कृष्ण लीलाओं की गाथा सुना रहे वृंदावन के घाट
विकास के नाम पर कंक्रीट के वन में तब्दील हो चुके वृंदावन में भगवान की लीलाओं का बखान करने वाले 38 घाटों में से अधिकतर घाट अपना अस्तित्व भी खो चुके हैं।
By JagranEdited By: Updated: Fri, 13 Jul 2018 11:30 AM (IST)
आगरा(विपिन पाराशर):
भगवान श्रीकृष्ण की लीलाभूमि वृंदावन की बात चले और यमुना का जिक्र न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। वृंदावन की यात्रा में भगवान की लीला स्थलियों के दर्शन का भी खास महत्व है। यमुना तट की लीलाओं में कालीय मर्दन, चीरहरण लीला, केशी वध लीला प्रमुख हैं। यही कारण है कि राजे-रजवाड़ों ने इन घाटों के महत्व को देखते हुए अपने रियासत काल में पक्के घाटों का निर्माण कराया। अब विकास के नाम पर कंक्रीट के वन में तब्दील हो चुके वृंदावन में भगवान की लीलाओं का बखान करने वाले 38 घाटों में से अधिकतर घाट अपना अस्तित्व भी खो चुके हैं। जो घाट बचे हैं, वो अपने अस्तित्व से जूझ रहे हैं। केसी घाट, अक्रूर घाट को छोड़ दें तो अधिकांश घाट अब यमुना से बहुत दूर हो गए हैं। वाराह घाट: वृंदावन के दक्षिण पश्चिम दिशा में स्थित प्राचीन वाराह घाट पर भगवान वाराह देव विराजमान हैं। मान्यता है सतयुग में भगवान वाराह यहा पहुंचे थे, इसलिए इसका नाम वाराह घाट पड़ गया। यहीं पास ही गौतम मुनि का आश्रम है। कालीय मर्दन घाट:
भगवान श्रीकृष्ण जब अपने सखाओं के साथ यमुना किनारे खेल रहे थे तो उनकी गेंद यमुना में पहुंच गई। उस समय यमुना में कालीय नाग ने यमुना जल को विषैला कर रखा था। कोई भी यहा यमुना में नहीं उतरता था। भगवान को तो अपनी लीला करनी थी। गेंद लाने के बहाने यमुना में छलाग लगा दी। सखाओं में हड़कंप मच गया। मैया यशोदा और नंदबाबा बेचैन थे। मगर कुछ ही देर में भगवान श्रीकृष्ण ने कालीय मर्दन कर उसे यमुना से चले जाने पर मजबूर कर दिया और कालीय नाग के फन पर नृत्य करते हुए यमुना से बाहर निकले। तब से इस घाट का नाम कालीय मर्दन घाट पड़ गया। यह वाराह घाट से लगभग आधे मील उत्तर में अवस्थित है। इस घाट का निर्माण होल्कर राव ने कराया था।
सूरज घाट:
इस घाट को द्वादश या आदित्य घाट के नाम से जाना जाता है। श्रीकृष्ण को कालीय नाग दमन के बाद ठंड लगने लगी। तब भगवान सूर्यदेव ने प्रखर तेज से श्रीकृष्ण को गर्माहट दी। तब श्रीकृष्ण को कुछ गर्माहट मिली और उनको पसीना आने लगा। यहां श्रीकृष्ण का पसीना यमुना में जाकर मिल गया। तब से मान्यता है कि इस घाट पर स्नान करने वालों के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। पाच सौ साल पहले सनातन गोस्वामी इसी टीले पर ठा. मदन मोहन जी की सेवा करते थे। मंदिर अभी भी इसी आदित्य टीले पर बना हुआ है। युगल घाट: सूरज घाट के उत्तर में युगल घाट अवस्थित है। इस घाट पर ठा. युगल बिहारी का प्राचीन मंदिर शिखर विहीन अवस्था में पड़ा हुआ है। केशी घाट के निकट एक ओर जुगल किशोर का मंदिर है। मान्यता है कि यहा गोपियों ने भगवान के प्रेम में उन्मुक्त होकर लीला गायन किया, इसलिए इस घाट का नाम युगल घाट पड़ गया। यहा स्थित युगल बिहारी मंदिर का निर्माण 1680 में राजा प्रतापादित्य के चाचा बसंत राय ने कराया। ग्राउस की पुस्तक में इस घाट के निर्माण का उल्लेख हरिदास व गोविंद दास ठाकुर के नाम से भी मिलता है। बिहार घाट: युगल घाट के