सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद AMU में जश्न का माहौल, बांटी गई मिठाइयां; जमकर फोड़े गए पटाखे
सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने फैसला सुनाते हुए एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को बहाल कर दिया है। मुस्लिम समाज से जुड़े लोगों ने कहा कि यह संविधान की जीत है। इस निर्णय से केवल अलीगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे देश के अल्पसंख्यकों का सुप्रीम कोर्ट के प्रति भरोसा बढ़ा है। निर्णय आने के बाद पूरे एएमयू परिसर में खुशी का माहौल है।
जागरण संवाददाता, अलीगढ़। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) का स्वरूप क्या होगा, यह अब तीन जजों की बेंच तय करेगी। मगर, सुप्रीम कोर्ट में सात जजों की की संविधानिक बेंच ने बहुमत से यह मान लिया कि एएमयू अल्पसंख्यक दर्जे की हकदार है। इसको लेकर शुक्रवार को एएमयू में मिठाई बांटी गई। छात्रों और कर्मचारियों में बाबे सैय्यद पर एकत्रित होकर नारे लगाए। आतिशबाजी चलाई गई।
मुस्लिम समाज से जुड़े लोगों ने कहा कि यह संविधान की जीत है। इस निर्णय से केवल अलीगढ़ ही नहीं, बल्कि पूरे देश के अल्पसंख्यकों का सुप्रीम कोर्ट के प्रति भरोसा बढ़ा है। निर्णय आने के बाद पूरे एएमयू परिसर में खुशी का माहौल है।
अलर्ट मोड में पुलिस-प्रशासन
कोर्ट के निर्णय से पहले ही शुक्रवार की सुबह से ही पुलिस-प्रशासन सतर्कता बरते हुए था। सावधानी बतौर एएमयू प्रशासन ने यूनिवर्सिटी से जुड़े स्कूलों में शनिवार का अवकाश घोषित कर दिया था। मुख्य द्वार पर ही अतिरिक्त पुलिस फ़ोर्स की तैनाती की गई थी।एएमयू के अल्पसंख्यक स्वरूप का पूरा मामला
एएमयू के अल्पसंख्यक स्वरूप को लेकर 1965 से विवाद की शुरुआत हुई थी। तत्कालीन केंद्र सरकार ने 20 मई 1965 को एएमयू एक्ट में संशोधन कर स्वायत्तता को खत्म कर दिया था। जिसे अजीज बाशा ने 1968 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। पांच जजों की बैंच ने फैसला दिया कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। इसमें खास बात ये रही कि एएमयू को पार्टी नहीं बनाया गया था।1972 में इंदिरा गांधी सरकार ने भी माना कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। यूनिवर्सिटी में इसका विरोध भी हुआ। बाद में इंदिरा गांधी सरकार ने 1981 में एएमयू एक्ट में बदलाव कर यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान माना। 2006 में एएमयू के जेएन मेडिकल कालेज में एमडी, एमएस की 50 प्रतिशत सीट मुसलमानों को आरक्षित करने के विरोध में हिंदू छात्र इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गए।
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