World Autism Awareness Day 2024: मासूमों को वर्चुअल आटिज्म का शिकार बना रहा मोबाइल, इन आयु के बच्चों पर अधिक असर; ये हैं लक्षण
जेन नेक्सट न्यूरो केयर के चाइल्ड न्यूरोलाजिस्ट डा. अनूप कुमार बताते हैं कि बच्चों के दिमाग का विकास दो से पांच वर्ष की आयु में होता है। बच्चा नई-नई चीजें सीखता है। इसमें दूसरों की बातों को समझना अपनी प्रतिक्रिया देना दूसरों से घुलना-मिलना भी शामिल है। इस आयु में बच्चों को मोबाइल फोन में व्यस्त रखा जाए तो उनका मानसिक और शारीरिक विकास प्रभावित होता है।
जागरण संवाददाता, अलीगढ़। World Autism Awareness Day 2024: डिजिटल युग में अत्याधुनिक संसाधन बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं। मोबाइल फोन इसमें अहम भूमिका निभा रहा है। मोबाइल फोन की लत से बच्चे वर्चुअल आटिज्म का शिकार हो रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार कोरोना काल के बाद ऐसे मामले बढ़े हैं। मोबाइल फोन देकर बच्चों को व्यस्त रखना नुकसानदेह साबित हो रहा है।
जेन नेक्सट न्यूरो केयर के चाइल्ड न्यूरोलाजिस्ट डा. अनूप कुमार बताते हैं कि बच्चों के दिमाग का विकास दो से पांच वर्ष की आयु में होता है। बच्चा नई-नई चीजें सीखता है। इसमें दूसरों की बातों को समझना, अपनी प्रतिक्रिया देना, दूसरों से घुलना-मिलना भी शामिल है। इस आयु में बच्चों को मोबाइल फोन में व्यस्त रखा जाए तो उनका मानसिक और शारीरिक विकास प्रभावित होता है।माता-पिता ऐसे बच्चों का उपचार कराने आते हैं जो दूसरों से बातचीत करने में झिझकते हैं, कतराते हैं। अपनी आयु के बच्चों के साथ नहीं खेलते, खुद में खोए रहते हैं। देरी से बोलना सीखते हैं, बार-बार एक शब्द दोहराते हैं। ऐसे बच्चे वर्चुअल आटिज्म का शिकार होते हैं।
विश्व स्तर पर 160 में एक बच्चे को होता है आटिज्म
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व स्तर पर 160 में एक बच्चे को आटिज्म होता है। आटिज्म का कोई इलाज नहीं है। इस स्थिति को सुधारने के लिए कई प्रभावशाली तरीके जरूर हैं। एक वर्ष का होने से पहले ही बच्चे में आटिज्म के संकेत मिलने शुरू हो सकते हैं। स्पष्ट संकेत दो या तीन साल की आयु से पहले दिख जाते हैं। आटिज्म सोशल स्किल्स, कम्युनिकेशन स्किल्स व बिहेवियर स्किल्स को प्रभावित करता है।
लैपटाप, टीवी, कंप्यूटर पर अधिक समय तक पिक्चर, कार्टून देखने से भी यह समस्या होती है। माता-पिता को चाहिए कि बच्चों को अधिक से अधिक शारीरिक गतिविधियों में शामिल कराएं। इंटरनेट मीडिया से बच्चों की दूरी बढ़ाएं।