातियांपेलिकंस, बिल्डडक, ब्लैक हेडेड आइविस, पेंटेड स्टोर्क ये सभी प्रजातियां प्रवासी बर्ड की है। जो काफी कम संख्या में आ रही हैं।
ये हैं घरेलू प्रजातियांकोरमोरेंट, ब्राह्मीडक, कॉमेडक, टील, हेरोंस, लिटिल एग्रेट, कैटल एग्रेट, पर्पल हेरोन, मोरेंट, इंडियन पोंडहैरान ये घरेलू प्रजातियां है। इसमें से कुछ प्रजातियां काफी कम हो गई है, जिसका कारण पलायन है। बची हुई भी पलायन करने को मजबूर है।
एलीलोपैथिक प्रभाव के कारण नहीं पनपती दूसरी प्रजातियांविलायती बबूल जहां पनपता है, वहां पर एलीलोपैथिक प्रभाव छोड़ता है। इससे आस-पास दूसरे पौधे और उस क्षेत्र के पौधो नहीं पनपने देता है।घटाता है मृदा की उत्पादकताविशेषज्ञ ने बताया कि विलायती बबूल एक खरपतवार है। ये कार्बन अन्य वृक्षों की तुलना में कम सोखता है और मृदा की उत्पादकता को घटाता है। इसके बीज से एक एसिड निकलता है, जिसे सिननेमिक एसिड कहते हैं, जो दूसरे पेड़, पौधों के विकास में बाधक होता है।
1870 में लाया गया था भारतविलायती बबूल मूलरूप से दक्षिण और मध्य अमेरिका एवं कैरीबियाई देशों में पाया जाता है। 1870 में इसे भारत लाया गया था, लेकिन अब ये एक समस्या बन गया है।ईधन के लिए लाए थे प्रजाति, अब बनी मुश्किलविलायती बबूल की प्रजाति को भारत में इसलिए लाया गया था कि ये जल्द ग्रोथ करेगा और ग्रामीणों को आसानी से लकड़ी के रूप में ईधन उपलब्ध हो जाएगा। ये धीरे-धीरे विकराल रूप लेता चला गया। फिलहाल जमीन, पक्षियों को नुकसान दे रहा है।
दूसरे राज्य, देशों में भी हुए हैं शोधविशेषज्ञ ने बताया कि साउथ इंडिया की भारती वेतंगगुड़ी बर्ड सेंचुरी और महाराष्ट्र के एक विश्वविद्यालय में भी शोध हुआ है। उन्होंने वहां विलायती बबूल की जगह कारू पेड़ लगवा कर देखा तो लोकल बर्ड उन पर 90 फीसद नेस्टिंग करने लगीं। कारू पेड़ अधिक पत्ती वाले, तेजी से वृद्धि करने वाले और इनके कोण अनुकूल होते हैं।
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