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मरणोपरांत कल्‍याण सिंह को मिले पद्म विभूषण सम्मान के दौरान भावुक हो गए थे भाजपा सांसद राजवीर सिंह

Padma Vibhushan to Kalyan Singhपूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को मरणोपरांत दिए गए पद्म विभूषण सम्‍मान को ग्रहण करते समय एटा के सांसद राजवीर सिंह उर्फ राजू भैया के चेेेहरे पर खुशी थी। सबसे पहले सम्‍मान के लिए कल्‍याण सिंह का नाम बोला गया तो वे भावुक हो गए थे।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Updated: Tue, 29 Mar 2022 08:53 PM (IST)
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समारोह में कल्‍याण सिंह का नाम जैसे ही बोला गया तो सांसद राजवीर सिंह भावुक हो गए।

अलीगढ़, जेएनएन। Padma Vibhushan to Kalyan Singh दिल्‍ली के राष्‍ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को मरणोपरांत दिए गए पद्म विभूषण सम्‍मान को ग्रहण करते समय एटा के सांसद राजवीर सिंह उर्फ राजू भैया के चेेेहरे पर खुशी थी, मगर जब सबसे पहले सम्‍मान के लिए कल्‍याण सिंह का नाम बोला गया तो वे भावुक हो गए थे। वे मन ही मन अपने पिता कल्‍याण सिंह को खोज रहे थे। सोच रहे थे काश वे ही इस सम्‍मान को ग्रहण करते तो कितना अच्‍छा होता। 

उत्‍तर प्रदेश का जनपद अलीगढ़़ दुन‍ियाभर में अपने तालों, हार्डवेयरों उत्‍पादों और अलीगढ़ मुस्‍ल‍िम यूनिवर्सिटी के ल‍िए सुप्रसिद्ध है। इसके साथ-साथ दुन‍ियाभर की राजनीत‍ि में अलीगढ़ की पहचान उत्‍तर प्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री कल्‍याण स‍िंह से भी है। भाजपा के वरिष्‍ठ नेता नेता कल्याण सिंह का निधन 21 अगस्त 2021 को हो गया था। अलीगढ़ से राजनीति यात्रा शुरू करके राजनीतिक क्षेत्र में अलग पहचान बनाने वाले पूर्व मुख्‍यमंत्री कल्‍याण सिंह को सोमवार को मरणोपरांत पद्म विभूषण सम्मान दिया गया था। 

कल्‍याण सिंह ने अलीगढ़ से शुरू की थी राजनीति यात्रा

पूर्व मुख्‍यमंत्री कल्याण स‍िंह अलीगढ़ की अतरौली विधानसभा सीट का प्रत‍िन‍िध‍ित्‍व करते थे। अतरौली व‍िधानसभा सीट से पूर्व मुख्‍यमंत्री कल्‍याण स‍िंह 9 बार व‍िधायक चुने गए गए। दो बार उनके पर‍िवार के सदस्‍य इस सीट से व‍िधानसभा पहुंचे चुके हैं। पूर्व मुख्‍यमंत्री कल्‍याण सिंह ने पहली बार 1962 में जनसंघ के टिकट पर कल्याण सिंह ने चुनाव लड़ा था। हालांकि इस चुनाव में उन्हें कांग्रेस के प्रत्याशी के हाथों हार का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने फिर कमर कसी और 1967 में जीत दर्ज की। इसके बाद इस सीट पर उनका दबदबा कायम हो गया। उन्‍होंने 1969 ,1974, 1977 में लगातार जीत दर्ज की।1980 में कल्‍याण स‍िंंह को कांग्रेस के अनवर खान ने हरा दिया। हालांकि फिर 1985 में उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी अनवर खां को हरा दिया। इसके बाद 1991 ,1993 1996, 2002 में इसी सीट से कल्याण सिंह ने जीत दर्ज की। 2007 में उनकी पुत्रवधू प्रेमलता ने जीतीं। 2012 के चुनाव में इस सीट पर सपा ने जीत दर्ज की। इस चुनाव में प्रेमलता को हार का सामना करना पड़ा। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी फिर बीजेपी ने सबसे बड़ी जीत दर्ज की। कल्याण सिंह के पौत्र संदीप सिंह को प्रत्याशी बनाया गया। उन्होंने 50,000 से ज्यादा मतों से जीत दर्ज की। इस बार 2022 में हुए विधानसभा सीट अतरौली से कल्‍याण सिंह के पौत संदीप सिंह एक बार फिर चुनाव जीत गए हैं।

कल्‍याण सिंह ने मुख्‍यमंत्री पद से दिया था इस्‍तीफा

पूर्व मुख्‍यमंत्री कल्‍याण सिंह ने बाबरी ढांचा के विध्वंस के बाद 6 दिसंबर 1992 को उत्‍तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। कल्‍याण को कुर्सी का मोह नहीं था। कुर्सी त्‍यागने में उन्‍होंने क्षणिक समय नहीं लगाया। जिम्‍मेदारी लेते हुए इस्‍तीफा दे दिया।

अतरौली सीट पर दबदबा रहा कायम

- वर्ष 1967 में, वह पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा सदस्य के लिए चुने गए और वर्ष 1980 तक सदस्य रहे।

-जून 1991 में, बीजेपी को विधानसभा चुनावों में जीत मिली और कल्याण सिंह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

- बाबरी ढांचा के विध्वंस के बाद कल्याण सिंह ने 6 दिसंबर 1992 को राज्य के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।

- वर्ष 1997 में, वह फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बने और वर्ष 1999 तक पद पर बने रहे।

- बीजेपी के साथ मतभेदों के कारण, कल्याण सिंह ने भाजपा छोड़ दी और 'राष्ट्रीय क्रांति पार्टी' का गठन किया।

- वर्ष 2004 में, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के अनुरोध पर, वह भाजपा में वापस आ गए।

- वर्ष 2004 के आम चुनावों में, वह बुलंदशहर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद नियुक्त किए गए।

- वर्ष 2009 में, आम चुनावों में वह पुनः बीजेपी से अलग हो गए और एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में इटाह निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की।

- वर्ष 2009 में, वह समाजवादी पार्टी में शामिल हुए।

- वर्ष 2013 में, वह पुनः भाजपा में शामिल हुए।

- 4 सितंबर 2014 को, उन्होंने राजस्थान के गवर्नर के रूप में शपथ ग्रहण की।

- 28 जनवरी 2015 से 12 अगस्त 2015 तक, उन्होंने हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल के रूप में कार्य किया।

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