Ramveer Upadhyay : रामवीर उपाध्याय पंचतत्व में विलीन, बेटे चिराग ने दी मुखाग्नि
Funeral procession of Ramveer Upadhyay पूर्व ऊर्जा मंत्री रामवीर उपाध्याय का अंतिम संस्कार आज शाम चार बजे उनके पैतृक गांव बामौली में होगा। शुक्रवार की रात आगरा के रेनबो हास्पिटल में उनका निधन हो गया। आगरा स्थित उनके घर से शवयात्रा सुबह 10 बजे शुरू होगी।
By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Updated: Sat, 03 Sep 2022 09:31 AM (IST)
हाथरस, जेएनएन। यूपी की राजनीति में रसूक रखने वाले पूर्व ऊर्जा मंत्री रामवीर उपाध्याय शनिवार को पंचतत्व में विलीन हो गए। इससे पहले उनकी शव यात्रा आगरा से हाथरस पहुंची। यहां मुरसान ब्लाक के गांव बामौली में पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया।
जिंदगी से हार गए जंगपूर्व ऊर्जा मंत्री रामवीर उपाध्याय का अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव बामौली में किया गया। शुक्रवार की रात आगरा के रेनबो हास्पिटल में उनका निधन हो गया था। आगरा स्थित उनके घर से शवयात्रा आज सुबह शुरू हुुई। दोपहर में हाथरस के लेबर कालोनी पार्क में अंतिम दर्शन के लिए पार्थिव देह रखा गया। वे पांच बार बसपा से विधायक रहे। 2022 के चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए थे और सादाबाद से चुनाव लड़े, लेकिन इस बार जीत हासिल नहीं हो सकी। अब कैंसर से जूझते हुए जिंदगी की जंग हार गए।
ढाई दशक तक राजनीति में रहा दबदबा
राजनीति में हाथरस का नाम राेशन करने वाले और ढाई दशक से अधिक राजनीति में दबदबा रखने वाले Ramveer Upadhyay भले ही अब नहीं रहे, लेकिन वह हाथरस की राजनीति का इतिहास लिख गए। 14 महीने कैंसर से जंग लड़ने के बाद वह आखिर जिंदगी से जंग हार गए। इत्तेफाक है उन्होंने राजनीति की शुरुआत भाजपा से ही की थी, और वह भाजपा में ही रहते हुए राजनीति को हमेशा के लिए अलविदा कह गए। रामवीर की मौत की खबर से राजनीति जगत में खलबली मच गई है। तीन दशक पहले हाथरस, अलीगढ़ जनपद का हिस्सा था।
यह भी पढ़ें- Aligarh News: रामवीर मुस्कराकर करा देते थे गंभीर मामलों का निस्तारण, पल भर में बना लेते थे अपनाब्राह्मण नेता के रूप में उभरे Ramveerमुरसान ब्लाक के गांव बामौली निवासी Ramveer Upadhyay राजनीति की ऊंचाइयों को छूने का मन बना चुके थे। वर्ष 1989 में हाथरस के रामवीर ने गाजियाबाद से आकर राजनीति में सक्रियता बढ़ाई। हाथरस की लेबर कालोनी में रहकर राम मंदिर की लहर के दौरान भाजपा के रथ पर सवार हुए। इसी बीच संघ में अच्छी पकड़ बनाने के लिए अपने पैतृक गांव बामौली में आरएसएस का ओटीसी कैंप लगवाया पर प्रयास कामयाब न हुए। 1993 के चुनाव में भाजपा ने उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया। पार्टी की टिकट राजवीर पहलवान की मिलने के बाद रामवीर बागी हो गए। ब्राह्मणों को एकजुट करने में तो शुरू से ही जुटे थे, यही काम आया। वे ब्राह्मण नेता के रूप में उभरे।
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