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वट वाटिका में मिल रहा शुकून

रुद्राक्ष कदंब और चंदन के पेड़ों से महक रहा वातावरण दोपहर में सुस्ताने और शाम को पिकनिक मनाने पहुंचते हैं लोग

By JagranEdited By: Updated: Mon, 07 Jun 2021 09:09 PM (IST)
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वट वाटिका में मिल रहा शुकून

आगरा, (ऋषि दीक्षित)।

कोरोना काल में नि:संदेह पर्यावरण के प्रति लोगों में चिंतन और समर्पण बढ़ गया है, लेकिन आगरा में इसकी शुरुआत बहुत पहले हो चुकी थी। इसका जीता-जागता उदाहरण है यमुना किनारे लोगों को शुकून देती वट वाटिका। सिकंदरा के कैलाश में राजा महादेव मंदिर के पास विकसित की गई इस वाटिका में पंद्रह बरगद के पेड़ अब हारे-थके लोगों को आसरा दे रहे हैं।

वर्ष 2016 में महाशिवरात्रि पर पर्यावरण प्रेमी बजरंग नगर निवासी राजू पौनिया ने विधि-विधान से अपनी परिकल्पना के अनुरूप, यहां 15 बरगद के पेड़ इस तरह लगाए थे कि वे बड़े होकर आपस में जुड़ जाएं और करीब तीन हजार साल तक लोगों को छांव देते रहें। आज इन पेड़ों की टहनियां आपस में जुड़ गई हैं और धीरे-धीरे ये विशाल रूप लेते जा रहे हैं। कैलाश गांव के पश्चिम में वट वाटिका का महत्व अब यमुना पर पुल बन जाने से और बढ़ गया है। यहां मथुरा के गांवों से आगरा में काम की तलाश में आने वाले लोगों को छांव मिलती है। इस वाटिका को विकसित करने वाले राजू पौनिया के अनुसार यहां बरगद के पेड़ों सहित पांच पीपल, दो चंदन, दो रुद्राक्ष, 11 कदंब और 5 अमरूद के पेड़ भी हैं, जो अब बड़े हो गए हैं। यही नहीं यहां प्राचीन राजा महादेव मंदिर का जीर्णोद्धार भी कराया था। जब से यहां हरियाली विकसित हुई है शहर से तमाम लोग पिकनिक मनाने भी आने लगे हैं। वर्तमान में कई बेसहारा और साधु संत यहां कुटिया बना कर निवास कर रहे हैं। जैसे-जैसे हरियाली बढ़ रही है यह स्थान रमणीक होता जा रहा है। वट वाटिका में अब 400 से 500 लोग एक साथ छांव में बैठ सकते हैं।

दरअसल ये भगवान भोले की कृपा से संभव हुआ है। मैं ऐसे ही एक दिन घूमते हुए यहां पहुंचा तो मुझे शांति महसूस हुई। मैंने उसी दिन यहां हरियाली विकसित करने की ठान ली थी। पर्यावरण के प्रति गंभीरता ही समाज की सच्ची सेवा है। खुशहाली के लिए हमें ज्यादा से ज्यादा वृक्ष लगाने चाहिए।

राजू पौनिया, पर्यावरण प्रेमी, बजरंग नगर, आगरा

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