उत्तर में श्री बिहार घाट स्थित है। घाट के बारे में उल्लेख है कि जब भगवान श्रीकृष्ण और बलराम ग्वाल-वालों के साथ यमुना किनारे बैठकर भोजन करते थे। इस घाट पर कभी सखाओं के साथ तथा कभी सखियों के साथ भगवान श्रीकृष्ण और राधाजी ने अनेक प्रकार की लीलाएं कीं, इसीलिए इस घाट का नाम बिहार घाट पड़ गया। आधेर घाट: युगल घाट के उत्तर में यह घाट स्थित है। इस घाट के उपवन में कृष्ण और गोपिया आख मिचौनी की लीला करते थे। अर्थात् गोपियों के अपने हाथों से अपने नेत्रों को ढक लेने पर श्रीकृष्ण आसपास कहीं छिप जाते और गोपिया उन्हें खोजती थीं। कभी राधाजी इसी प्रकार छिप जातीं और सभी उनको खोजते थे। इसीलिए इस घाट का नाम आंधेर घाट पड़ गया। इमलीतला घाट: आधेरघाट के उत्तर में इमलीघाट स्थित है। मान्यता है कि यहा स्थित इमली वृक्ष श्रीकृष्ण के काल का है, जिसके नीचे चैतन्य महाप्रभु को अपने वृंदावन वास काल में हरिनाम करते हुए कृष्ण की लीला स्थलियों का भान हुआ। इसे गौराग घाट भी कहते हैं। श्रृंगार वट घाट: इमलीतला घाट से पूर्व दिशा में यमुना तट पर श्रृंगार वट घाट स्थित है। जहा प्राचीन इमली का वृक्ष है। यहा एक हार-श्रृंगार का वृक्ष भी कृष्णकाल में था। इसके नीचे भगवान श्रीकृष्ण ने राधाजी का केश सिंगार किया। यहा आज भी मूलवेदी के दर्शन हैं, इसीलिए इस घाट का नाम श्रृंगारवट घाट पड़ गया। गोविंद घाट: श्रृंगार घाट के पास उत्तर में यह घाट है। भगवान की लीलाओं में उल्लेख है कि कामदेव के मन को भी मथित करने वाले कृष्ण ने गोपियों को महारास के समय व्याकुल अवस्था में देखा तो यहीं प्रकट हो गए। तभी से इसका नाम गोविंद घाट पड़ गया। गोस्वामी श्रीहित हरिवंश ने यहा रासमंडल की स्थापना की। आज भी यहा पूरे साल रासमंडल में रास लीलाएं होती हैं। चीर घाट: श्रृंगारवट घाट से लगा हुआ है चीरघाट। उल्लेख है कि एकबार गोपिया यमुना स्नान कर रही थी और भगवान श्रीकृष्ण यहा स्थित कदंब वृक्ष पर गोपियों के वस्त्र लेकर चढ़ गए। भगवान गोपियों को संदेश देना चाहते थे कि नदी, सरोवर में प्रवेश कर नग्न स्नान करने से वरुण दोष लगता है। गोपियों के बहाने श्रीकृष्ण ने दुनिया को ये संदेश दिया। गोपियों ने कार्तिक मास में एक महीने तक कात्यायनी व्रत भी यहीं किया था। आज यहा नृत्यगोपाल का मंदिर स्थित है। भ्रमर घाट: चीरघाट के उत्तर में यह घाट है। एक बार राधाजी भगवान श्रीकृष्ण के विरह में डूबी हुई थी तो भगवान श्रीकृष्ण ने एक भ्रमर को दूत बनाकर उनके पास भेजा। जो बार-बार राधाजी के चरणों के चक्कर काटता। यह देख राधाजी ने भ्रमर को भगाते हुए कहा कि तू जिसने भेजा है, उसकी बात मत कर। तभी से इस घाट का नाम भ्रमर घाट पड़ गया। केशी घाट: वृंदावन के उत्तर-पश्चिम दिशा में तथा भ्रमर घाट के समीप स्थित है। आज यह घाट नगर के प्रमुख घाट के रूप में है और अपना अस्तित्व बचा पाने में सक्षम है। घाट के बारे में उल्लेख है कि कंस ने केशी नामक दानव को भगवान श्रीकृष्ण का वध करने भेजा। वह घोड़े के रूप में यमुना किनारे पहुंचा। मगर भगवान श्रीकृष्ण ने उसे पहचान लिया और उसका वध कर दिया। तभी से इस घाट का नाम केशी घाट पड़ गया। मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से गया में किए गए पिंडदान का फल मिलता है। धीर समीर घाट: केशीघाट से पूर्व दिशा में धीर समीर घाट है। वृंदा देवी की अनेक