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Cyber Police Station: अलीगढ़ में बिना गाड़ी और हाईटेक संसाधन के दौड़ रही साइबर पुलिस

जिले में आनलाइन अपराध जिस तेजी से बढ़े हैं उस हिसाब से पुलिस के संसाधन नहीं बढ़ पा रहे हैं। साइबर सेल बना हुआ है। यहां कंप्यूटर तो हैं मगर अपराधियों को पकड़ने में प्रयोग होने वाले हाईटेक संसाधन नहीं हैं। न ही दबिश देने के लिए गाड़ी है।

By Aqib KhanEdited By: Updated: Thu, 14 Jul 2022 08:31 AM (IST)
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Cyber Police Station: बिना गाड़ी और हाईटेक संसाधन के दौड़ रही साइबर पुलिस

अलीगढ़, सुमित शर्मा: जिले में आनलाइन अपराध जिस तेजी से बढ़े हैं, उस हिसाब से पुलिस के संसाधन नहीं बढ़ पा रहे हैं। साइबर सेल बना हुआ है। यहां कंप्यूटर तो हैं, मगर अपराधियों को पकड़ने में प्रयोग होने वाले हाईटेक संसाधन नहीं हैं। न ही दबिश देने के लिए गाड़ी है। इसके लिए थानों की मदद लेनी पड़ती है। इसके बावजूद साइबर पुलिस खूब दौड़ लगा रही है। रेंज स्तर पर गठित साइबर क्राइम थाने में सेल के मुकाबले संसाधन अधिक हैं। लेकिन, इनके पास भी जो गाड़ी है, वो कंडम हालत में है। फोरेंसिक लैब न होने के चलते इन्हें भी तकनीकी मामलों में लखनऊ व दिल्ली पर निर्भर रहना पड़ता है।

आधुनिकता के चलते आनलाइन ठगी का खतरा बढ़ गया है। बीते पांच साल के अंदर साइबर अपराध में तेजी आई है। इस पर नियंत्रण के लिए सितंबर 2019 में साइबर सेल का गठन किया गया। पुलिस लाइन में इसका दफ्तर बनाया गया, जिसे काम बढ़ने पर जून 2021 में सुरक्षा विहार में शिफ्ट कर दिया गया। यहां सेल के प्रभारी एसआइ राकेश कुमार के नेतृत्व में दो कंप्यूटर आपरेटर, तीन सिपाही व एक उर्दू अनुवादक की टीम काम कर रही है।

आदेशों के अनुसार यहां दो इंस्पेक्टर, चार एसआइ, आठ सिपाही होने चाहिए। रोजाना औसतन 10 शिकायतें आनलाइन दर्ज होती हैं। एक-आध आफलाइन शिकायत भी आती है। पूरी टीम प्रशिक्षित है। दो कंप्यूटर लगे हैं। लेकिन, लागर, डंप मशीन, लोकेशन ट्रैकर, एसडीआर जैसे तकनीकी उपकरण न होने के चलते दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसके चलते समय भी अधिक लगता है।

संसाधनों में आगे है साइबर थाना

15 अगस्त 2020 को पुलिस लाइन में साइबर क्राइम थाना बना था। यहां इंस्पेक्टर सुरेंद्र कुमार के नेतृत्व में 21 पुलिसकर्मियों की टीम है। इनमें तीन एसआइ, दो हेड कांस्टेबल व अन्य सिपाही हैं। इसी में महिला साइबर सेल भी है, जिसमें एक महिला एसआइ व दो महिला आरक्षी हैं। करीब एक माह पहले यहां मुख्यालय से सीओ नीलम शर्मा की तैनाती की गई है। यहां संसाधनों की कमी नहीं है। फोरेंसिक लैब न होने के चलते कई बार दिक्कत होती हैं। एक बोलेरो गाड़ी है, वो तीन लाख किलोमीटर चली हुई है। उससे दिल्ली तक दबिश देना भी मुश्किल हो जाता है। जबकि साइबर अपराधियों को पकड़ने के लिए पुलिस को बिहार, हैदराबाद तक दबिश देनी पड़ती है।

ऐसे दर्ज करा सकते हैं शिकायत

आनलाइन ठगी या अन्य अपराध होने पर हेल्पलाइन नंबर 1930 पर फोन कर शिकायत दर्ज करा सकते हैं। यहां से एक लिंक मिलेगा। इसमें फार्म भरना होगा। 24 घंटे से अधिक समय बीत जाते पर www.cybercrime.gov.in पर शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। इसके अलावा संबंधित थाने या साइबर सेल में आकर शिकायत कर सकते हैं।

इस्तेमाल नहीं हुआ पैसा तो लौटने की संभावना

एक्सपर्ट्स के अनुसार अपराध की जानकारी जितनी जल्दी पुलिस को दी जाए, उतना अच्छा है। ठगी की रकम शातिर ने इस्तेमाल (कंज्यूम या विदड्राल) नहीं की है तो उसे ब्लाक कराकर लौटाने की संभावना 90 प्रतिशत होती है।

साइबर सेल व थाने में अंतर

साइबर सेल सिर्फ जिले के लिए है। यहां एक लाख रुपये से कम की ठगी की शिकायतें दर्ज होती हैं। साइबर क्राइम थाना पूरे रेंज का है। इसमें अलीगढ़ के अलावा हाथरस, कासंगज व एटा में एक लाख रुपये से अधिक की शिकायतें दर्ज की जाती है।

इनका कहना है

साइबर सेल को अपडेट किया जा रहा है। इसमें धीरे-धीरे संसाधन भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। साथ ही टीम को भी प्रशिक्षण दिलाया जा रहा है। - मनीष कुमार शांडिल्य, एएसपी, साइबर सेल

रेंज स्तरीय साइबर थाने में वर्तमान में जितने संसाधन मौजूद हैं, उनसे बेहतर हो रहा है। किसी भी स्तर पर काम प्रभावित नहीं हो रहा है। टीम भी पूरी तरह से प्रशिक्षित है। - सुरेंद्र कुमार, इंस्पेक्टर, साइबर थाना

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