World Sloth Bear Day: आगरा से आगाज होगा पहले वर्ल्ड स्लॉथ बेयर डे का, मिला दुनिया भर का समर्थन
World Sloth Bear Day आईयूसीएन रेड लिस्ट में वल्नरेबल के रूप में सूचीबद्ध स्लॉथ बेयर। दुनियाभर में महशूर है ये प्रजाति डांसिग बेयर के नाम से। आगरा के कीठम में दुनिया का सबसे बड़ा भालू संरक्षण केंद्र है स्थित।
By Prabhjot KaurEdited By: Tanu GuptaUpdated: Sat, 08 Oct 2022 02:44 PM (IST)
आगरा, प्रभजोत कौर। भारतीय उपमहाद्वीप के लिए अद्वितीय भालू प्रजातियों के संरक्षण पर ध्यान आकर्षित करने के लिए 12 अक्टूबर को वर्ल्ड स्लॉथ बेयर डे World Sloth Bear Day घोषित किया गया है। इसकी शुरूआत इसी 12 अक्टूबर को आगरा के कीठम स्थित भालू संरक्षण गृह से ही की जाएगी। स्लॉथ बेयर आईयूसीएन रेड लिस्ट में 'वल्नरेबल' के रूप में सूचीबद्ध है। स्लॉथ भालू मुख्य रूप से भारत में पाई जाने वाली एक अनोखी भालू की प्रजाति है। इस प्रजाति के कुछ भालू नेपाल में और एक उप-प्रजाति श्रीलंका में पाई जाती है, जिस कारण भारत इस प्रजाति के भालुओं का मुख्य गढ़ बन जाता है। अपने शावकों की रक्षा के लिए जंगली बाघ को रोकने में पर्याप्त आक्रामक इन स्लॉथ भालुओं पर दुनिया में सबसे कम रिसर्च हुआ है। वाइल्डलाइफ एसओएस इंडिया पिछले 25 से अधिक वर्षों से स्लॉथ भालुओं के संरक्षण में शामिल है, जिन्होंने आईयूसीएन को प्रस्ताव दिया कि भारतीय उपमहाद्वीप के लिए अद्वितीय भालू प्रजातियों के संरक्षण पर ध्यान आकर्षित करने के लिए 12 अक्टूबर को "वर्ल्ड स्लॉथ बेयर डे" घोषित किया जाए।
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क्या उद्देश्य है वर्ल्ड स्लॉथ बेयर डे का
वर्ल्ड स्लॉथ बेयर डे इस प्रजाति को समझने और दुनिया भर के संगठनों, संस्थानों, बचाव केंद्रों और चिड़ियाघरों के लिए स्लॉथ भालू और उनके आवास के संरक्षण को बढ़ावा देने और जन जागरूकता बढ़ाने का अवसर प्रदान करेगा।
दुनिया का सबसे बड़ा भालू संरक्षण केंद्र है आगरा में
पहले वर्ल्ड स्लॉथ बेयर डे का उद्घाटन, वाइल्डलाइफ एसओएस और आईयूसीएन-एसएससी स्लॉथ भालू विशेषज्ञ टीम 12 अक्टूबर 2022 को आगरा भालू संरक्षण केंद्र में करेंगे। यह इस भालू की प्रजाति का दुनिया का सबसे बड़ा संरक्षण और पुनर्वास केंद्र है, जिसकी स्थापना 1999 में उत्तर प्रदेश वन विभाग के सहयोग से वाइल्डलाइफ एस.ओ.एस द्वारा की गई थी।क्या विशेषता है स्लॉथ भालू में
स्लॉथ भालू दुनिया भर में पाई जाने वाली आठ भालू की प्रजातियों में से एक है। उन्हें लंबे, झबरा गहरे भूरे या काले बाल, छाती पर सफेद ‘वि’ की आकृति और चार इंच लंबे नाखून से पहचाना जा सकता है, जिनका उपयोग वह टीले से दीमक और चींटियों को बाहर निकालने के लिए करते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में वे तटीय क्षेत्र, पश्चिमी घाट और हिमालय बेस तक फैले हुए हैं। आज, भारत पूरे विश्व की 90% स्लॉथ भालुओं की आबादी का घर है। कई रिपोर्ट के अनुसार, पिछले तीन दशकों में मुख्य रूप से घटते जंगल, अवैध शिकार और मानव-भालू संघर्ष में वृद्धि के कारण उनकी आबादी में 40 से 50% की गिरावट आई है। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में इस प्रजाति को अनुसूची I के तहत सूचीबद्ध किया गया है, जो इन्हें बाघ, गैंडे और हाथियों के समान सुरक्षा प्रदान करता है। हालांकि, यह प्रजाति लंबे समय से जीवित रहने के लिए एक कठिन लड़ाई लड़ रही है और तत्काल संरक्षण और सुरक्षा उपायों की हकदार है।
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क्यों पकड़ा जाता था स्लॉथ भालुओं को
स्लॉथ भालुओं को पहले, भारत में 'डांसिंग बेयर' प्रथा के तहत मनोरंजन के लिए पकड़ा जाता था। वाइल्डलाइफ एसओएस पिछले 25 से अधिक वर्षों से स्लॉथ भालुओं के संरक्षण में सबसे आगे रहा है। वाइल्डलाइफ एसओएस ने 628 से अधिक नाच दिखाने वाले भालुओं को बचाया और उनका पुनर्वास किया है, जिससे यह 400 साल पुरानी अवैध और क्रूर परंपरा का अंत हुआ, इसी के साथ-साथ भालुओं को नचाने वाले कलंदर समुदाय के सदस्यों को वैकल्पिक आजीविका भी प्रदान की गई, महिलाओं को सशक्त बनाया गया और बच्चों को इसे आगे बढाने से रोकने के लिए शिक्षित किया गया।