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देश में मशहूर अलीगढ़ के ताला कारोबार को मिला जीआइ टैग, ये है मजबूती का राज, मुगलकाल से है पहचान

अलीगढ़ में अधिकतर पिन सिलेंडर ताले बन रहे हैं जो मजबूती में बेजोड़ होते हैं। ताला कारोबार को जीआइ टैग की मजबूती। अन्य शहरों में निर्माण कर अलीगढ़ के नाम से नहीं बेचा जा सकेगा। चिकोरी भी टैग की सूची में हो सकती है शामिल

By Jagran NewsEdited By: Abhishek SaxenaUpdated: Thu, 06 Apr 2023 12:34 PM (IST)
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देश में मशहूर अलीगढ़ के ताला कारोबार को मिला जीआइ टैग

अलीगढ़, जागरण टीम। ताला के पहचान रखने वाले अलीगढ़ शहर के लिए अच्छी खबर है। ताला कारोबार को जीआइ टैग की मजबूती मिल गई है। इससे विशिष्ट पहचान तो मिलेगी ही, अन्य शहरों में इसका निर्माण कर यहां के नाम से बेचना कानूनन अपराध होगा। यह कारोबार एक जिला एक उत्पाद योजना में पहले से ही हैं। इगलास की चमचम को जीआइ टैग में शामिल करने के प्रस्ताव पर निर्णय नहीं हुआ है। ताला, हार्डवेयर व आर्टवेयर अलीगढ़ का प्रमुख कारोबार है। शहर में छोटी-बड़ी करीब पांच हजार यूनिटें हैं। 35 हजार करोड़ का सालाना कारोबार है।

अन्य जिलों में नाम नहीं होगा इस्तेमाल

जीआइ टैग मिलने से इस कारोबार से जुड़े कारोबारियों को बड़ा लाभ होगा। अन्य जिले में ताला तैयार कर उसे अलीगढ़ के ताले के नाम से नहीं बेचा जा सकेगा। केंद्र और राज्य सरकार की ओर से नाबार्ड के सहयोग से चयनित उत्तर प्रदेश के 11 उत्पादों की सूची में ताला शामिल हैं। भविष्य में अलीगढ़ की चिकोरी को भी जीआई टैग मिलने की उम्मीद है। इसके प्रस्ताव पर शासन से स्वीकृति तो मिल गई है, लेकिन अंतिम मुहर लगनी बाकी है।

मुगलकाल से है पहचान

ताला कारोबार की मुगल शासन से अलग पहचान है। 1965 में जानसन नाम के इंग्लैंड के इंजीनियर ने इसे आधुनिकता से जोड़ा था। उन्होंने लोहार के काम को पावर प्रेस से जोड़कर ताला निर्माण शुरू किया था। 2010 से वर्टिकल मिलिंग सेंटर (वीएमसी) और कंप्यूटर न्यूमेरिकल कंट्रोल (सीएनसी) मशीनों ने ताला कारोबार को और गति दी। इसमें डिजाइन को साफ्टवेयर के जरिए कंप्यूटर में दिया जाता है। इसके बाद मशीन सारा काम करती है।

ताले को जीआई टैग की श्रेणी में शामिल कर लिया गया है। अब इससे बाजार में ताले की अलग ही धाक जमेगी। यहां के कारोबारियों और उद्यमियों के लिए यह खुशी बात है। इंद्र विक्रम सिंह, जिलाधिकारी

जीआइ टैग से अलीगढ़ निर्मित ताले को अंतरराष्ट्रीय बाजार में अलग से पहचान मिलेगी। प्रदेश सरकार ब्रांडिंग पर जोर दे रही है। सरकार का यह निर्णय कारोबार में मील का पत्थर साबित होगा। शलभ जिंदल, निर्यातक

ताला निर्माताओं के पक्ष में सरकार का निर्णय स्वागत योग्य है। ताले में जीआइ टैग लगने से नकली कारोबार पर रोक लगेगी। इससे ब्रांड वाली कंपनियों को लाभ होगा। नीरज अग्रवाल, ताला निर्माता

जीआइ टैग के फायदे

जीआइ टैग (बौद्धिक संपदा अधिकार) से किसी प्रोडक्ट को विशेष भौगोलिक पहचान दी जाती है। भारत में 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत जियोग्राफिकल इंडिकेशंस आफ गुड्स लागू किया था। इससे बाजार में नकली उत्पादों को रोकने में मदद मिलेगी। अगर कोई भी व्यक्ति भविष्य में अलीगढ़ के अलावा अन्य किसी अन्य जिले में ताला तैयार कर उसे अलीगढ़ के ताले के नाम से बेचेगा तो वह कार्रवाई के दायरे में आएगा।

यह है मजबूती का राज

लोगों में जिज्ञासा भी होती है कि यहां का ताला इतना प्रसिद्ध क्यों है? इसके पीछे ताले का मजबूत कुंदा है। बाजार में आने से पहले ही कई चरणों में परखा जाता है। लोहे के गार्डर में ताले को लगाकर लोहे की राड कुंदे में फंसाकर तोड़ने का प्रयास किया जाता है। ताले का कुंदा टूटे बगैर अगर राड मुड़ जाए, तो समझ लिया जाता है कि अब इसे बाजार में उतारा जा सकता है।

पहले पीतल के ताले मजबूती के लिए जाने जाते थे। उस ताले का अंदर का भाग भी पीतल का होता था। ऐसा उन शहरों के ध्यान में रखते हुए किया जाता था जो समंदर के किनारे बसे होते हैं। इस पर ध्यान दिया जाता था कि वहां मौजूद हवा के साथ आने वाली नमी से ताले में जंग न लग जाए। अब ताले की बाडी स्टील की बनाई जाती है। 

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