World Sloth Bear Day: कलंदर के जुल्म भुलाने के लिए भालुओं को हर दिन दिया जाता है एक 'टास्क', PHOTOS
World Sloth Bear Day विश्व स्लाथ भालू दिवस के अवसर पर वन्यजीव एसओएस 30 सालों के संरक्षण प्रयासों का जश्न मना रहा है। आगरा स्थित विश्व के सबसे बड़े भालू संरक्षण केंद्र में वन्यजीव एसओएस स्लाथ भालुओं को नया जीवन दे रहा है। इस दिवस का उद्देश्य भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाने वाली इस अनोखी भालू प्रजाति के बारे में जागरूकता पैदा करना और संरक्षण प्रयासों को मजबूत करना है।
जागरण संवाददाता, आगरा। आगरा में स्थापित विश्व के सबसे बड़े भालू संरक्षण केंद्र में वाइल्डलाइफ एसओएस स्लॉथ भालुओं को संरक्षण देने का कार्य कर रहा है। शनिवार को वन्यजीव संरक्षक विश्व स्लॉथ भालू दिवस की दूसरी वर्षगांठ मना रहे हैं। वहीं संस्था वन्यजीव संरक्षण में 30 साल पूरे कर रहा है। संस्था भालुओं को संरक्षण देने के साथ अन्य जंगली जानवरों को संरक्षित कर रही है।
वाइल्डलाइफ एसओएस ने 1995 में दिल्ली के गैराज से संकटग्रस्त जंगली जानवरों को बचाने, उनका इलाज करने और पुनर्वास करने की शुरुआत की थी। संस्था द्वारा अब तक हजारों जंगली जानवरों को बचाने का कार्य किया है। संस्था ने कलंदरों द्वारा बंधक बनाए गए इन भालुओं के कल्याण में सात सौ स्लाथ भालुओं को संरक्षित किया है।
वाइल्डलाइफ एसओएस सूरसरोवर पक्षी विहार स्थित भालू संरक्षण केंद्र में सभी स्लॉथ भालू को संरक्षण देने के साथ नया जीवन देती है। यह केंद्र दुनिया का सबसे बड़ा स्लॉथ भालू संरक्षण केंद्र है।
स्लॉथ भालू की देखभाल करतीं महिला।
30 सालों में स्लॉथ भालू का संरक्षण दिया
वाइल्डलाइफ एसओएस की सह-संस्थापक और सचिव गीता शेषमणि ने कहा वाइल्डलाइफ एसओएस ने 30 सालों में स्लॉथ भालू का संरक्षण दिया है। संरक्षण प्रयासों का प्रभाव पशु कल्याण से कहीं आगे तक फैला है। हिमालय तक फैली है यह प्रजाति विश्व स्लाथ भालू दिवस मनाने से इस प्रजाति को समझने का अवसर मिलेगा। साथ ही दुनियाभर के संगठनों, संस्थानों, बचाव केंद्रों और चिड़ियाघरों के लिए स्लाथ भालू और उनके आवास के संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा।
इस तरह के होते हैं स्लॉथ भालू।स्लॉथ भालू दुनिया भर में पाई जाने वाली आठ भालू की प्रजातियों में से एक है। उन्हें लंबे, झबरा गहरे भूरे या काले बाल, छाती पर सफेद 'वि' की आकृति और चार इंच लंबे नाखून से पहचाना जा सकता है। भारतीय उपमहाद्वीप में वे तटीय क्षेत्र, पश्चिमी घाट और हिमालय बेस तक यह फैले हुए हैं।
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