लीलाओं का उल्लेख है। यहीं पर श्रीकृष्ण की राधाजी के प्रति व्याकुल मिलन की उत्कंठा देखकर वृंदा देवी बेहोश हो गईं। भगवान श्रीकृष्ण की उत्कंठा देख राधाजी भी तुरंत वृंदा देवी के साथ आती हैं और प्रिया-प्रियतम मिलन देख सखिया प्रसन्न हो जाती हैं, इसीलिए इस घाट का नाम धीर समीर रखा गया। वंशीवट घाट: भगवान श्रीकृष्ण ने राधाजी व गोपियों संग जिस भूमि पर महारास किया। यमुना किनारे इस घाट का नाम वंशीवट पड़ गया। चूंकि भगवान की बासुरी से निकले स्वरों से मुग्ध होकर राधाजी व गोपिया रातभर महारास करती रहीं, इसलिए वंशीवट आज भी भगवान के महारास की गाथा गा रहा है। जगन्नाथ घाट: पुरी से चलकर भगवान जगन्नाथ का रथ पहली बार जिस घाट पर रुका था, वहीं जगन्नाथ मंदिर स्थापित हो गया। इस घाट को जगन्नाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। राधा घाट: वृंदावन के पूर्व में स्थित राधाघाट के बारे में उललेख है कि कि रास रचाते हुए भगवान श्रीकृष्ण यहा से राधाजी को लेकर अंतध्र्यान हो गए। तभी से इसका नाम राधा घाट पड़ गया। पानीघाट: इस घाट का नाम पाणि घाट है। भाषा अपभ्रंश के चलते इसे अब पानी घाट के नाम से जाना जाता है। उल्लेख है कि एक बार दुर्वासा मुनि को भोजन कराने को गोपिया यमुना पार जा रही थीं। गोपियों ने श्रीकृष्ण से यमुना पार जाने का उपाय पूछा तो भगवान ने कहा कि यमुना से कह दो कि हमने अखंड ब्रह्मचर्य का पालन किया है, लिहाजा उस तप के बल से रास्ता दे दो। गोपियों ने हंसते हुए ऐसे ही प्रार्थना कर दी और यमुनाजी खाली हो गईं, गोपिया पार चली गईं। शाम को जब गोपिया वापस आईं तो उन्होंने दुर्वासा मुनि से प्रश्न किया। मुनि के बताए ज्ञान के बाद गोपिया पुन लौट आईं और यमुना भी अपने रूप में आ गई। तब से इस घाट का नाम पानी घाट पड़ गया। आदि बद्री घाट: पानीघाट से दक्षिण में यह घाट स्थित है। उल्लेख है कि एक बार बाबा नंद और मा यशोदा ने चार धाम दर्शन की इच्छा जताई तो भगवान श्रीकृष्ण ने इसी घाट पर आदि बद्रीनाथ धाम के दर्शन उन्हें कराए। तभी से इस घाट का नाम आदि बद्री घाट पड़ गया। राजघाट: आदि बद्रीघाट के दक्षिण में राजघाट है। इसी के सहारे राजपुर गाव बसा है। ब्रज विहार लीला के रचनाकार हरिलाल लिखते हैं कि इसी घाट पर श्रीकृष्ण ने दान लीला के समय गोपियों से दूध, दही दान लेकर नाविक वन यमुना पार किया था। भगवान श्रीकृष्ण इसी घाट पर नाविक बनकर राजकर वसूली के बहाने खड़े रहते थे। इसलिए इस घाट का नाम राजघाट पड़ गया। अक्रूर घाट: इस घाट पर अक्रूरजी को भगवान श्रीकृष्ण ने यमुना स्नान के दौरान अपने चतुभरुंज रूप में दर्शन दिए। अक्रूरजी का मंदिर आज भी यहा स्थित है। इस गाव का नाम भी अक्रूर गाव पड़ गया। यहीं पर चैतन्य महाप्रभु जब ब्रज भ्रमण पर आए तो पहला पड़ाव अक्रूर घाट पर ही लिया था। इन घाटों का भी है उल्लेख: वृंदावन में यमुना किनारे के मदनटेर घाट, रामगोपाल घाट, नाभा घाट, कोरिया घाट, धूसर घाट, नया घाट, श्रीजी घाट, चुरवाला घाट, नागरीदास घाट, भीम घाट, टेहरीवाला घाट, नागरदास घाट, वर्द्धमान घाट, बरवाला घाट, रानापत घाट, गंगामोहन घाट, गोविंद घाट, हिम्मत बहादुर घाट, पंडावाला घाट, टिकारी घाट स्थित हैं। समय के बदलाव और विकास के नाम पर इनमें से अधिकतर घाट अपना अस्तित्व खो चुके हैं।
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